बिहार चुनाव: सब्जियों में फंसी नीतीश सरकार, विपक्ष को मिला मौका
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सब्जियों की कीमतों में उछाल ने सरकार की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। खास तौर पर आलू, प्याज और टमाटर की बढ़ती कीमतों ने सरकार की धड़कनें भी बढ़ा दी हैं।
नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सब्जियों की कीमतों में उछाल ने सरकार की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। खास तौर पर आलू, प्याज और टमाटर की बढ़ती कीमतों ने सरकार की धड़कनें भी बढ़ा दी हैं। विपक्ष ने बढ़ती महंगाई को मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है और बिहार में भी इसे लेकर सरकार की घेरेबंदी शुरू कर दी गई है। केंद्र सरकार की ओर से आनन-फानन में प्याज के निर्यात पर रोक लगाकर बढ़ती कीमतों को काबू में लाने की कोशिश की गई है मगर आलू और टमाटर की कीमतें अभी भी बेलगाम हैं। माना जा रहा है कि सब्जियों की कीमत में आया यह उछाल बिहार चुनाव के दौरान एनडीए सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
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पासवान के पास है उपभोक्ता मंत्रालय
आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को काबू में रखने की जिम्मेदारी केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय की है। मजे की बात यह है कि यह मंत्रालय बिहार से ताल्लुक रखने वाले लोजपा के वरिष्ठ नेता रामविलास पासवान के पास है। बिहार चुनाव में एनडीए गठबंधन में भाजपा और जदयू के साथ लोजपा भी शामिल है। ऐसे में विपक्ष की ओर से सब्जियों की कीमतों में उछाल के मुद्दे पर एनडीए को घेरने की कोशिश की जा रही है।
कोरोना संकट के कारण पहले ही मुश्किलों का सामना कर रहे लोगों के लिए आलू, टमाटर और प्याज जैसी जरूरी सब्जियों की कीमतों में आए उछाल ने मुसीबत और बढ़ा दी है।
प्याज के निर्यात पर लगाई रोक
सूत्रों के मुताबिक प्याज के निर्यात पर रोक लगाकर सरकार की ओर से इसकी कीमत पर काबू पाने का प्रयास किया गया है। सरकार का मानना है कि उसके पास प्याज की कीमतों पर अंकुश लगाने का तंत्र है आलू और टमाटर जैसी जरूरी सब्जी पर उसका कोई खास नियंत्रण नहीं है। यही कारण है कि दोनों की कीमतों में उछाल का दौर जारी है जिससे एनडीए की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
सरकार के पास दोगुना बफर स्टॉक
उपभोक्ता मंत्रालय की सचिव लीला नंदन का कहना है कि प्याज की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए ही इसके निर्यात पर रोक लगाई गई है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से दूसरे कदम भी उठाए जा रहे हैं। इसके साथ ही सरकार के पास प्याज का बफर स्टॉक भी मौजूद है। इस बार पिछले साल के मुकाबले में बफर स्टॉक को दोगुना कर दिया गया है। पिछले साल के 57 हजार टन के मुकाबले इस बार करीब एक लाख टन प्याज का बफर स्टॉक है।
आलू-टमाटर की कीमतों पर काबू नहीं
उपभोक्ता मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि प्याज की कीमतें अभी इतनी ऊंचाई पर नहीं पहुंची है कि बफर स्टॉक की मदद लेनी पड़े। मंत्रालय के अधिकारी ने आलू और टमाटर की बढ़ती कीमतों पर चिंता जरूर जताई। दरअसल सरकार की मुसीबत यह है कि उसके पास इस समय लोगों को कीमतों में बढ़ोतरी का कारण बताने का कोई उचित आधार नहीं मिल रहा। जानकारों का कहना है कि कई बड़े शहरों में आलू 50 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गया है। टमाटर की कीमत भी कई शहरों में 70 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है।
आलू की कीमतों पर काबू पाने के लिए सरकार के पास मजबूत तंत्र नहीं है क्योंकि इसे बहुत पहले ही आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर किया जा चुका है। हालांकि उपभोक्ता मंत्रालय के मूल्य निगरानी विभाग को सब्जियों की बढ़ती कीमतों पर लगातार नजर बनाए रखने को कहा गया है।
कम पैदावार ने खड़ा किया संकट
जानकारों का कहना है कि आलू की कीमतों में बढ़ोतरी का बड़ा कारण इस बार उत्पादन कम होना है। उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा आलू पैदा होता है मगर इस बार दोनों प्रदेशों में पैदावार कम होने की वजह से बाजार में आलू की कीमतों ने जोर पकड़ा है। इसके साथ ही देश के कई इलाकों में हो रही बारिश ने भी सब्जियों की कीमतों में उछाल में प्रमुख भूमिका निभाई है।
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बढ़ती कीमतों की चुकानी पड़ सकती है कीमत
सियासी जानकारों का कहना है कि सब्जियों की बढ़ती कीमत बिहार चुनाव में सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाली साबित होगी। कोरोना और बाढ़ के संकट से बिहार की जनता पहले ही मुसीबतों का सामना कर रही है और ऐसे में सब्जियों की बढ़ती कीमतों ने लोगों की दिक्कतें और बढ़ा दी हैं। विभिन्न मुद्दों को लेकर सरकार पर हमलावर विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। जानकारों के मुताबिक लोगों के रोजमर्रा के जीवन में शामिल सब्जियों की बढ़ती कीमत की एनडीए को भी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
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