Bihar Politics: भाजपा के अंदर की लड़ाई खुलकर बता रहे, JDU में ऐसी आशंका कर रहे खत्म
Bihar Politics: बिहार के सीएम नीतीश कुमार एक साथ इतने मोर्चे पर खेलेंगे, यह लंबे समय से साथ रही भारतीय जनता पार्टी को अंदाजा नहीं था। अब नजर नीतीश के अगले कदम पर होगी।
Bihar Politics: इस बार वाले नीतीश कुमार 2015 वाले नहीं हैं। बिहार में सबसे लंबे समय तक उनके साथ सरकार में रही भारतीय जनता पार्टी को अब थोड़ा-थोड़ा अहसास हो रहा है। साफ लग रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बार महागठबंधन के साथ पूरी तरह से हैं। वह पीछे देख ही नहीं रहे। सिर्फ आगे देख रहे हैं। इतना आगे कि जदयू में आरसीपी सिंह के नाम पर मोर्चा खुलने के पहले बंद कर दिया। आगे कोई जाति या क्षेत्र के नाम पर मोर्चा खोले, इससे पहले पैबंद लगा रहे।
इसके साथ ही, अब पटना से दिल्ली से अपनी विपक्षी पार्टी भाजपा की पोल खोल रहे हैं। जो अब तक कभी नहीं कहा, वह कह रहे हैं। ताकि, भाजपा के अंदर की कसमसाहट खुले और फायदा मिले। यह फायदा 2025 में प्रस्तावित बिहार विधानसभा चुनाव से पहले 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव में मिले, यही प्राथमिक लक्ष्य है।
सुशील मोदी और नंदकिशोर यादव का नाम यूं ही नहीं लिया
बिहार विधानसभा में बहुमत के बहाने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बहुत कुछ कहा, लेकिन भाजपा के अंदर की लड़ाई सामने लाकर उन्होंने नई चर्चा छेड़ दी। ऐसी चर्चा, जो भाजपा में हो तो रही थी लेकिन बंद कमरे में। यदा-कदा। लेकिन, अब जब सदन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुलकर कह दिया तो भाजपा के अंदर वह लोहा फिर गरम हो गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक नाम बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का लिया और दूसरा पूर्व मंत्री नंद किशोर यादव का।
केंद्र के दखल से नीतीश असहज
पिछली बार जब महागठबंधन की सरकार बनी थी तो चार दर्जन से ज्यादा बार प्रेस कांफ्रेंस कर सुशील कुमार मोदी ने राष्ट्रीय जनता दल के साथ नीतीश कुमार की असहजता को जगजाहिर किया था। नीतीश ने बीच में ही महागठबंधन छोड़ एनडीए का दामन थामा तो जाहिर तौर पर सुशील कुमार मोदी उनके डिप्टी पहले की तरह बन गए। तब केंद्र ने दखल नहीं के बराबर की तो सब कुछ वैसे ही हुआ, जैसा नीतीश चाहते थे। लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव में कुछ भी नीतीश के हिसाब से नहीं हो रहा था। कुछ हद तक हथियार आरसीपी सिंह भी बने, लेकिन नीतीश की असहजता भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की बिहार में सीधी दखल के कारण थी।
दर्द खुलकर बयां
नीतीश की इच्छा के विरुद्ध सुशील कुमार मोदी से उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली गई। नीतीश इसके सख्त खिलाफ थे, लेकिन तब यह बात मनवाने के लिए भाजपा मुख्यालय से केंद्रीय मंत्री और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भेज दिया गया। राजनाथ सुशील मोदी के समर्थन-विरोध में भाजपा विधायकों के बीच ड्रॉ निकालने वाले थे, लेकिन सीधे फैसला ही आ गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बार जब एनडीए से निकल महागठबंधन की सरकार बनाई तो यह दर्द खुलकर बयां किया।
लहजा कोई हो, संदेश साफ था कि वह सुशील कुमार मोदी को साथ रखना चाहते थे ताकि भाजपा की ओर से कोई दिक्कत-परेशानी नहीं आए। मुख्यमंत्री ने यह भी जता दिया कि उन्हें असहज रखने के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सुशील कुमार मोदी को बिहार की राजनीति से ही गायब कर दिया। सुशील मोदी को लेकर नीतीश का यह दर्द बहुत सारे लोग जानते थे, इस समय इसे सिर्फ फिजा में वापस लाया गया।
नंद किशोर यादव का नाम उछाल, नमक छिड़का
नई जानकारी नीतीश कुमार ने यह दी कि उनसे विधानसभा अध्यक्ष के लिए नंद किशोर यादव के नाम पर चर्चा हुई थी, इसलिए वह विजय कुमार चौधरी से वह पद वापस लेने को तैयार भी हुए थे। नंद किशोर यादव 2020 की एनडीए सरकार से उसी तरह गायब कर दिए गए थे, जैसे सुशील कुमार मोदी या डॉ. प्रेम कुमार। बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और एनडीए की बिहार सरकार में हर बार मंत्रीपद के प्रबल दावेदार रहे नंद किशोर यादव को 2020 की एनडीए सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया और न विधानसभा अध्यक्ष ही। अब महागठबंधन के मुख्यमंत्री बनने के बाद बहुमत साबित करने के दौरान नीतीश कुमार ने भाजपा के उस जख्म पर भी नमक छिड़क दिया है। उन्होंने साफ जताया कि उनकी पसंद या उनसे अच्छा रिश्ता रखने वालों को भाजपा ने छांट-छांटकर बाहर कर दिया था ताकि वह मुख्यमंत्री बनकर भी असहज रहें। सुशील मोदी का नाम हो या नंद किशोर यादव का, कोई छोटा नहीं। दोनों खांटी भाजपाई हैं, इसलिए इनके टूटने की आशंका नहीं लेकिन फिजा में यह चर्चा निकली है तो भाजपा के अंदर अंतर्कलह के अंकुर फूटने का डर तो बन ही गया है।
जदयू में अंतर्कलह पर पैबंद लगा रहे
इस बार महागठबंधन सरकार में जनता दल यूनाइटेड (JDU) के मंत्री कम हैं और राजद के ज्यादा। इस फैसले को लेकर पार्टी के अंदर सब कुछ सहज नहीं था। इसलिए, चर्चा है कि आयोगों, बोर्डों, समितियों के मंत्रीस्तरीय पदों का बंटवारा जल्द कर कुछ बड़े नामों को संतुष्ट किया जाएगा। इसके बाद ऐसे कुछ नाम बच सकते थे, जिन्हें कोई पद देकर फिलहाल संतुष्ट भी किया जा सकता हो और इस पद के जरिए पार्टी का भी कुछ भला हो। ऐसे नामों की सूची बनाकर प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने जिला के जिला प्रभारियों का पुनर्गठन तेजी से जारी कर दिया। इसमें पूर्व मंत्रियों रमेश ऋषिदेव, जय कुमार सिंह, भगवान सिंह कुशवाहा, अजीत चौधरी आदि का भी नाम है। जिला प्रभारी का पद जिलाध्यक्ष से इस लिहाज से बड़ा होता है क्योंकि यह राज्य इकाई के प्रतिनिधि के रूप में समीक्षा के लिए जिलाध्यक्षों से समन्वय करते हैं।
इस सूची की खास बात यह भी है कि जहां जिलाध्यक्ष पिछड़ी जाति से थे और विधानसभा क्षेत्र में प्रभाव अगड़ी जाति का है, वहां के प्रभारी के रूप में फॉरवर्ड नेता को आगे किया गया है। इसके साथ ही एक और गणित है कि सूची में शामिल सभी 41 संगठन जिलों में दो जिला प्रभारियों की नियुक्ति भी जातीय प्रभाव के हिसाब से की गई है।