मोदी सरकार में चीन से आई खूब FDI, मनमोहन सरकार थी कई गुना पीछे

चीन से भारत आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वित्त वर्ष 2019-20 में भारी गिरावट आई है। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि चीन से भारत में निवेश के कई रास्ते हैं।  

Update: 2020-07-03 05:51 GMT

नई दिल्ली लद्दाख में जारी तनाव के बीच चीन के सामान के बहिष्कार की बातें हो रही हैं। लेकिन ग्लोबल डाटा के आंकड़ों के अनुसार पिछले चार साल के दौरान देश की नई कंपनियों (स्टार्टअप) में चीन की कंपनियों के निवेश में करीब 12 गुना की वृद्धि हुई है।

चीन से भारत आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वित्त वर्ष 2019-20 में भारी गिरावट आई है। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि चीन से भारत में निवेश के कई रास्ते हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार की अपेक्षा मोदी सरकार में पिछले 5 सालों में चीन से आने वाला एफडीआई पांच गुना बढ़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि सिंगापुर और हांगकांग के बढ़ते एफडीआई निवेश में बड़ा हिस्सा चीनी निवेश का है।

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इधर एफडीआई करीब आधा

सरकार आंकड़ों के अनुसार 2019-20 वित्त वर्ष में चीन से भारत आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारी गिरावट आई है। पिछले साल चीन से महज 16.3 करोड़ डॉलर (करीब 1220 करोड़ रुपये) का एफडीआई भारत आया था। इसके पहले 2018-19 में चीन से आने वाले एफडीआई 22.9 करोड़ डॉलर और 2017-18 में 35 करोड़ डॉलर था।यानी पिछले दो साल में चीन से आने वाला एफडीआई करीब आधा हो गया है।

 

20 साल में इतना एफडीआई मिला

भारत में एफडीआई के मामले में चीन 18वें स्थान पर है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब पिछले 20 साल में चीन से करीब 2.4 अरब डॉलर का एफडीआई भारत आया है, जिसमें से करीब 1 अरब डॉलर ऑटो सेक्टर में गया है। चीन का एफडीआई कुल एफडीआई का महज आधा फीसदी है। भारत में एफडीआई के मामले में टॉप देश मॉरीशस और सिंगापुर हैं।

 

जानकारों का कहना है कि ...

*चीन से आने वाले एफडीआई में समस्या यह है कि सरकार सिर्फ मेनलैंड चीन के आंकड़े देती है, जबकि काफी चीनी एफडीआई हांगकांग या सिंगापुर होकर आता है। चीन से भारत में कुल एफडीआई 18 से 28 अरब डॉलर का हो सकता है।

*चीनी कंपनियों ने 2005 से 2020 तक भारत में कुल 30.67 अरब डॉलर (करीब 2.29 लाख करोड़ रुपये) का निवेश किया है।

*चीन की कंपनियों द्वारा भारत में कुल निवेश (मौजूदा और नियोजित) करीब 1.98 लाख करोड़ रुपये का है। चीन की कंपनियों ने बड़े पैमाने पर भारतीय स्टार्टअप में निवेश कर रखा है।

* एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय स्टार्टअप्स में 4 अरब डॉलर (करीब 30,000 करोड़ रुपये) के चीनी तकनीकी निवेश का अनुमान लगाया गया है। भारत के कई सेक्टर में चीन की करीब 100 कंपनियां बिजनेस कर रही हैं।

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यूपीए-एनडीए के समय बड़ा अंतर

यूपीए सरकार हो या नरेंद्र मोदी की एनडीए सरकार, दोनों ही चीनी निवेश में हाल तक कोई सख्ती नहीं बरती थी। आंकड़ों के मुताबिक 2000 से मार्च 2014 के बीच चीन से भारत आने वाला एफडीआई महज 40.2 करोड़ डॉलर था (2004 तक यह करीब 20 लाख डॉलर ही था)। तो 2019-20 के 2.4 अरब डॉलर के आंकड़े को देखें तो इसमें करीब 2 अरब डॉलर यानी करीब 15 हजार करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है।

इसी साल अप्रैल में सरकार ने एफडीआई नियमों में बदलाव करते हुए चीन से आने वाले एफडीआई पर सख्ती लगा दी है। नए नियमों के तहत, अब भारत की सीमा से जुड़े किसी भी देश के नागरिक या कंपनी को निवेश से पहले सरकार की मंजूरी लेनी होगी । पहले ऐसा नहीं था। इसके बाद से चीन से कोई भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में नहीं आया है। सरकार इस बात पर भी सख्त है कि चीनी निवेशक किसी तीसरे देश के माध्यम से भारत न आने पाएं।

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दूसरे माध्यमों से निवेश

बात दे कि एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ चीनी फंड भारत में अपने निवेश को सिंगापुर, हांगकांग, मॉरीशस से करते हैं। जैसे पेटीएम में अलीबाबा का निवेश अलीबाबा सिंगापुर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से किया गया है। ये भारत के सरकारी डेटा में चीनी निवेश के तौर पर दर्ज नहीं है।शाओमी जैसे कई चीनी निवेशक सिंगापुर के द्वारा भारत में निवेश कर रहे हैं, जिसकी वजह से यह चीनी एफडीआई के आंकड़े में आने से बच जाता हैं। भारत की कई प्रमुख और लोकप्रिय कंपनियों में चीन की हिस्सेदारी है। इनमें बिग बास्केट, बायजू, डेलहीवेरी, ड्रीम 11, फ्लिपकार्ट, हाइक, मेकमायट्रिप, ओला, ओयो, पेटीएम, पेटीएम माल, पालिसी बाजार, क्विकर, रिविगो, स्नैपडील, स्विगी, उड़ान, जोमैटो आदि प्रमुख हैं। चीन का भारत में कुल विदेशी निवेश करीब 6.2 अरब डॉलर है।

एक अनुमान के अनुसार भारतीय शेयर बाजार में करीब 1.1 अरब डॉलर (करीब 8000 करोड़ रुपये) का निवेश 16 चीनी पोर्टफोलियो निवेशकों ने कर रखा है।हाल में सेबी ने शेयर बाजार के कस्टोडियन से इस बात पर नजर रखी था कि कहीं चीनी कंपनियां भारतीय कंपनियों के शेयर तो नहीं खरीद रहीं।

हाल में सीमा पर तनाव और भारत द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नियमों को सख्त किये जाने से चीनी निवेशकों के लिये थोड़ी समस्या पैदा हुई है। कोरोना वायरस संकट के बीच तनाव वाली कंपनियों के पड़ोसी देशों की कंपनियों द्वारा अधिग्रहण की आशंका को दूर करने के लिये एफडीआई नियमों को सख्त किया गया था।’

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