Lok Sabha Election 2024: क्या बिहार में नीतीश-तेजस्वी का महागठबंधन कर देगा भाजपा का सफाया ?

Lok Sabha Election 2024: बिहार की सियासत में अंगद की पांव की तरह जमे नीतीश ऐसा सोचने वाले लोगों को बहुत जल्द गलत साबित करने वाले थे। 9 अगस्त को वो तारीख आ ही गई।

Update:2022-08-16 19:13 IST

 बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार- डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव: Photo- Social Media

Bihar Politics: राजनीति और क्रिकेट के बारे में आम कहावत है कि यहां पासा आखिरी समय में भी पलट जाता है। कुछ माह पहले लखनऊ के एक स्टेडियम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) और उनकी कैबिनेट शपथ ले रही थी। पूरी मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) छाए हुए थे। इस दौरान मंच पर सभी भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी आसीन थे। इस समारोह में एक और शख्स शामिल हुआ था, पड़ोसी राज्य बिहार के सीएम और कभी एनडीए (NDA) की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी रही जदयू के नेता नीतीश कुमार।

अमूमन अन्य राज्यों में होने वाले शपथग्रहण समारोह (Oath taking ceremony) से कन्नी काटने वाले नीतीश जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले, तब सारे न्यूज चैनल के कैमरे उनकी तरफ मुड़ गए। उन्होंने जिस अंदाज में पीएम मोदी का अभिवादन किया, उसने बिहार की सियासत के साथ–साथ देश की सियासत में गर्माहट ला दी थी। लोग कहने लगे कि बिहार सीएम (Bihar CM) ने अब प्रधानमंत्री का वर्चस्व स्वीकार कर लिया है। लेकिन बिहार की सियासत में अंगद की पांव की तरह जमे नीतीश ऐसा सोचने वाले लोगों को बहुत जल्द गलत साबित करने वाले थे। 9 अगस्त को वो तारीख आ ही गई जब नीतीश ने बिहार में बीजेपी के पैरों तले से सियासी जमीन खिसका दी और उसे अलग-थलग कर दिया।

पीएम मोदी का अभिवादन करते हुए बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार: Photo- Social Media

2024 के चुनाव से पहले की बड़ी सियासी घटना

राजनीतिक जानकार बिहार में हुए इस सियासी बदलाव को अगले आम चुनाव से पहले बड़ी राजनीतिक घटना मान रहे हैं। क्योंकि नीतीश कुमार ने अपने उस सहयोगी को पटखनी दी थी जो देश में सरकारों को गिराने और राजनीतिक प्रबंधन में माहिर है। ये अहम इसलिए भी है क्योंकि भारतीय राजनीति में ये कहावत आम है कि दिल्ली की सत्ता में कौन बैठेगा ये काफी हद तक यूपी (80 सीटें) और बिहार (40सीटें) तय करती हैं। साल 2014 और साल 2019 में पीएम मोदी की अगुवाई में बीजेपी को मिला प्रचंड जनादेश का मजबूत बेस यही दोनों राज्य हैं।

साल 2014 के लोकसभा में बीजेपी को 282 सीटों में से 93 सीटें इसी दोनों राज्य से प्राप्त हुई थी। इसके बाद साल 2019 के आम चुनाव में एनडीए को इन दोनों राज्यों से 105 सीटें प्राप्त हुई थीं। एनडीए ने बिहार में लगभग क्लीन स्वीप कर दिया था। 40 में से 39 लोकसभा सीटें उसके खाते में गई थी। इसलिए नीतीश का एनडीए कैंप को छोड़ना बीजेपी के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।

बिहार की राजनीति और नीतीश फैक्टर

महागठबंधन बिहार में बीजेपी की संभावनों को कैसे चोट पहुंचा सकता है, इससे पहले बिहार की राजनीति का स्वरूप और उसमें नीतीश कुमार की अहमियत को पहले समझना होगा। नब्बे के दशक में कांग्रेस के खात्मे के बाद बिहार में जो गठबंधन का युग शुरू हुआ वो आज तक जारी है। बिहार की राजनीति में लंबे समय से किसी दल ने अपने बलबूते सरकार नहीं बनाई है। यहां तीन प्रमुख दल हैं –राजद, जदयू और बीजेपी। इन तीनों में से जो दो दल आपस में मिलते हैं, उनका खेमा बिहार में अपनी सत्ता कायम करने में सफल रहता है। एनडीए (जदयू और बीजेपी) और महागठबंधन (जदयू और राजद) इसका उदाहरण है।

साल 2005 से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) बिहार की राजनीति (Bihar politics) के सबसे ब़ड़े खिलाड़ी हैं। साल 2005 से लेकर अब तक देश में न जाने कितने सियासी तूफान आये लेकिन उन्होंने अपनी सत्ता बरकरार रखी। केंद्र में कांग्रेस की लहर हो या नरेंद्र मोदी की लहर बिहार की सत्ता से उन्हें कोई डिगा नहीं पाया। इसकी बड़ी वजह सुशासन बाबू का 16 प्रतिशत का वोटबैंक है। नीतीश के पास अपनी जाति कुर्मी के 10 प्रतिशत और अन्य अति पिछड़ी जातियों के छह प्रतिशत वोट हैं।

इसके अलावा उन्होंने अपनी जो छवि सुशासन बाबू की बनाई है, वो लगभग समाज के हर तबके को मंजूर है। इसका कोई विकल्प बीजेपी और राजद के पास नहीं है। बीजेपी से जहां अल्पसंख्यक वर्ग दूर रहता है वहीं राजद को सवर्ण समाज हमेशा से संदेह की दृष्टि से देखता रहा है। इसके अलावा आंकड़े गवाह हैं कि नीतीश कुमार की पार्टी जदयू साल 2014 (16 प्रतिशत) का लोकसभा चुनाव छोड़कर बिहार के विभाजन के बाद जितने भी आम चुनाव हुए हैं, सबमें उसका वोट प्रतिशत 22 प्रतिशत से अधिक रहा है।

लालू प्रसाद यादव: Photo- Social Media

महागठबंधन क्यों कर सकता है बीजेपी का सफाया

बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और उनकी पार्टी की पकड़ किसी से छिपी नहीं है। लंबे समय से बिहार की सत्ता से बाहर रहने के बावजूद पार्टी के जनाधार में कोई कमी नहीं आई है। नीतीश के कम होते जनाधार और बीजेपी के उभार ने राज्य की 17 फीसदी मुस्लिम आबादी में पार्टी की पैठ को और गहरी कर दी है। ऐसी सूरत में जब नीतीश अपने बेस वोट के साथ उनके साथ मिलते हैं तो फिर वह गठबंधन बिल्कुल अपराजेय हो जाता है। साल 2015 का विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है। जब पीएम मोदी की तमाम धुंआधार रैलियां और बीजेपी की आक्रमक प्रचार रणनीतियां काम नहीं आईं और पार्टी सहयोगी दलों के साथ कुल 243 सीटों में से मात्र 58 सीटें ही जीत पाईं।

वहीं महागठबंधन ने 178 सीट हासिल किया था। इतना भारी बहुमत महागठबंधन के पक्ष में पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित और मुस्लिम तबके की गोलबंदी के कारण हुआ था। जो अगर 2024 में हो जाए, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। क्योंकि बिहार में सामाजिक न्याय अब भी एक बड़ा मुद्दा है और इसके बड़े चेहरे अभी भी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार हैं। बिहार को समाजवादी राजनीति का आखिरी किला भी कहा जाता है। इन्हीं जटिस सियासी समीकरणों के कारण उत्तर भारत और हिंदी पट्टी में बिहार एकमात्र राज्य रह गया है, जहां बीजेपी अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई है।

यूपी की तरह बिहार में भी फेल होगा महागठबंधन ?

देश में अक्सर यूपी –बिहार को लगभग सभी मुद्दों पर एक तराजू में तौलने का रिवाज रहा है। लेकिन दोनों राज्यों की सियासत में हमेशा से एक बड़ा फर्क रहा है। ये वही फर्क है जिसके कारण यूपी में कभी तीसरे नंबर की पार्टी रही बीजेपी अचानक आज वहां की सबसे बड़ी सियासी ताकत बन गई और बिहार में लंबे समय तक नंबर दो और अभी नंबर 1 होने के बावजूद बीजेपी सबसे बड़ी ताकत नहीं बन पाई । यूपी की राजनीति की तरह बिहार में हिंदुत्व की जड़ें उतनी गहरी नहीं है। यहीं की राजनीति आज भी समाजवाद और जातीय समीकरणों के ईद-गिर्द घुमती है।

बीजेपी के पास इस पिच पर बैटिंग करने के लिए कोई मजबूत चेहरा नहीं है जो नीतीश और लालू जैसे धुरंधरों से टक्कर ले सके। इसके उलट यूपी में हिंदुत्व की राजनीति हावी है। ये इतनी मजबूत है कि इसने सपा और बसपा जैसे मजबूत जातीय आधार वाले गठबंधन को भी ध्वस्त कर दिया । वहीं बात करें चेहरे की तो बीजेपी के पास अब राज्य में सीएम योगी आदित्यनाथ के रूप में एक मजबूत चेहरा मिल चुका है।

राज्य में जिसकी सरकार लोकसभा में उसे फायदा

बिहार के विभाजन के बाद से अब तक देश में जितने भी लोकसभा चुनाव हुए हैं, उनमें से केवल एक को छोड़कर हर बार उसी दल ने जीत हासिल की है जिसकी राज्य में सरकार रही है। साल 2004 में जब बिहार की सीएम राबड़ी देवी थीं तब राजद और उनके सहयोगियों को 40 में से 29 सीटें मिली थी। साल 2009 में सीएम नीतीश कुमार के रहते हुए देशभर में बुरी तरह हारने वाली एनडीए ने बिहार में 31 सीटें जीती थीं।

हालांकि, साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान त्रिकोणीय संघर्ष हुआ था और जिसमें सत्ताधारी जदयू को महज दो सीटें हासिल हुई थीं। इसके बाद फिर साल 2019 के आम चुनाव में एकबार फिर एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था। राजद का खाता भी नहीं खुल पाया था। 

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