Chhatisgarh: छत्तीसगढ़ में 'हरा सोना', पीले सोने को भी देता है मात, लोग कर रहे हैं करोड़ों की कमाई

छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता को हरे सोने का नाम दिया गया है। इसका कारण ये है कि इसके बिजनेस से आप सोना-चांदी के बराबर की कमाई कर सकते हैं। यहां के आदिवासी इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमाते हैं।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update: 2022-07-07 11:48 GMT

तेंदूपत्ता। (Social Media) 

Chhatisgarh: छत्तीसगढ़ का नाम सामने आते ही आमतौर पर घने खतरनाक जंगल, आदिवासी और नक्सलियों का जिक्र होता है। इस राज्य में अब तक कई भीषण नक्सली हमले हो चुके हैं। यही वजह है कि यहां के घने जंगलों में दिन में भी जाने से पहले लोग दस बार सोचते हैं। लेकिन इन दिनों छत्तीसगढ़ हरा सोना को लेकर चर्चा में है। जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना, इससे पहले की आप कुछ और सोचें आपको बता दें कि ये कोई धातु नहीं है बल्कि एक किस्म का पत्ता है।

छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता को हरे सोने का नाम दिया गया है। इसका कारण ये है कि इसके बिजनेस से आप सोना-चांदी के बराबर की कमाई कर सकते हैं। यहां के आदिवासी इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमाते हैं। राज्य सरकार को टैक्स के रूप में इससे अच्छी कमाई होती है।

तेंदूपत्ता का क्यों है इतनी मांग

भारत में बीड़ी का सेवन करने वालों की एक बड़ी आबादी है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी खपत काफी अधिक है। ये बीड़ी तेंदूपत्ते से ही तैयार की जाती है। अब आप समझ गए होंगे कि क्यों इसकी इतनी डिमांड है। लोग इसे खरीदने के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों से छत्तीसगढ़ आते हैं। जानकारी के मुताबिक, केवल इनकी तोड़ाई से आदिवासी लोगों को अच्छी कमाई हो जाती है।

छत्तीसगढ़ के जंगलों में मिलने वालो तेंदूपत्ते की क्वालिटी काफी अच्छी होती है, यहां वजह है कि बाजार में इसके मांग काफी अधिक है। कहा जाता है कि यह एक ऐसा कारोबार है कि यदि इसमें थोड़ी भी लापरवाही बरती जाए तो वो इसके गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।

विदेशों में भी है डिमांड

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के अलावा विदेशों में भी छत्तीसगढ़ के तेंदूपत्ते की जबरदस्त डिमांड है। अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे अन्य देशों में इसकी भारी मांग है।

तेंदूपत्ते की तोड़ाई का सीजन

गर्मी के शुरू होते ही यानी अप्रैल माह से आदिवासी लोग तेंदूपत्ते की तोड़ाई करते हैं। बता दें कि एक बोरे में तेंदूपत्ते की एक हजार गड्डी होती है और हर गड्डी में 50 पत्ते होते हैं। इन पत्तों की गड्डियों को धूप में सुखाया जाता है और इससे बीड़ी बनाया जाता है।

लाखों लोग हैं रोजगार के लिए निर्भर

द ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के एक रिपोर्ट के मुताबिक, तेंदूपत्ता से 75 लाख लोगों को तीन माह के लिए रोजगार मिलता है। इसके बाद इन पत्तों से बीड़ी बनाने के दौरान भी करीबन 30 लाख लोगों को रोजगार मिलती है।

पहले तेंदूपत्ता संग्रहण की हालत अच्छी नहीं थी। इस कार्य में लगे आदिवासियों का काफी शोषण भी होता था। लेकिन अब राज्य सरकार द्वारा तवज्जो मिलने पर इसकी हालत काफी बेहतर हुई है। रिपोट्स के मुताबिक, पहले तेंदूपत्ता का मूल्य 400 रूपये प्रति मानक बोरा था। बाद में इसे बढ़ाकर 1500 रूपये प्रति बोरा कर दिया गया। आज की तारीख में तो 4 हजार रूपये प्रति मानक बोरा है। कीमत में इस उछाल से आदिवासियों की आर्थिक स्थिति भी काफी बेहतर हुई है। इसलिए छत्तीसगढ़ के आदिवासी इसे हरा सोना कहते हैं।k

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