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गिरफ्तारी की तरह एनकाउंटर पर भी उठे कई सवाल, जवाब देना होगा मुश्किल

कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद तमाम सवाल भी उठने लगे हैं। जिस तरह विकास दुबे की गिरफ्तारी पर सवाल उठा रहे थे, उसी तरह अब...

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Published on: 10 July 2020 6:55 AM GMT
गिरफ्तारी की तरह एनकाउंटर पर भी उठे कई सवाल, जवाब देना होगा मुश्किल
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अंशुमान तिवारी

कानपुर: कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद तमाम सवाल भी उठने लगे हैं। जिस तरह विकास दुबे की गिरफ्तारी पर सवाल उठा रहे थे, उसी तरह अब उसके एनकाउंटर को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। जानकारों का कहना है कि एक हफ्ते में अपने पांच गुर्गों के मारे जाने के बाद विकास दुबे को भी एनकाउंटर का भय सता रहा था और इसीलिए वह खुद सरेंडर करने के लिए उज्जैन के महाकाल मंदिर पहुंचा था। हालांकि बाद में कहा गया कि विकास दुबे की पहचान स्पष्ट होने के बाद महाकाल मंदिर के सुरक्षाकर्मियों और पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। पकड़े जाने के 24 घंटे के अंदर ही उसके मुठभेड़ में मारे जाने के बाद तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं जिनका जवाब देना मुश्किल होगा।

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चार्टर्ड प्लेन की चर्चा मगर ले गए सड़क मार्ग से

दिनभर मीडिया में इस बात को लेकर खासी चर्चा थी कि विकास को चार्टर्ड प्लेन के जरिए उत्तर प्रदेश ले जाया जाएगा। चर्चा थी कि उसे प्लेन के जरिए उज्जैन से इंदौर और फिर यूपी ले जाने की तैयारी है। फिर अचानक शाम को इस तरह की खबर आई कि उसे सड़क के रास्ते ले जाया जाएगा और इसके लिए यूपी एसटीएफ की टीम उज्जैन पहुंच रही है। इस जानकारी के बाद माना जा रहा था कि यूपी एसटीएफ की टीम कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच विकास दुबे को उत्तर प्रदेश ले जाएगी मगर एसटीएफ की टीम पहुंची ही नहीं। विकास दुबे से कई घंटे की पूछताछ के बाद मध्य प्रदेश की पुलिस उसे लेकर उज्जैन से झांसी तक आई।

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सिर्फ विकास दुबे की ही गाड़ी का हुआ एक्सीडेंट

मध्य प्रदेश की पुलिस ने जब विकास को यूपी पुलिस और एसटीएफ के हवाले किया तब विकास दुबे को ले जाने के लिए 10 से ज्यादा गाड़ियां तैयार थीं। इन्हीं में से एक गाड़ी में विकास दुबे को बैठाया गया और बाकी गाड़ियां उस गाड़ी के आगे पीछे लगी हुई थीं। उस समय भारी बारिश हो रही थी। मीडिया की टीमें भी इस काफिले के आगे पीछे लगी हुई थीं मगर पुलिस या किसी अन्य गाड़ी के साथ कोई हादसा नहीं हुआ। हादसा सिर्फ विकास की गाड़ी के साथ ही हुआ और अन्य सभी गाड़ियां पूरी तरह सुरक्षित रहीं।

एनकाउंटर से पहले मीडिया की टीमों को रोका गया

यह भी आरोप है कि काफिले के साथ चल रही मीडिया की गाड़ियों को अचानक रोक दिया गया। मुठभेड़ का समय सुबह 6:15 से 6:30 के बीच बताया जा रहा है और उस समय मीडिया की कोई भी गाड़ी मौके पर नहीं थी। काफिले के आगे पीछे चल रही गाड़ियों को अचानक चेकपोस्ट लगाकर रोक दिया गया था। बाद में खबर आई कि जिस गाड़ी में विकास दुबे बैठा हुआ था उस गाड़ी के पलटने के बाद हथियार छीन कर भागने की कोशिश के दौरान विकास दुबे मारा गया। विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने भी इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्यों अचानक चेकिंग शुरू करके मीडिया की गाड़ियों को आने से रोक दिया गया।

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विकास दुबे को क्यों नहीं पहनाई थी हथकड़ी

विकास दुबे के खिलाफ 60 से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे और उसने 2 जुलाई की रात बिकरू गांव में 8 पुलिसकर्मियों की जान ले ली थी। उस पर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पांच लाख का इनाम घोषित किया गया था। अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या इतने बड़े कुख्यात गैंगस्टर को पुलिस बिना हथकड़ी पहनाए ला रही थी? क्या एसटीएफ की टीम ने उसके हाथ नहीं बांधे थे? इन सवालों का अभी तक कोई जवाब नहीं मिल सका है।

घायल पुलिसकर्मी 4 घंटे बाद पहुंचे अस्पताल

एनकाउंटर के बाद विकास दुबे की बॉडी तो हैलट अस्पताल जल्द ही पहुंच गई, लेकिन जो चार पुलिसकर्मी मुठभेड़ में घायल बताए जा रहे हैं उन्हें लेकर एंबुलेंस सुबह करीब 10:30 बजे हैलट अस्पताल पहुंची। मुठभेड़ स्थल भौती की दूरी कानपुर से महज 17 किलोमीटर ही है। इसे लेकर मीडिया ने सवाल भी किया कि मुठभेड़ में घायल पुलिसकर्मी इतनी देर से हैलट अस्पताल क्यों पहुंचे मगर पुलिस की ओर से इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं दिया गया।

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पूछताछ में फंस जाते बड़े-बड़े चेहरे

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने बिकरू की घटना के बाद कहा था कि विकास से पूछताछ की जाए तो कई बड़े बड़े लोगों के चेहरे बेनकाब होंगे। पूछताछ के दौरान वे आईएएस,आईपीएस और नेता बेनकाब होंगे जो समय-समय पर विकास की मदद करते रहे हैं। विकास दुबे के मारे जाने के बाद ऐसे सफेदपोश चेहरों से अब कभी नकाब नहीं उठ सकेगी।

अखिलेश यादव बोले- सरकार पलटने से बचाई गई

एनकाउंटर की घटना के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट करते हुए लिखा कि दरअसल कार नहीं पलटी है, राज खुलने से सरकार पलटने से बचाई गई है। दरअसल आरोप है कि विकास दुबे को हमेशा समय-समय पर सत्ता के गलियारे से भी मदद मिलती रही है और नेताओं के संरक्षण में ही वह अभी तक अपना अपराधिक कारोबार चलाता रहा है। उसके मारे जाने के बाद ऐसे सफेदपोश चेहरों का संकट टल गया है जिनका नाम विकास से पूछताछ के दौरान खुल सकता था।

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दिग्विजय सिंह ने उठाए एनकाउंटर पर सवाल

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कल विकास की गिरफ्तारी पर भी सवाल उठाए थे। विकास के मारे जाने के बाद उन्होंने कहा कि जिसका शक था वही हो गया। विकास दुबे के मारे जाने के बाद अब कभी यह नहीं उजागर नहीं हो पाएगा कि किन-किन राजनीतिक लोगों और पुलिस अधिकारियों का उसे संरक्षण प्राप्त था। उन्होंने यह भी कहा कि इस पूरे मामले में सभी एनकाउंटर का पैटर्न एक समान ही क्यों है?

एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में पुलिस एनकाउंटर के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के मुताबिक सीआरपीसी की धारा 176 के तहत हर एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट जांच होना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक पुलिस को एनकाउंटर का अधिकार नहीं है। उसे सिर्फ खुद की हिफाजत करने का अधिकार है। यदि अपराधी से खुद को बचाने के लिए पुलिसकर्मी गोली चलाता है और इस दौरान अपराधी की मौत होती है तो इसे साबित करना भी जरूरी है। हालांकि इस मामले में जांच के बाद भी बहुत कुछ साफ होने की उम्मीद नहीं जताई जा रही है।

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