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जमातियों पर चुप्पी: कोरोना संकट के बावजूद लगे हैं वोट बैंक को सहेजने

अयोध्या आंदोलन के बाद पिछले तीन दशक से वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति चली आ रही है फिर मौका चाहे कोई भी हो, राजनीति दलों की निगाह अपने वोट बैंक में लगी ही रहती है।

Vidushi Mishra
Published on: 27 April 2020 3:43 PM IST
जमातियों पर चुप्पी: कोरोना संकट के बावजूद लगे हैं वोट बैंक को सहेजने
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लखनऊ। अयोध्या आंदोलन के बाद पिछले तीन दशक से वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति चली आ रही है फिर मौका चाहे कोई भी हो, राजनीति दलों की निगाह अपने वोट बैंक में लगी ही रहती है। भाजपा जहां अपने कट्टरवादी एजेण्डे पर कायम है, वहीं गैर भाजपा दल जमातियों की हरकत पर अपनी चुप्पी साधे हुए हें।

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चुनावी माहौल बनना शुरू

अयोध्या आंदोलन के बाद से मुस्लिम समाज की भाजपा से दूरियां कभी नजदीकी न बन सकी। नब्बे के दशक से लेकर अब तक मुस्लिम समाज भाजपा पर पूरा विश्वास नहीं कर सका है। यही कारण है कि भाजपा विरोधी दल भी इसका पूरा लाभ उठाकार मुस्लिम समाज को भयभीत करने का काम करते रहते हैं।

राजनीतिक दलों को मालूम है कि कोरोना संकट खत्म होते ही फिर से राजनीतिक उठापटक शुरू हो जाएगी। ये सभी दल अच्छी तरह से जानते हैं कि साल के पूरा होते ही यूपी समेत बिहार पश्चिम बंगाल में चुनावी माहौल बनना शुरू हो जाएगा।

उदारवादी रवेया अख्तियार

दिल्ली में सरकार बना चुकी आम आदमी पार्टी भी इस बार यूपी के विधानसभा चुनाव में उतरने को तैयार है इसलिए दिल्ली में सबसे ज्यादा जमातियों के मिलने के बाद भी केजरीवाल सरकार तबलीगी जमात के प्रति शुरू से लेकर अबतक उदारवादी रवेया अख्तियार किए हुए है।

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पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और बिहार में नीतिश कुमार समेत जनता दल यू का यही हाल है। जबकि यूपी में योगी सरकार तबलीगी जमातियों के उदण्ड रवैये के प्रति अबतक सबसे कड़ा रुख देखने को मिला है।

राजनीति दलों में अपने नेताओं से साफ कहा गया है कि कोरोना संकट में कुछ भी कुछ भी बोलने के पहले हाईकमान को जरूर विश्वास में लिया जाए।

मुस्लिम वोटों के लालच में चुप्पी साधे

हाल यह है कि कोराना संकट के दौरान जिस तरह से अस्पतालों में तबलीगी जमात से जुडे़ लोग आए दिन उपद्रव कर रहे हैं लेकिन गैरभाजपा दल मुस्लिम वोटों के लालच में चुप्पी साधे हुए हैं। फिर चाहे वह कांग्रेस हो समाजवादी पार्टी अथवा आम आदमी पार्टी ही क्यों हो।

यहां यह बताना भी जरूरी है कि वोटों के ध्रुवीकरण का चुनावी लाभ भाजपा भी अबतक खूब उठाती रही है। अगले विधानसभा चुनाव के लिए भी वह अपनी पुरानी रणनीति पर कायम है। जब तक अटल विहारी वाजपेयी राजनीति में सक्रिय थें मुस्लिम समाज उनके प्रति थोडा़ उदार रहता था।

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मुस्लिम समाज के प्रति बेहद उदार

अयोध्या मुद्दे के बाद से मुलायम सिंह मुस्लिमों के प्रति नरम होने के कारण उनके हीरो बनकर उभरे। भाजपा का भय दिखाकर 1993 और 1996 के विधानसभा चुनावों में खूब लाभ उठाया। अपने पिता के रास्ते पर चलकर अखिलेश यादव भी मुस्लिम समाज के प्रति बेहद उदार रहते है।

कोरोना संकट के दौरान बसपा भी लगातार कमजोर वर्ग और गरीबों की चिंता की बात कर रही है। जबकि जमातियों के उपद्रवा को लेकर वह भी चुप्पी साधे हुए हे। 2002 और 2007 के चुनाव में मुस्लिम वोट बसपा के पाले खूब जा चुका हे। इसलिए वह कुछ भी बोलने से बच रही है।

महाराष्ट्र में दो साधुओं की हत्या पर हालांकि वहां की सरकार ने डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है लेकिन वहां की मुख्यविपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी संतुष्ट नहीं है।

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पूरे देश मे कोहराम मच गया

यहां यह भी बताना जरूरी है कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में जब अखिलेश यादव की सरकार थी तब दादरी में जब माबलिंचिग की घटना हुई तो पूरे देश मे कोहराम मच गया था। लेकिन पालघर में दो साधुओं की हत्या हुई तो गैर भाजपा दल बहुत ही सधी हुई भाषा बोल रहे हैं।

इन सबके अलावा कांग्रेस सहित कुछ अन्य छुटभैय्ये और छोटी पार्टिया जो एक वर्ग विशेष के समर्थन में राज्यों की विधानसभाओ से लेकर संसद के दोनो सदनो में हंगामा काटकर अपने को नंबरवन का सेकुलर साबित करने में लग जाती है। वे भी इस समय ‘साइलेंट मोड’ में है।

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रिपोर्ट- श्रीधर अग्निहोत्री

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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