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अमेरिका में बड़ा बदलाव: चुनाव पर टिकी दुनिया की निगाहें, ट्रंप-बिडेन में कड़ी टक्कर

'2020 का राष्ट्रपति चुनाव अमेरिका के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है जो अमेरिकी समाज और राजनीति के साथ साथ दुनिया के परिदृश्य को बदला देगा। कोरोना वायरस महामारी के जबरदस्त संकट काल में होने वाले इस चुनाव पर पूरी दुनिया की निगाहें लगीं हुईं हैं।

Shreya
Published on: 21 Sep 2020 8:33 AM GMT
अमेरिका में बड़ा बदलाव: चुनाव पर टिकी दुनिया की निगाहें, ट्रंप-बिडेन में कड़ी टक्कर
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अमेरिका में बड़ा बदलाव: चुनाव पर टिकी दुनिया की निगाहें, ट्रंप-बिडेन में कड़ी टक्कर

नीलमणि लाल

वॉशिंगटन: '2020 का राष्ट्रपति चुनाव अमेरिका के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है जो अमेरिकी समाज और राजनीति के साथ साथ दुनिया के परिदृश्य को बदला देगा। कोरोना वायरस महामारी के जबरदस्त संकट काल में होने वाले इस चुनाव पर पूरी दुनिया की निगाहें लगीं हुईं हैं। एक तरफ डोनाल्ड ट्रम्प हैं जो अपने दूसरे कार्यकाल की उम्मीद लगाए हुए हैं तो दूसरी ओर हैं जो बिडेन जिनकी पार्टी और समर्थकों का एक ही एजेंडा है – ट्रम्प को किसी न किसी तरह से शिकस्त देना।'

इतिहास का सबसे कड़ा मुकाबला

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव शुरू हो चुका है। अमेरिका के इतिहास में पीछे जहाँ तक नजर डाली जाये, इतना कड़ा मुकाबला पहले कभी नहीं देखा गया है। 2020 का चुनाव ऐसा है जिसमें दोनों पक्ष एक दूसरे को राष्ट्र के लिए ख़तरा बता रहे हैं। एक ओर रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प हैं तो दूसरी ओर डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन हैं। इनके साथ अमेरिका का मीडिया पूरी तरह पक्षपाती भूमिका में है। मीडिया का एक वर्ग बिडेन के पक्ष में पूरी ताकत और पूरी तरह खुल कर लगा हुआ है तो दूसरी ओर डोनाल्ड ट्रम्प के साथ भी ऐसा ही है।

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Joe Biden कमजोर जमीन पर हैं जो बिडेन (फोटो- सोशल मीडिया)

कमजोर जमीन पर जो बिडेन

वैसे तो बिडेन की बढ़त की बातें खूब कही जा रहीं हैं लेकिन असलियत में बिडेन कमजोर जमीन पर हैं। दरअसल, अमेरिकी चुनावी सिस्टम में मतदाता सीधे अपने राष्ट्रपति का चुनाव नहीं करते। अमेरिकी चुनाव ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ पद्धति से चलता है जहाँ हर राज्य के मतदाता अपने प्रतिनिधियों यानी सीनेटरों का चुनाव करते हैं। ये एक जटिल गणित हैं जो जनसँख्या और प्रतिनिधियों के अनुपात पर निर्भर करता है। इसी गणित में बिडेन के सामने काफी चुनौतियाँ हैं।

‘फाइव थर्टी एट’ के एक सर्वे से संकेत मिलता है कि बिडेन नेशनल पोपुलर वोट तीन अंक या 50 लाख वोट से जीत सकते हैं लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज जीतने की संभावना 50 – 50 है। डेमोक्रेटिक पार्टी के रणनीतिकार भी स्वीकार करते हैं कि जब तक जो बिडेन 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ नहीं ले लेते, तब तक उनकी जीत के बारे में आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता।

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करीब है निर्णायक दिन

मतदान का फाइनल दिन 3 नवम्बर है और अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। लेकिन चुनावी रेस का गणित बदलने के लिए इतने दिन ही काफी हैं। 2020 की रेस तय करने के मुख्य बिंदु चिन्हित किये जा चुके हैं। इन बिन्दुओं में उप राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी का चयन और नेशनल कन्वेंशन तो पूरे हो गए हैं जबकि तीन फेस-टू-फेस डिबेट समेत कुछ बड़े इवेंट होना बाकी हैं।

ट्रम्प के अभियान को इन डिबेट्स में ताकतवर प्रदर्शन का पक्का भरोसा है। अगर किसी वजह से ये रणनीति सफल नहीं होती है तो अक्टूबर में एक ‘सरप्राइज़’ घोषणा की बात चल रही है। ये सरप्राइज़ ये हो सकता है कि अमेरिका के पास कोरोना वायरस की वैक्सीन है।

TRUMP बिडेन को हराने के लिए इन राज्यों में ट्रंप को पानी होगी विजय (फोटो- ट्विटर)

बिडेन को हराने के लिए इन राज्यों में पानी होगी विजय

इलेक्टोरल कॉलेज में जीत दर्ज करने के लिए ट्रम्प को मिशिगन, पेन्सल्वानिया, विस्कॉन्सिन, नोर्य्थ कैरोलिना, फ्लोरिडा और एरिज़ोना में से आधे राज्यों में बिडेन को हराना होगा। ये सब ऐसे राज्य हैं जो अनिर्णय की स्थिति में हैं यानी स्विंग स्टेट्स हैं। इनमें से नार्थ कैरोलिना और फ्लोरिडा में बिडेन और ट्रम्प के बीच 2 फीसदी से भी कम का अंतर है।

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42 फीसदी अमेरिकियों का समर्थन पूरी तरह ट्रम्प के पक्ष में है और ये लोग मानते हैं कि ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में बेहतर काम किया है। यही नहीं, ट्रम्प के समर्थकों में से 66 फीसदी का कहना है कि वे ट्रम्प का पूरा समर्थन करते हैं जबकि बिडेन के समर्थकों में से मात्र 46 फीसदी ही कहते हैं कि वे बिडेन का ठोस समर्थन करते हैं।

हिंसा पर नाराजगी

इन्वेस्टमेंट कंसल्टेंट कंपनी जेपी मॉर्गन चेज़ का कहना है कि निवेशक ट्रम्प के जीतने पर ज्यादा दांव लगाने को तैयार रहें। कुछ समय पहले तक सट्टे में ट्रम्प, बिडेन से पीछे थे लेकिन अब बराबरी पर आ गए हैं। इसकी वजह अमेरिका में चल रहे प्रदर्शनों में हिंसा है। पहले ये देखा जा रहा था कि यदि लोग अमेरिका में हो रहे प्रदर्शन को हिंसात्मक मानने लगेंगे तो डेमोक्रेट्स से रिपब्लिकन के प्रति झुकाव 5 से 10 पॉइंट शिफ्ट हो जाएगा। और ऐसा ही होता दिखाई पड़ रहा है।

Joe Biden-DONALD TRUMP चुनाव में होगी किसकी जीत, दुनिया की टिकी हैं निगाहें (फोटो- सोशल मीडिया)

प्रदर्शन और हिंसा के कारन मतदाताओं का रुझान बिडेन से हट कर ट्रम्प की ओर होता जा रहा है। ओरेगन, विस्कॉन्सिन, लोस एंजेल्स में श्वेत लोगों की हत्याओं और पुलिसवालों पर कातिलाना हमलों की वारदातें श्वेत अमेरिकी मतदाताओं में गहरी नाराजगी भर चुकीं हैं। चूँकि डेमोक्रेटिक पार्टी और बिडेन ने सिर्फ अश्वेत लोगों पर हुए हमलों पर ही हो हल्ला मचाया है और श्वेत नागरिकों के साथ हुई वारदातों पर चुप्पी साधे रहे हैं उससे भी गहरी नाराजगी उत्पन्न हुई है।

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एग्जिट पोल पर संदेह

यूनाइटेड किंगडम के चुनाव में एग्जिट पोल पूरी बात तय करके बता देता है लेकिन अमेरिका में एग्जिट पोल पर संदेह व्यक्त किया जाता रहा है। 2016 में करीब 60 फीसदी वोट चुनाव वाले दिन पड़े थे। इस बार फिफ्टी-फिफ्टी मामला है और कोई एग्जिट पोल ऐसी स्थिति से निपटने में सक्षम नहीं होता।

तुरंत नहीं आयेगा रिजल्ट

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम तुरंत या मतदान वाले दिन नहीं आ पायेगा। कोरोना संकट का असर मतदान और मतपत्रों की गिनती पर भी पड़ेगा और बहुत मुमकिन है हफ़्तों या उससे से भी ज्यादा समय तक नतीजा पता नहीं चल पाए। कोरोना के अलावा एक कारण अमेरिका की जटिल चुनावी प्रक्रिया भी विलम्ब का कारण बनेगी। अमेरिकी सिस्टम दरअसल संघीय न हो कर राज्यों द्वारा संचालित है। और राष्ट्रपति का चुनाव एक राष्ट्र का चुनाव न हो कर 50 राज्यों का चुनाव होता है।

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असलियत तो ये है कि अमेरिकी जनता को खुद ही इस जटिल चुनावी प्रक्रिया पूरी तरह समझ में नहीं आती। इस बार कोरोना की वजह से पोस्टल बैलट पर जोर है। अमेरिका के कुछ राज्यों ने बहुत हड़बड़ी में पोस्टल बैलट लागू कर दिया जिससे वोटों की गिनती में समय भी बहुत लगेगा। पोस्टल बैलट का इस्तेमाल एक नयी चीज है और कोई भी राज्य कोई गलती नहीं करना चाहता।

फ्लोरिडा पर निगाह

वोटों की गिनती के मामले में फ्लोरिडा राज्य महत्वपूर्ण है। वर्ष 2000 में यहाँ वोटों के दोबारा गिनती हुई थी जिस कारन चुनावी परिणाम के लिए पूरा देश एक महीने तक इन्तजार करता रहा। अगर 2020 में बिडेन फ्लोरिडा जीत लेते हैं तो चुनाव नतीजा जल्दी आ सकता है। इसके अलावा बिडेन की फ्लोरिडा में जीत का मतलब ये भी लगाया जा रहा है कि उनको इलेक्टोरल कॉलेज का भी सपोर्ट है।

Joe-Biden बिडेन समर्थकों ने बोये शक के बीज (फोटो- सशल मीडिया)

बिडेन समर्थकों ने बोये शक के बीज

डेमोक्रेटिक पार्टी और बिडेन समर्थक मीडिया ने शक के बीज भी बोने शुरू कर दिए हैं। इनके द्वारा प्रचार किया जा रहा है कि अगर ट्रम्प हार रहे होंगे तो वे अफरातफरी फैला सकते हैं, नतीजे आने से पहले खुद की जीत का ऐलान कर सकते हैं या रिजल्ट को सिरे से नकार सकते हैं। हालाँकि ट्रम्प विरोधियों के पास इस तरह के बेतुके आरोपों के पक्ष में कोई आधार नहीं है। यही संदेह फैलाया जा रहा है कि ट्रम्प का जीतना मुमकिन नहीं है। और तो और, बिडेन के अभियान ने तो घोषणा कर रखी है कि उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी की किसी भी ‘शरारत’ से निपटने के लिए 600 वकीलों की फ़ौज को तैयार करके रखा हुआ है।

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रूस, चीन और ईरान के हैकर भी सेंधमारी में जुटे

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस, चीन और ईरान के हैकर भी सेंधमारी में लगे हुए हैं और ट्रम्प व बिडेन – दोनों खेमों को निशाना बना रहे हैं। माइक्रोसॉफ्ट की नयी सिक्यूरिटी रिपोर्ट में इस बात का अखुलासा किया गया है। माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि हैकरों के अधिकांश हमले विफल रहे हैं लेकिन ख़तरा लगातार बना हुआ है।

माइक्रोसॉफ्ट ने कहा है कि ‘फैंसी बियर’, ;स्ट्रोंटियम’ या ‘एपीटी 28’ नामक रूसी हैकिंग ग्रुप ने 2016 में हिलरी क्लिंटन के अभियान को निशाना बनाया था और यही ग्रुप इस बार फिर वापस आ गया है और नए टारगेट ढूंढ रहा है। माइक्रोसॉफ्ट ने कहा है कि स्ट्रोंटियम ने कुल 200 संगठनों को निशाना बनाया है जिनमें रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक – दोनों दलों के राजनीतिक कंसल्टेंट्स और थिंक टैंक्स, शामिल हैं।

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हाई प्रोफाइल लोगों को टारगेट कर रहे हैकर्स

कंपनी ने कहा है कि चीन के हैकर्स भी चुनाव से जुड़े हाई प्रोफाइल लोगों को टारगेट कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर लोग जो बिडेन के अभियान से जुड़े हुए हैं। चीनी हैकरों ने करीब 150 टारगेट्स को ट्रैप किया है दूसरी ओर ईरान के हैकर डोनाल्ड ट्रम्प के अभियान से जुड़े लोगों के पर्सनल एकाउंट्स को निशाना बना रहे हैं। ईरानी हैकर बहुत सफल तो नहीं रहे हैं लेकिन ट्रम्प से सम्बंधित लोगों के खिलाफ इसकी कोशिशें जारी हैं।

DONALD-TRUMP ट्रम्प से सट्टेबाजों को उम्मीद (फोटो ट्विटर)

सट्टेबाजों को ट्रम्प से उम्मीद

सट्टेबाजों को ट्रम्प से उम्मीद नजर आ रही है। ज्यादातर पैसा उनपर ही लग रहा है। सट्टेबाजों को उम्मीद कि आगे आने वाले समय में माहौल बदल जाएगा और ट्रम्प चुनाव जीत जाएंगे। एक ब्रिटिश सट्टेबाज ने बताया कि लोग ट्रम्प के समर्थन में ज्यादा हैं। अब तक उन पर 95 करोड़ से अधिक के दांव लग चुके हैं। आस्ट्रेलिया में भी ट्रम्प के पक्ष में हवा है। यहाँ के सट्टेबाजों ने ट्रम्प की जीत पर दांव लगाया हुआ है।

विज्ञापनों पर भारी खर्चा

चुनाव प्रचार के लिए ट्रम्प और बिडेन खेमा जम कर खर्चा कर रहा है। बिडेन के प्रचार के लिए ब्लूमबर्ग कंपनी ने फ्लोरिडा में 10 करोड़ डालर खर्च करने का ऐलान किया है। बिडेन खेमा टेलीविज़न पर प्राइम टाइम में विज्ञापन देने में खुल कर खर्च कर रहा है। दूसरी ओर ट्रम्प का प्रचार फण्ड कमजोर पड़ता प्रतीत हो रहा है और ट्रम्प ने जनता और अपने समर्थकों से सहयोग करने की अपीलें की हैं। ट्रम्प के अभियान में लगभग एक अरब डालर खर्च किये जा चुके हैं। ट्रम्प ने अपने निजी कोष से खर्चा करने की बात कही है।

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अगस्त के अंत तक डेमोक्रेट उम्मीदवार बिडेन ने चुनाव फ़ंडिंग में 699 मिलियन डॉलर जुटाए थे जबकि डोनल्ड ट्रंप ने क़रीब सवा अरब डॉलर जुटाए। हालाँकि ट्रंप को राष्ट्रपति पद पर रहने के कारण ज़्यादा पैसा मिलने की संभावना पहले से ही थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक बिडेन के कुल 699 मिलियन डॉलर में 300 मिलियन डॉलर सिर्फ़ अगस्त महीने में जमा हुए जिससे ये संकेत मिलता है कि बिडेन की लोकप्रियता वोटरों में बढ़ी है। वैसे ये रिपोर्ट बिडेन समर्थक मीडिया से उपजी हुई है।

चुनाव प्रचार पर असर

वहीं, अगस्त के महीने में रिपब्लिकन्स ने कुल 210 मिलियन डॉलर की राशि जमा की है जो कि बिडेन के फ़ंड से काफ़ी कम है लेकिन पूर्व के आँकड़ों से देखा जाए तो ये काफ़ी अधिक है। जब ओबामा दूसरी बार राष्ट्रपति के तौर पर चुनावी मैदान में थे तो उन्होंने जितनी रक़म जुटाई थी उससे ये 45 मिलियन डॉलर अधिक है। चुनाव फ़ंडिंग में कम पैसे आने का सीधा मतलब चुनाव प्रचार पर असर पड़ना है क्योंकि पैसे कम होंगे तो पार्टियों को अख़बारों में, रेडियो पर, टीवी में और कई अन्य स्थानों पर विज्ञापन देने में दिक्कत होगी।

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यही कारण था कि अगस्त के महीने में रिपब्लिकन पार्टी और ट्रंप की तरफ़ से रेडियो पर काफ़ी कम प्रचार किया गया। विश्लेषक मान रहे हैं कि रिपब्लिकन पार्टी के पास पैसों की कमी पड़ रही है। ट्रंप ने भी कहा है कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो चुनाव प्रचार में अपना पैसा भी लगा सकते हैं। बहरहाल, जिसके पास जितना फ़ंड होगा वो ये फ़ंड चुनाव प्रचार में उतना ही अधिक डालेगा।

D-TRUMP ट्रंप हैं तो कुछ भी मुमकिन (फोटो- ट्विटर)

ट्रंप हैं तो कुछ भी मुमकिन

अमेरिका के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव एक महामारी के समय में हो रहे हैं। ज़ाहिर है कि लोग बाहर कम निकल रहे हैं और चुनाव प्रचार में कम जा रहे हैं। ऐसे में पार्टियाँ अपना अधिक से अधिक पैसा टीवी की बजाय सोशल मीडिया पर लगा रही हैं ताकि लोगों तक पहुँचा जा सके। फ़िलहाल इस समय अगर सारे चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों का औसत निकाला जाए इस बाबत कि अगर आज चुनाव हुए तो लोग किसे वोट देंगे तो बाइडेन के पक्ष में 51% लोग हैं जबकि ट्रंप के लिए 43% लोग। यह एक अच्छी बढ़त लग सकती है लेकिन अगर आप अमेरिका के शहरों में लोगों से बात करेंगे तो वो साफ़ कहते हैं कि ट्रंप, ट्रंप हैं। चुनाव में अभी कुछ हफ्ते हैं। वो कुछ भी कर सकते हैं।

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