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नागाओं का बलिदान: किया था अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह, जाने गुमनाम सच्चाई
भारतीय गणतंत्र के 16 वे राज्य नागालैंड को लेकर आम जनमानस में बहुत अधिक भ्रांतियां है। कांग्रेस के पढ़ाए इतिहास के जानकार तो यहां तक कहते हैं कि आजादी की लड़ाई में नागालैंड को कोई योगदान ही नहीं रहा।
लखनऊ। भारतीय गणतंत्र के 16 वे राज्य नागालैंड को लेकर आम जनमानस में बहुत अधिक भ्रांतियां है। कांग्रेस के पढ़ाए इतिहास के जानकार तो यहां तक कहते हैं कि आजादी की लड़ाई में नागालैंड को कोई योगदान ही नहीं रहा लेकिन सचाई ये है कि कांग्रेस के गठन से बहुत पहले ही नागालैंड के नागाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ पहली सशस्त्र क्रांति कर दी थी और नागाओं की दूसरी क्रांति को कांग्रेस के नेताओं ने कभी समर्थन नहीं दिया जबकि उनकी रानी आजादी के बाद तक जेल में बंद रहीं।
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नागा क्षेत्र था भी बड़ा दुर्गम और बीहड़
पिछले दिनों मैं क्रांतिकारी साहित्यकार वचनेश त्रिपाठी साहित्येन्दु का एक लेख पढ़ रहा था जो उन्होंने नागाओं की इस रानी से मुलाकात के काफी बाद लिखा था उनके द्वारा किया गया रहस्योद्घाटन आंखें खोल देने वाला है।
एक समय था जब नागा क्षेत्र अपनी भाषा संस्कृति धर्म परंपरा से ही पोषण, पुष्टि, प्रेरणा, पराक्रम, परमार्थ भावना, देश प्रेम का विचार प्राप्त करता था। तब वहां ईसाइयत या अंग्रेजियत नहीं थी। कोई अंग्रेज या पादरी यहां नहीं पहुंचा था। नागा क्षेत्र था भी बड़ा दुर्गम और बीहड़। इनके बारे में तमाम किंवदंतियां आज भी मशहूर हैं।
तब कोई अलग नागालैंड की मांग नहीं करता था। यह लोग देश भक्त थे। देश के लिए मरना और कष्ट उठाना जानते थे। यह भावना उन्हें अपनी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता, धर्म, परंपरा और भाषा से प्राप्त हुई थी। यह स्थिति दूर बैठे अंग्रेजों ने देखी। तो यहां अंग्रेज पादरी और भाषा पंडित भेजे।
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भाषा का प्रथम व्याकरण
एक भाषा पंडित आया नागा प्रदेश में जिसका नाम था अब्राहम ग्रियर्सन यह बात सन 1938 की है। उसने वहीं नागा क्षेत्र में रहकर नागाई भाषाओं का बारीकी से अध्ययन किया।
उसके व्यापक प्रभाव और महत्व का उसने गहराई से अनुमान लगाया। उसने उस भाषा का प्रथम व्याकरण लिखा जिसका नाम उसने रखा तेतन चकबा आओ ग्रामर यह रोमन लिपि में लिखी गई पुस्तक है। इसमें 106 पृष्ठ हैं।
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रानी गाइदिनल्यू
उसी समय एक अंग्रेज पादरी यहां आया उसका नाम जो भी रहा हो उसने नागाओं को धोखा देने के लिए तथा इन्हें ईसाई बनाने के लिए अपना नया ईसाई छद्म नाम रखा डब्लू चुनानुंगबा आओ इसने आओ शब्द नागाई भाषा का जानबूझकर अपने नाम से जोड़ा ताकि नाग लोग उसे भी नागा ही समझें और उसकी बातों का विश्वास करें।
इस पादरी ने यही साजिश की कि जैसे भी हो उन्हीं की भाषा में बाइबल वहां लिखा कर इन्हें देश से पृथक देश विरोधी धारा में खींच लाया जाए। कारण जब तक भाषाओं को उनकी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता, परंपरा और धर्म से दूर वरन उसका विरोधी ना बनाया जाए यहां अंग्रेजों की दाल ना गलेगी। ना अंग्रेजों का यहां कभी प्रभुत्व कायम होगा।
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1857 की क्रांति
अंग्रेज देख रहे थे कि सन 1857 में भारत में जो क्रांति हुई उसकी उस समय खबर नागा क्षेत्रों को ना हो पाए संचार आदि के कोई साधन न होने से नागा कबीले 1857 की क्रांति से पूरे 15 वर्षों तक अनभिज्ञ और अनजान ही रहे। नितांत अपरिचित।
1872 में उन्हें जब पता चला कि भारत में आज से 15 साल पूर्व एक क्रांति की धूनी धधक चुकी थी तो अपने मन में बड़ी ग्लानि अनुभव करते हुए पछताने लगे कि हमें उस समय पता चलता तो हम भी उस धूनी में अपने जीवन की समिधा अवश्य समर्पित करते।
वह पछताने लगे साथ ही ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ उनके कबीले सक्रिय हो गए। जिसका परिणाम था 1872 की नागा क्रांति। यह शस्त्र थी इसने अंग्रेजों की सत्ता की चूलें हिला दीं।
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संस्कृति सभ्यता से अछूता
अंग्रेजों ने दमन करके इसे जवाब तो दिया परंतु क्रांति की चिंगारी को कभी राख न बना सकी। इसका प्रमाण मिला 40 साल बाद 1912 में उस समय नागा जाति ने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की धूनी प्रज्वलित की।
वे नागा कबीले अघोर कहलाते हैं। यह दो क्रांतियां तभी संभव हो सकी थी जबकि नागा क्षेत्र अंग्रेज पादरियों के ईसाई प्रचार और अंग्रेजी भाषा व संस्कृति सभ्यता से अछूता रह सका था।
आगे जब नागाओं पर अंग्रेजी, अंग्रेज संस्कृति, ईसाई मजहब और अंग्रेजी भाषा थोपी जाने लगी तो इन चीजों के खिलाफ नागाओं ने शस्त्र उठाया और उनकी पुरोधा बन कर आगे आई 19 साल की नागा लड़की रानी गाइदिनल्यू।
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बात 1931 की
हालांकि वह वहां के ईसाई स्कूल में ही छात्रा थी। दसवीं कक्षा की। उस उम्र में उसने सशस्त्र नागाओं को संगठित करके सेना बनाई और अंग्रेजों से संग्राम किया।
उस क्रांति का दमन करने के इरादों से अंग्रेजों ने गांव के गांव जलाकर बर्बाद कर दिये। इसी तरह रानी गाइदिनल्यू की क्रांति का प्रतिशोध चुकाया अंग्रेजों ने। यह बात 1931 की है- गाइदिनल्यू गिरफ्तार कर ली गई और उसे आजीवन कारावास की सजा दी गई।
उस समय देश के कई प्रांतों में कांग्रेसी मंत्रिमंडल ही था लेकिन यह नेता समझौतावादी थे। अनेक प्रांतों में कांग्रेस सरकार बना कर भी उस क्रांति पुत्री को जेल से रिहा कराना तो दूर रहा। कोई उससे जेल में मिलने तक नहीं गया।
ना उसके लिए कोई प्रश्न विधानसभा में उठा पाए क्योंकि अंग्रेज वायसराय ने ऐसा कोई प्रश्न उठाने की इजाजत ही कांग्रेस वालों को नहीं दी। फिर उसे रिहा कौन कराता।
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रानी विशेषण या रानी का सम्मान
उस समय तमाम राजनीतिक कैदी रिहा हुए लेकिन क्रांतिकारी कैदी रानी गाइदिनल्यू फिर भी रिहा नहीं की गई नागा क्षेत्र के कबीले उसे रानी ही कहते थे क्योंकि वह उनकी नेता थी। अगवा थीं। सबसे प्रमुख थी।
यह गलत है कि नेहरू ने गाइदिनल्यू को रानी विशेषण या रानी का सम्मान दिया। सम्मान में प्रशंसा में बहुत कुछ लिखा परंतु रानी शब्द उसके लिए उस कबीले में बहुत पहले से परिचित था। जब नेहरू को गाइदिनल्यू का नाम भी ज्ञात नहीं था।
नागा सरहद पर एक कोबाई कबीले में गाइदिनल्यू जन्मी। उसके पिता नागाओं की पुरोहिताई करते थे। भारत आजाद हुआ। तब भी गाइदिनल्यू को जेल से ना छोड़ा गया। उसकी रिहाई के लिए लंदन की संसद में प्रश्न उठाया गया।
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कांग्रेस ने हरिपुरा अधिवेशन में उसकी रिहाई का प्रस्ताव पारित किया। परंतु प्रस्तावों से अंग्रेजों पर क्या असर पड़ता। रानी गाइदिनल्यू जेल से रिहा हो पाई अपनी 31 वर्ष की उम्र में 1949 में।
नागा महासभा
गाइदिनल्यू ने देखा था कि किस तरह अंग्रेजी संस्कृति, सभ्यता और मजहब का जाल फैलाकर अंग्रेजों ने नागा प्रदेश की नागा महासभा नाम की संस्था को अपने चंगुल में कर लिया है कि इस सभा ने ही कोशिश शुरू कर दी कि पूरा नागा क्षेत्र अंग्रेजों के कब्जे में आ जाए और वह हो भी गया। यह बात 1919 की है। आगे आओ भाषा में डब्ल्यू आओ की लिखी बाइबल ने नागा क्षेत्र में वह काम किया। जिसे फादर स्काट ने आगे बढ़ाया।
कहना यह है कि सन 1931 में जो क्रांति की धूनी नागा क्षेत्र में रानी गाइदिनल्यू ने धधकाई थी, वह शायद अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी संस्कृति, सभ्यता के विरुद्ध प्रचंड हुई थी।
देश आजाद होने पर भी जो नागा प्रदेश अंग्रेजी, अंग्रेजी भाषा, ईसाई मजहब, अंग्रेजी संस्कृति, सभ्यता से मुक्त नहीं हो सका तो यह देश की सुरक्षा के लिए संकट कारक और दुर्भाग्य ही है।
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रिपोर्ट- रामकृष्ण बाजपेयी
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