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अमेरिका की बड़ी भूल: चीन का साथ देना सबसे भयानक मूर्खता, अब झेल रहा खुद भी

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को झकझोर सा दिया है। अमेरिका महाशक्तिशाली भी इसकी मार से उभर नहीं पा रहा है। अमेरिका समेत कई देश इसके लिए चीन को कसूरवार बता रहा है।

Vidushi Mishra
Published on: 21 Jun 2020 6:01 AM GMT
अमेरिका की बड़ी भूल: चीन का साथ देना सबसे भयानक मूर्खता, अब झेल रहा खुद भी
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नई दिल्ली। कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को झकझोर सा दिया है। अमेरिका महाशक्तिशाली भी इसकी मार से उभर नहीं पा रहा है। अमेरिका समेत कई देश इसके लिए चीन को कसूरवार बता रहा है। ऐसे में राजनीतिक विज्ञानी और शिकागो यूनिवर्सिटी में के विचारक जॉन मियरशाइमर ने 20 साल पहले भविष्यवाणी की थी कि 21वीं शताब्दी में चीन का उदय शांतिपूर्ण नहीं होगा। चीन और अमेरिका के बीच सुरक्षा प्रतिस्पर्धा होगी, जिसका अंत युद्ध में होगा।

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चीन को एडजस्ट करने में नाकाम

एक इंटरव्यू में जॉन मियरशाइमर ने कहा कि चीन प्रभुत्ववादी शक्ति बनने का इच्छुक है और साथ ही भारत के साथ अपनी सरहद की यथास्थिति बदलना चाहता है। प्रो. मियरशाइमर ने कहा कि अमेरिका चीन को एडजस्ट करने में नाकाम रहने से भी बढ़कर कुछ खराब किया।

आगे प्रोफेसर ने कहा, “अमेरिका ने पिछली सदी के आखिरी दशक और इस सदी के पहले डेढ़ दशक में चीन को आर्थिक दृष्टि से अधिक और अधिक ताकतवर बनने में सहयोग किया, असल में हमने संभावित समकक्ष प्रतिस्पर्धी खड़ा कर लिया। ये हैरान करने वाली मूर्खता है।’’

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काबू पाने की कोशिश में तेजी से कदम उठाए

चीन-अमेरिका के बारे में मियरशाइमर ने साथ ही यह भी कहा कि अमेरिका ने खतरे को पहचाना और फिर चीन पर काबू पाने की कोशिश में तेजी से कदम उठाए।

पारम्परिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर एक और थ्योरी है, जिसे जाने-माने पूर्व एशियाई राजनयिक और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के पूर्व अध्यक्ष किशोर महबूबानी जैसे विचारकों की ओर से बढ़ाया जाता है।

यूएनएससी के पूर्व अध्यक्ष महबूबानी नई किताब ‘’Has China won? The Chinese Challenge to American Primacy” (क्या चीन जीत चुका है? अमेरिकी प्रधानता को चीनी चुनौती) के लेखक हैं।

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कई पड़ोसियों के खिलाफ चीन का मुद्दा

पूर्व अध्यक्ष महबूबानी का तर्क है कि चीन 21वीं सदी में अमेरिका के विश्व आधिपत्य वाले दर्जे पर कब्जा कर लेगा। हालांकि उनका मानना है कि चीन यथास्थिति वाली शक्ति है, न कि क्रांतिकारी, और चीन से टकराव अपरिहार्य और टाला जा सकने वाला, दोनों ही है।

ऐसे में महबूबानी के विचारों पर प्रतिक्रिया देते हुए मियरशाइमर ने कहा, ‘’ये पश्चिम के खिलाफ एशिया का नहीं, ये अपने कई पड़ोसियों के खिलाफ चीन का मुद्दा है, जिनमें भारत और चीन भी हैं।”

इस पर प्रो. मियरशाइमर ने कहा, “आप ऐसी स्थिति को देखने जा रहे है कि भारत और अमेरिका, वियतनाम और अमेरिका, भारत-जापान, ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका, सभी चीन के खिलाफ संतुलनवादी सहयोग के लिए हाथ मिला सकते हैं।”

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घरेलू व्यवहार पर रोक नहीं लगा सकेंगे

चीन-अमेरिका टकराव पर एक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष समीर सरन 3-M फ्रेमवर्क” का हवाला देते हुए कहा “आप एक मिडिल किंगडम पहचान का दोबारा बड़ा उदय होते देखेंगे। वे (चीन) मानते हैं कि वो विश्व के सेंटर में है और नियम उनके वैश्विक और घरेलू व्यवहार पर रोक नहीं लगा सकेंगे।”

समीर सरन ने अन्य ‘M’ को लेकर कहा। चीनी अपवाद को दो और ‘M’ समर्थन देते हैं- ‘’मॉडर्न टूल्स ऑफ एंगेजमेंट (अनुबंध के आधुनिक औजार) और मध्ययुगीन मानसिकता।’’

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सेनाओं में निवेश करना शुरू किया

समीर सरन ने कहा, उन्होंने वैश्विक मंचों को हासिल करना और उन पर प्रभुत्व दिखाना शुरू कर दिया, आधुनिक सेनाओं में निवेश करना शुरू किया और इसे बहुत बेहतर ढंग से किया। हालांकि वो मिडिल किंगडम हो सकते हैं, मानसिकता मध्ययुगीन हो सकती है। वो इनोवेशन, उद्यमिता और व्यक्तियों पर कंट्रोल में विश्वास रखते हैं।

उन्होंने अधिनायकवादी और दमनकारी शासनों के साथ भागीदारी की। उन्होंने टकरावों के दौरान कीलें जड़ी लोहे की छड़ों और कंटीले तारों वाले बेसबास बैट्स का इस्तेमाल किया। वो भी ये प्रतिबद्धता जताने के बाद कि हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा।’’

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