Bihar Politics: क्या जदयू में फिर वापसी करेंगे प्रशांत किशोर, नीतीश-पीके की मुलाकात ने बढ़ायी सियासी सरगर्मी
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी के छोटे बेटे की शादी को लेकर बिहार सरकार की आधी कैबिनेट दिल्ली में है।
Bihar Politics: पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर जहां इन दिनों देश का सियासी तापमान चढ़ा हुआ है। वहीं इस बीच देश की राजधानी दिल्ली में एक ऐसी मुलाकत हुई है जिसने सियासी जानकारों के कान खड़े कर दिए हैं। भारतीय राजनीति में पीके के नाम से मशहूर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर एकबार फिर चर्चाओं में हैं। वजह है उनकी एक मुलाकात। पीके ने शनिवार को दिल्ली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद पीके के अगल कदम को लेकर अटकलों का नया दौर शुरू हो चुका है।
जदयू में पीके के वापसी पर बोले बिहार सीएम
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी के छोटे बेटे की शादी को लेकर बिहार सरकार की आधी कैबिनेट दिल्ली में है। इस मौके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कभी अपने सबसे भऱोसेमंद सहयोगी रहे सुशील मोदी के बेटे को आर्शीवाद देने पहुंचे। दिल्ली प्रवास पर बिहार सीएम की मुलाकात चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से भी हुई। इस मुलाकात ने खुब सुर्खियां बटोरीं।
हालांकि मीडिया में सीएम नीतीश ने इसपर ज्यादा कुछ बोलने से परहेत करते हुए इसे सामान्य मुलाकात बताया। इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर से उनका पुराना रिश्ता रहा है। उनसे मुलाकात का कई खास मतलब नहीं है। वहीं जदयू में पीके के वापसी के सवाल पर उन्होंने संकेत दिया कि उनकी रिएंट्री हो सकती है।
भाषा विवाद पर झारखंड सरकार को घेरा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने झारखंड में भोजपुरी औऱ मगही भाषा को लेकर चल रहे विवाद पर झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि इस तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए। दोनों राज्य एक परिवार की तरह है। भले ही उनका बंटवारा हो गया है। उन्होंन भोजपुरी भाषा के विरोध पर पलटवार करते हुए कहा कि भोजपुरी बिहार के अलावा यूपी समेत दुनिया के अन्य मूल्कों में बोली जाती है। झारखंड में भी दोनों भाषाएं बोलीं जाती रही हैं। इस तरह भाषा के नाम पर द्वेष फैलाने की कोई जरूरत नहीं है।
दरअसल नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के बीच ये मुलाकात लंबे अरसे बाद बताया जा रहा है। 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान सीएम नीतीश के करीब आए पीके को बिहार सीएम ने अपनी पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया था। पार्टी में उनके इतनी बड़ी हैसियत से कुछ सीनियर नेता नाखुश भी थे। जो बाद में काफी बढ़ गई और अंत में पीके को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बताया जाता है कि जदयू में रहने के दौरान बीजेपी के खिलाफ उनकी बयानबाजी से बीजेपी नेतृत्व सहज नहीं थी, लिहाजा सीएम नीतीश कुमार को ये कदम उठाना पड़ा।