Lok Sabha Election 2024: बिहार के नए सियासी हालात से भाजपा की चुनौतियां बढ़ीं, 2024 की जंग में मुश्किल हुई राह

Lok Sabha Election 2024: नीतीश कुमार ने पांच साल पहले एनडीए में वापस लौटने का फैसला किया था मगर अब वे एक बार फिर राजद के साथ मिलकर बिहार की सियासत में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2022-08-10 09:15 GMT

BJP। (Social Media)

Lok Sabha Election 2024: नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के एनडीए (NDA) से बाहर निकलने के फैसले को सियासी नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने पांच साल पहले एनडीए में वापस लौटने का फैसला किया था मगर अब वे एक बार फिर राजद के साथ मिलकर बिहार की सियासत में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे। बिहार में अगला विधानसभा चुनाव से 2025 (Next Bihar Assembly Election 202) में होने वाला है मगर उसके पहले 2024 में दिल्ली की सत्ता के लिए होने वाली बड़ी सियासी जंग के लिए अब भाजपा की चुनौतियां काफी बढ़ गई है। 

2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार में 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल हुई थी मगर उस समय नीतीश कुमार (Nitish Kuamr) भाजपा (BJP) के साथ थे। अब राज्य के सियासी हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। वैसे 2020 के चुनाव में भाजपा ने जदयू (JDU) से बेहतर प्रदर्शन करके उसे जूनियर पार्टनर बनने पर मजबूर कर दिया था मगर यह भी सच्चाई है कि ओबीसी मतदाताओं पर नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ से इनकार नहीं किया जा सकता है। नीतीश और राजद का साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हो गया है।

बिहार के सियासी हालात में बदलाव 

अगले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के लिए दो साल से कम समय बचा है। भाजपा देश के विभिन्न राज्यों में अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर चुकी है। ऐसी सीटों पर खासतौर पर फोकस किया जा रहा है जहां पर 2019 के चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। कई केंद्रीय मंत्रियों को हारी हुई सीटों को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई है और बूथ स्तर तक के मैनेजमेंट को मजबूत बनाने की कोशिशें की जा रही है। इस बीच बिहार की सियासी स्थिति में अचानक बदलाव आया है। 

बिहार की सियासत में नीतीश को प्रमोट करने में भाजपा की भी बड़ी भूमिका रही है। राष्ट्रीय स्तर पर ताकतवर होने के बावजूद बिहार में भाजपा जूनियर पार्टनर की भूमिका निभाती रही और नीतीश कुमार एनडीए के सर्वेसर्वा बने रहे। हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 74 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही जबकि जेडीयू को सिर्फ 43 सीटों पर ही जीत मिली। इसके बावजूद भाजपा ने अपना वादा निभाते हुए नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी की थी।

समीकरणों के लिहाज से महागठबंधन मजबूत 

दरअसल भाजपा (BJP) के लिए चिंता का विषय यह है कि राजद और नीतीश कुमार का अपना अलग-अलग वोट बैंक है और अब दोनों मिलकर भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे। गैर यादव पिछड़ी जातियों पर नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ मानी जाती है जबकि राजद के पास यादव और मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा वोट बैंक है। 

अब जबकि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने राजद से हाथ मिला लिया है तो जातीय समीकरण के लिहाज से विपक्षी महागठबंधन काफी मजबूत स्थिति में नजर आ रहा है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में भाजपा के सामने सामाजिक समीकरणों को साधने की बड़ी चुनौती पैदा हो गई है। बिहार के चुनाव में जातीय समीकरण की बड़ी भूमिका होती है और यह समीकरण विकास के मुद्दे पर भी हावी हो जाता है। ऐसे में मजबूत सामाजिक समीकरण और सुशासन बाबू की छवि के साथ नीतीश कुमार भाजपा के लिए बड़ी चुनौती खड़ी करते दिख रहे हैं।

तैयारियों में जुटी हुई है भाजपा 

वैसे भाजपा बिहार में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिशों में पहले से ही जुट गई है। पटना में 30 और 31 जुलाई को भाजपा के सात मोर्चों की बैठक में भाजपा की तैयारियों का ब्लूप्रिंट भी पेश किया गया था। इस बैठक में भाजपा की ओर से बिहार में 200 विधानसभा सीटों का लक्ष्य तय किए जाने की बात कही गई थी। भाजपा नेताओं ने बिहार की इन विधानसभा सीटों का दौरा भी किया है। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा की सिर्फ उन 43 सीटों को ही छोड़ा गया है जिन पर पिछले चुनाव में जदयू ने जीत हासिल की थी। 

भाजपा के इन तैयारियों को लेकर भी नीतीश की नाराजगी की बात सामने आई है। नीतीश को लगने लगा था कि देर सबेर भाजपा उन्हें बड़ा झटका दे सकती है और इसीलिए उन्होंने पहले ही भाजपा से किनारा कर लेने में भलाई समझी। भाजपा की ओर से पेश किए गए इस ब्लूप्रिंट से साफ है कि पार्टी की ओर से भी बिहार में सियासी स्थिति मजबूत बनाने की कोशिशें चल रही हैं। अब नीतीश का साथ छूट जाने के बाद पार्टी खुलकर बैटिंग कर सकेगी। अब हिंदुत्व के मुद्दे को भी भाजपा की ओर से धार दिए जाने की तैयारी है। 

2014 में भाजपा ने दिया था झटका 

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को करारी चोट देने में भी कामयाबी हासिल की थी। नीतीश कुमार की अगुवाई में जदयू को सिर्फ 2 सीटों पर जीत मिली थी जबकि राजद को 4 सीटें हासिल हुई थी। भाजपा को 22 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि लोजपा के खाते में 6 सीटें गई थीं। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को तीन, कांग्रेश को दो और एनसीपी को एक सीट पर जीत मिली थी।

 इस करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद पर बैठाया था। ऐसे में भाजपा एक बार फिर 2014 का प्रदर्शन दोहराना चाहेगी मगर इसके साथ ही यह भी सच्चाई है कि नीतीश और राजद के हाथ मिलाने के बाद इस प्रदर्शन को दोहरा पाना आसान नहीं होगा। 

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