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वैक्सीनेशन की रफ्तार धीमी: नार्मल होने में लग जाएंगे 7 साल, जानिए दुनिया की स्थिति
दुनिया को देखें तो वर्तमान रफ़्तार के हिसाब से 7 साल लगेंगे। लेकिन जैसे जैसे और वैक्सीनें आती जायेंगी, वैक्सीनेशन की रफ़्तार और तेज होगी। वैक्सीन उत्पादन की बात करें तो इसके हब भारत और मेक्सिको हैं जहाँ सर्वाधिक निर्माण क्षमता है।
नीलमणि लाल
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीनेशन जारी है लेकिन इसकी रफ़्तार अभी काफी धीमी है। एक अनुमान है कि जिस रफ़्तार से काम किया जा रहा है उसके हिसाब से जीवन को नार्मल होने में सात साल लग जायेंगे। अभी दुनिया के सिर्फ एक तिहाई देशों में वैक्सीनेशन का काम शुरू हुआ है।
वैक्सीनेशन में सात साल
वैक्सीन लागने के मामले में दुनिया में सबसे तेज रफ़्तार इजरायल की है। इजरायल अपने देश में वैक्सीन का 75 फीसदी कवरेज दो महीने में हासिल कर लेगा। अमेरिका को ये काम करने में एक साल लगेगा। लेकिन बाकी दुनिया को देखें तो वर्तमान रफ़्तार के हिसाब से 7 साल लगेंगे। लेकिन जैसे जैसे और वैक्सीनें आती जायेंगी, वैक्सीनेशन की रफ़्तार और तेज होगी। वैक्सीन उत्पादन की बात करें तो इसके हब भारत और मेक्सिको हैं जहाँ सर्वाधिक निर्माण क्षमता है। अभी उत्पादन इकाईयों के पास सौ से ज्यादा अनुबंध हैं जिसमें करीब 9 अरब खुराकें बनाने की बात है।
कोरोना से पहले जैसा नार्मल जीवन होने के लिए जरूरी है कि एक व्यापक हर्ड इम्यूनिटी बन जाये। जब ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन के जरिये इम्यूनिटी मिल जायेगी तो वायरस को फैलने के लिए नए शिकार ही नहीं मिलेंगे। लेकिन इस स्थिति के लिए जनसँख्या के 75 फीसदी का इम्यून होना जरूरी है।
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(फोटो- सोशल मीडिया)
मिक्सचर वैक्सीन
कोरोना के नए नए एडिशन सामने आने के बाद अब सबसे शक्तिशाली वैक्सीन की खोज शुरू हुई है। ऐसे में कुछ प्रयोग भी किये जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर, ब्रिटेन में कोरोना की दो अलग-अलग वैक्सीनों को मिक्स कर टीका लगाने का प्रयोग शुरू हो गया है। ब्रिटेन के टीकाकरण प्रभारी मंत्री नदीम जहावी के मुताबिक पूरी दुनिया में कोरोना के करीब 4,000 वैरिएंट या स्ट्रेन मौजूद हैं। ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देशों में कोरोना वायरस बहुत ज्यादा म्युटेट हो चुका है। इतने ज्यादा वैरिएंट्स का कारण यही है. इन तीनों देशों में सामने आए स्ट्रेन ज्यादा तेजी से लोगों को संक्रमित कर रहे हैं।
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फाइजर-बायोनटेक, मॉडेर्ना, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका और अन्य सभी निर्माता यह जांच रहे हैं कि किसी भी स्ट्रेन से निपटने के लिए वैक्सीन को और ज्यादा कारगर कैसे बनाया जाए। इसके साथ ही ब्रिटेन में सरकार की फंडिंग से मिक्स टीकाकरण स्ट्डी शुरू की गई है। इस शोध में 50 साल से ज्यादा उम्र के 800 से ज्यादा प्रतिभागियों को अदला बदली कर एस्ट्रा जेनेका और फाइजर की कोरोना वैक्सीन दी जाएगी।
13 महीने तक प्रतिभागियों को चार हफ्ते और 12 हफ्ते के अंतराल में फाइजर और एस्ट्रा जेनेका वैक्सीन लगाई जाएगी। मिक्स वैक्सीन के जरिए वैज्ञानिक यह जानना चाहते हैं कि क्या दो अलग टीकों की मदद से शरीर कोरोना के खिलाफ ज्यादा एंटीबॉडी बना सकता है।
(फोटो- सोशल मीडिया)
अलग अलग तकनीक
एस्ट्रा जेनेका और फाइजर की वैक्सीन बिल्कुल अलग अलग तकनीक से बनाई गई है। फाइजर की वैक्सीन एमआरएनए कहे जाने वाले जेनेटिक कोड से बनाई गई है जबकि एस्ट्रा जेनेका की वैक्सीन जुकाम पैदा करने वाले कॉमन कोल्ड वायरस के जीन से बनाई गई है।
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अभी कुल 6 वैक्सीनें
दुनिया भर में फिलहाल कोरोना वायरस के खिलाफ छह वैक्सीनें इस्तेमाल की जा रही हैं। इनमें फाइजर-बायोनटेक, मॉर्डेना, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रा जेनेका की वैक्सीन, भारत की कोवैक्सीन, चीन की सिनोवैक और रूस की स्पुतनिक है। जॉनसन एंड जॉनसन ने तीसरे चरण के ट्रायल के बाद अब अपनी वैक्सीन ने इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति माँगी है। कुछ और कंपनियां भी अपनी वैक्सीन का ट्रायल कर रही हैं।
छह वैक्सीनों के सामने आने के बावजूद टीकाकरण अभियान में खासी चुनौतियां आ रही हैं। कोई भी वैक्सीन कंपनी अकेले इस हालत में नहीं है कि वह इस साल के अंत तक किसी एक महाद्वीप की मांग भी पूरी कर सके। वैज्ञानिकों के मुताबिक दुनिया के कोने कोने तक वैक्सीन पहुंचने से पहले कोरोना फैलता रहेगा। यही वजह है कि अब वैक्सीनों को मिक्स करने का प्रयोग शुरू किया गया है। अगर प्रयोग सफल रहा तो एक पहली बार दिए गए टीके को रिपीट करने का दबाव नहीं रहेगा।
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