BJP Mission 2024 : सीमांचल से महागठबंधन के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंक रहे अमित शाह, समझें सियासी मायने

Amit Shah in Bihar: जदयू के साथ गठबंधन के दौरान अपेक्षाकृत हिंदुत्व को लेकर नरम रवैया अपनाने वाली बीजेपी अब इसी के सहारे वर्षों पुराने अपने सपने को साकार करना चाहती है।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update: 2022-09-23 06:54 GMT

Amit Shah in Bihar (photo: social media )

Amit Shah in Bihar: हिंदी पट्टी में बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है जहां बीजेपी अब तक अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई है। इस बात का मलाल हमेशा से बीजेपी के मौजूदा शीर्ष नेताओं को रहा है। साल 2020 में एनडीए में सबसे अधिक सीटें जीतने के बावजूद भगवा दल को नीतीश कुमार के लिए सीएम की कुर्सी का मोह त्यागना पड़ा था। उसे इस त्याग के बदले क्या मिला, आज सबके सामने है। एकबार फिर बिहार में लालू – नीतीश बनाम मोदी-शाह हो गया है।

जदयू के साथ गठबंधन के दौरान अपेक्षाकृत हिंदुत्व को लेकर नरम रवैया अपनाने वाली बीजेपी अब इसी के सहारे वर्षों पुराने अपने सपने को साकार करना चाहती है। बीजेपी ने अब यूपी की तरह बिहार में भी हिंदुत्व की आक्रमक पिच पर बैटिंग करने का निर्णय ले लिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का सीमांचल दौरा यूं ही नहीं है बल्कि इसके पीछे बीजेपी की एक बड़ी रणनीति है, जो आने वाले दिनों में बिहार भाजपा की गतिविधियों में दिख सकती है। जिस पर अब तक जदयू का पिछलग्गू होने का आरोप लगता रहता था।

अमित शाह का सीमांचल दौरा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार की सत्ता से बेदखल होने के बाद पहली बार कोई बड़ी पब्लिक मीटिंग करने आ रहे हैं। शाह दो दिनों तक बिहार में रहेंगे। वे आज सबसे पहले पूर्णिया में करीब डेढ़ लाख लोगों की एक जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद वे पड़ोसी जिले किशनगंज के लिए रवाना हो जाएंगे। यहां वे बिहार के भाजपा सांसदों, विधायकों और पूर्व मंत्रियों के साथ बैठक करेंगे। प्रदेश कोर समिति की बैठक भी लेंगे। इसके बाद रात्रि विश्राम करेंगे। अगले दिन यानी 24 सितंबर को विभिन्न कार्यक्रमों को निपटाने के बाद शाम को दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे।

सीमांचल का सियासी समीकरण

सीमांचल बिहार का वो हिस्सा है, जहां सबसे अधिक मुस्लिम आबादी निवास करती है। सीमांचल की कुल आबादी में करीब 40 फीसदी मुस्लिम हैं। सीमांचल में चार लोकसभा सीटें हैं। जिनमें 30 से लेकर 70 फीसदी आबादी इसी समुदाय की है। सबसे ज्यादा लगभग 70 प्रतिशत मुस्लिम वोटर तो अकेले किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में हैं। वहीं दूसरे स्थान पर कटिहार है, जहां इनकी संख्या 40 फीसदी है। इसके बाद अररिया 35 फीसदी और पूर्णिया 33 फीसदी आता है। मुस्लिम के बाद यहां यादव मतदाता भी अच्छी खासी संख्या में है। इसलिए यह एरिया माय ( मुस्लिम + यादव) समीकरण के कारण लालू यादव राजद के गढ़ के रूप में तब्दिल हो जाती है। मुस्लिम मतदाताओं के अधिकता के कारण ही ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को पहली बार उनके अपने गृह राज्य से बाहर बिहार में इतनी बड़ी सफलता मिली थी। गत विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के 5 विधायक चुने गए थे। हालांकि, उनमें से 4 अब राजद में जा चुके हैं।

जदयू के साथ गठबंधन के दौरान बीजेपी ने इस क्षेत्र में राजद पर बढत बनाई थी लेकिन बदले सियासी माहौल में अब उसके लिए यहां की सिय़ासी लड़ाई कठिन हो गई है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए 4 में से केवल एक सीट जीत पाई थी। तब उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी एनडीए में रहते हुए कटिहार सीट जीती थी। उपेंद्र अब जदयू में हैं। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू के साथ चुनाव लड़ने का फायदा बीजेपी को मिला। चार में से तीन सीटों पर एनडीए जीत हासिल की। एक सीट बीजेपी और दो सीट जदयू ने जीती थी। एकमात्र सीट किशनगंज जीतकर कांग्रेस ने बिहार में विपक्षी की लाज बजाई थी। जबकि मजबूत जातीय आधार वाली राजद को खाली हाथ रहना पड़ा था।

शाह ने सीमांचल को ही क्यों चुना ?

लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जैसे मजबूत जातीय आधार वाले नेताओं की काट बिहार में बीजेपी अब तक नहीं खोज पाई है। बीजेपी जानती है कि यूपी की तरह बिहार में कास्ट के जरिए इन पुराने दिग्गज ओबीसी नेताओं को शिकस्त देना मुश्किल है। लिहाजा पार्टी अपने सबसे प्रिय हथियार हिंदुत्व के बल इस चुनौती को पार करना चाहती है। सीमांचल में वो सारे मुद्दे मौजूद हैं, जिसका जिक्र बीजेपी के फायरब्रांड हिंदुवादी नेता मीडिया में अक्सर करते रहते हैं। जिस पर काफी बवाल भी होता है।

यानी, यहीं सीएए, एनआरसी, रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा, बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिम घुसपैठिए और इलाके में एक खास आबादी के जनसंख्या में असमान्य बढ़ोतरी। बीजेपी जब तक नीतीश कुमार के साथ सत्ता में थी, तब तक वो इस मुद्दे पर दबी जुबान में बोलती थी। बिहार बीजेपी के बड़े नेता इस पर कुछ भी बोलने से कतराते थे। लेकिन अब वे आजाद हैं। वे एकतरह से इन मुद्दों को राज्य में बीजेपी के लिए लॉन्चिंग पैड की तरह देख रहे हैं। आज पूर्णिया की रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का इन मुद्दों पर बोलना तय माना जा रहा है।

आसपास के राज्यों में भी होगा फायदा

सीमांचल वो इलाका है, जहां से न केवल देश के दो राज्यों (पश्चिम बंगाल और झारखंड) की सीमा लगती है बल्कि दो देशों (नेपाल और बांग्लादेश) की अंतरराष्ट्रीय सीमा भी बेहद निकट है। गृह मंत्री अमित शाह किशनगंज में शुक्रवार को जहां पर रात्रि विश्राम करने वाले हैं, वहां से बांग्लादेश की सीमा महज 17 किलोमीटर दूर है। यही वजह है कि यहां पर बांग्लादेश से होने वाला अवैध घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा है। बीजेपी को लगता है कि सीमांचल में इन मुद्दों को उठाने से जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होगा, उससे उसे भले ही सीमांचल में नुकसान होगा लेकिन पार्टी को बिहार के कोसी, मिथिला समेत अन्य हिस्सों में इसका फायदा मिल सकता है। ये ध्रुवीकरण न केवल बिहार तक महदूद रहेगा बल्कि इसका असर सीमावर्ती राज्य झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी देखऩे को मिल सकता है।

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