Bihar Government: नीतीश की आगे की राह में कई चुनौतियां, राजद को जंगलराज और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरेगी भाजपा

Bihar Government: नीतीश के एनडीए को छोड़ने के फैसले को भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इस कदम के जरिया नीतीश ने भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता का बड़ा संदेश देने की कोशिश की है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2022-08-11 06:32 GMT

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (फोटों न्यूज नेटवर्क)

Bihar Government: भाजपा का साथ छोड़ने के बाद नीतीश कुमार ने आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल ली है। राजद नेता तेजस्वी यादव की एक बार फिर राज्य के डिप्टी सीएम पद पर ताजपोशी हो गई है। नीतीश के एनडीए को छोड़ने के फैसले को भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इस कदम के जरिया नीतीश ने भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता का बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। भाजपा का साथ छोड़ने के बाद नीतीश ने बड़ी आसानी से एक बार फिर मुख्यमंत्री बने रहने का सियासी बंदोबस्त तो कर लिया है मगर उनकी आगे की सियासी राह काफी चुनौतियों भरी मानी जा रही है। 

राजद के साथ मिलकर वे पूर्व में भी सरकार बना चुके हैं मगर उन्हें अलग राह चुनने के लिए मजबूर होना पड़ा था। पहले जिन कारणों से उन्होंने अलग रास्ते पर जाने का फैसला किया था, वैसे हालात फिर पैदा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसीलिए सियासी जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार भाजपा को बड़ा झटका देने में भले ही कामयाब हो गए हैं मगर उन्होंने कांटों भरा ताज पहना है और आने वाले दिनों में उन्हें कई तरह के दबाव झेलने पड़ेंगे। भाजपा ने भी राजद के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश को घेरने की बड़ी रणनीति तैयार की है। 

हमेशा समझौते के लिए मजबूर हुए नीतीश 

2019 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार के दौरान राजद पर तीखा हमला बोला था। राजद के राज को वे जंगलराज बताते रहे हैं मगर एक बार फिर सियासी मजबूरी ने उन्हें राजद के साथ ही मिलकर सरकार बनाने के लिए विवश कर दिया। अपने सियासी जीवन के दौरान नीतीश बार-बार यह कहते रहे हैं कि वे करप्शन और कम्युनलिज्म, इन दोनों मुद्दों पर कभी समझौता नहीं कर सकते। वैसे यह अजीब विडंबना है कि नीतीश को हमेशा समझौते के लिए मजबूर होना पड़ता है। नीतीश कुमार बिहार में कभी पूर्ण बहुमत पाने में कामयाब नहीं हो सके।

इसी कारण सरकार बनाने के लिए उन्हें हमेशा समझौता करना पड़ा। विपक्षी दलों की ओर से भाजपा पर हमेशा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाया जाता रहा है। नीतीश कुमार अभी तक आठ बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं और इनमें से छह बार उन्होंने भाजपा की मदद से ही सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की है। विरोधी दलों की ओर से भले ही भाजपा पर धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ राजनीति के आरोप लगाए जाते रहे हैं मगर नीतीश कुमार ने भाजपा की मदद से लंबे समय तक सत्ता का सुख भोगा है।

लालू परिवार को लेकर जवाब देना मुश्किल 

नीतीश कुमार की सियासी मजबूती का एक बड़ा कारण यह भी है कि उन पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद का आरोप कभी नहीं लग सका। नीतीश कुमार हमेशा भ्रष्टाचार को किसी भी सूरत में बर्दाश्त न करने की बात कहते रहे हैं। ऐसे में राजद के साथ भविष्य में उनकी पटरी कैसे बैठ पाएगी, यह भी देखने वाली बात होगी। राजद विरोधी और खासकर भाजपा की ओर से लालू यादव के परिवार को भ्रष्ट परिवार की संज्ञा दी जाती रही है। लालू यादव चारा घोटाले में बुरी तरह फंसे हुए हैं और उनके परिजनों पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं।

रेलवे में नौकरी देकर लोगों की जमीन हथियाने का मामला भी काफी चर्चाओं में रहा है। राजद नेता तेजस्वी यादव नीतीश के साथ डिप्टी सीएम पद की शपथ ली है मगर वे भी भ्रष्टाचार के मामले में घिरे हुए हैं। अब सियासी राहें अलग होने के बाद भाजपा ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने का फैसला किया है। ऐसे में आने वाले दिनों में नीतीश की मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है। अगर वे इस मामले में कोई कदम उठाने से पीछे हटे तो उनकी भ्रष्टाचार विरोधी छवि को भी बट्टा लगेगा।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरेगी भाजपा 

नीतीश कुमार के साथ गठबंधन टूटने के बाद भाजपा नई रणनीति पर काम करने में जुट गई है। भाजपा अब कानून व्यवस्था से लेकर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर महागठबंधन सरकार को कठघरे में खड़ा करने की मुहिम शुरू करेगी। भाजपा ने पिछली सरकार के जंगलराज, भ्रष्टाचार और नीतीश के अवसरवाद को जोर-शोर से उठाने का फैसला किया है। पार्टी का मानना है कि इससे राजद के साथ जाने पर नीतीश कुमार की छवि भी काफी प्रभावित होगी।

नीतीश कुमार खुद अतीत में राजद पर जंगलराज का बड़ा आरोप लगाते रहे हैं और अब भाजपा इसी पिच पर धुआंधार बैटिंग करने की तैयारी कर रही है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा की ओर से उठाए जाने वाले सवालों का जवाब देना नीतीश के लिए आसान नहीं होगा। इसीलिए माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में नीतीश कुमार की सियासी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 

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