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परशुराम ने क्यों की अपनी मां की हत्या, क्या थी क्षत्रियों के सर्वनाश की वजह

ब्राम्हणों के देवता परशुराम की गुस्सा जग जाहिर है। परशुराम को क्षत्रियों से इतनी नाराजगी थी कि उन्होंने क्षत्रियों को धरती से खाली करने की शपथ खाई थी।

Aradhya Tripathi
Published on: 25 April 2020 3:16 PM IST
परशुराम ने क्यों की अपनी मां की हत्या, क्या थी क्षत्रियों के सर्वनाश की वजह
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ब्राम्हणों के देवता माने जाने वाले परशुराम के बारे में कौन नहीं जानता। हर कोई परशुराम के गुस्से के किस्सों से भली भांति वाकिफ है। परशुराम के क्रोध की कोई सीमा नहीं थी। परशुराम को क्षत्रियों से इतनी नाराजगी थी कि उन्होंने क्षत्रियों को धरती से खाली करने की शपथ खाई थी। इसी लिए उन्होंने अपने सबसे होनहार शिष्य कर्ण को भी क्षत्रिय होने की वजह से ही श्राप दे दिया था।

परशुराम के क्रोध के इसी तरह के कई ककिससे व कहानियां प्रचलित है। इन्हीं में से एक है कि उन्होंने पिता के आदेश का पालन करने लिए अपनी मां की ह्त्या कर दी थी। लेकिन क्या आपको पता है कि उनके पिटा ने ऐसा आदेश क्यों दिया था? यहां हम बताएंगे आपको पूरी बात

इसलिए की मां की हत्या

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कहा जाता है कि परशुराम को अमरता का वरदान प्राप्त था। परशुराम का जिक्र आज कल फिर लोगों की जुबान पर है। इसका कारण हैं कि आज कल दूरदर्शन पर फिर से रामायण और महाभारत का प्रसारण किया जा रहा है। और परशुराम का जिक्र महाभारत और रामायण दोनों में मिलता है। ऐसे में उनके बारे प्रचलित किस्से एक बार फिर सबकी जुबान पर आ गए हैं। परशुराम के बारे में सबसे हैरान करने वाली कहानी ये ही है कि उन्होंने अपनी माता की सर काट कर हत्या कर दी थी। ये बात आज भी सबके लिए एक हैरान कर देने वाली बात है। ये तो सब जानते हैं कि उन्होंने अपनी मां की हत्या कर दी थी लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया ये कम ही लोग जानते हैं।

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दरअसल परशुराम ने ये काम अपने मन से बिलकुल नहीं किया था। उन्होंने अपनी मां किओ हत्या अपने पिता के आदेश का पालन करते हुए करी थी। ये बात अलग है कि परशुराम द्वारा ऐसा करने पर उनके पिता समेत सभी लोग हैरान रह गए थे। ऐसा कहा जाता है कि परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि काफी गुस्सैल प्रवृत्ति के थे। एक बार उनके पिता ऋषि जमदग्नि यज्ञ के लिए बैठे थे। तभी उनकी माता रेणुका जल का कलश लेकर जल भरने के लिए नदी गईं थीं। जब वो नदी में जल लेने गईं तो वहां नदी में गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था।

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रेणुका उसे देखने लगीं। ज्सिमें वो इतना तल्लीन हो गईं कि उन्हें जल लेकर वापस आने में देर हो गई। जिससे ऋषि जमदग्नि यज्ञ नहीं कर पाए। इतने में यज्ञ के लिए बैठे परशुराम के पिता नाराज हो गए। यज्ञ न कर पाने से क्रोधित पिता जमदग्नि ने जब रेणुका को देखा तो वो गुस्से में दहाड़ते हुए पड़ोस खड़े हुए अपने चारों पुत्रों से अपनी मां का वध करने को कहा। बाकी तीनों बेटों ने तो ये बात सुन कर अपना सर झुका लिया ललेकिन इसी बीच परशुराम ने अपना फरसा उठाया। एक ही वार में मां का सिर धड़ से अलग कर दिया।

पिता ने दिए वरदान

परशुराम के ऐसा करने से उनके पिता समेत हर कोई हैरान रह गया। क्योंकि किसी को भी परशुराम से ये उम्मीद नहीं थी। उनके पिता ने नहीं सोचा था की उनका बेटा उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए अपनी मां की हत्या ही कर देगा। ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी की मृत्यु से आहत तो थे ही लेकिन उन्हें देख कर खुशी हुई कि उनका बेटा इतना आज्ञाकारी है। जिक्से बाद उन्होंने अपने बेटे परशुराम से वर मांगने को। जिस पर परशुराम ने तुरंत पिता से चार वरदान मांगे। उन्होंने जो वरदान मांगे उनमें-

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. मां फिर से जिंदा हो जाएं

. उन्हें ये याद ही नहीं रहे कि उनकी हत्या की गई थी

. उनके सभी भाई भी स्तब्ध अवस्था से सामान्य स्थिति में लौट आएं

. इन वरदानों के साथ पिता ऋषि जमदग्नि ने उन्हें अमर रहने का वरदान भी दिया

इसलिए की क्षत्रियों के सर्वनाश की प्रतिज्ञा

परशुराम के बारे में कहा जात है कि वो ब्राम्हण होने के बाद भी उनमें क्षत्रियों वाले कर्म व गुण थे। फिर ऐसा क्या हुआ जो वो क्षत्रियों से इतना नाराज़ हो गए कि उन्होंने क्षत्रियों के सर्वनाश की प्रतिज्ञा कर ली।इसके पीछे भी एक कहानि है कि एक दिन जब परशुराम बाहर गये थे तो राजा सहस्रबाहु हैहयराज के दोनों बेटे कृतवीर अर्जुन और कार्तवीर्य अर्जुन उनकी कुटिया पर आए। उन्होंने राजा द्वारा दान में दी गईं गायों और बछड़ों की जबरदस्ती छीन लिया। साथ ही मां का अपमान भी किया।

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इस बात की जानकारी जब परशुराम को हुई तो उन्होंने क्रोध में आकर राज सहस्रबाहु हैहयराज को मार डाला। परिणामस्वरूप उसके दोनों बेटों ने फिर आश्रम पर धावा बोला। उस समय परशुराम आश्रम में नहीं थे। जिसका फायदा उठा कर दोनों बेटों ने परशुराम के पिता मुनि जमदग्नि को मार डाला। उसके बाद जब घर पहुंच कर परशुराम को ये पता चला तो उन्होंने उसी समय शपथ ली कि वो धरती को क्षत्रियहीन कर देंगे। जिसके बाद परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का संहार किया।

भगवान राम पर भी हुए थे क्रोधित

परशुराम अपने क्रोधी स्वभाव के लिए विख्यात थे। 21 बार उन्होंने धरती को क्षत्रिय-विहीन किया। हर बार हताहत क्षत्रियों की पत्नियाँ जीवित रहीं और नई पीढ़ी को जन्म दिया। परशुराम हर बार क्षत्रियों को मारने के बाद कुरुक्षेत्र की पाँच झीलों में रक्त भर देते थे। अंत में पितरों की आकाशवाणी सुनकर उन्होंने क्षत्रियों से युद्ध करना छोड़कर तपस्या की ओर ध्यान लगाया।

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रामायण में परशुराम जिक्र तब आता है जबकि राम ने सीता स्वयंवर में शिव का धनुष तोड़ा था। तब वो नाराज होकर वहां आए थे। लेकिन राम से मुलाकात के बाद समझ गए कि वो विष्णु के अवतार हैं। इसलिए उनकी वंदना करके वापस तपस्या के लिए चले गए।



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Aradhya Tripathi

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