Atal Bihari Vajpayee Jayanti: पाकिस्तान के पीएम भी थे अटल के फैन, कहा था- आप तो पाक के भी बन सकते हैं पीएम
Atal Bihari Vajpayee Jayanti: पूर्व प्रधानमंत्री और जनप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी इकलौते ऐसे नेता थे जिन्हें सत्तापक्ष ही नहीं बल्कि विपक्ष के नेता भी पूरा सम्मान दिया करते थे।
Atal Bihari Vajpayee Jayanti: देश के पूर्व प्रधानमंत्री और जनप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म (Atal Bihari Vajpayee Birthday) 1924 में आज ही के दिन हुआ था। पूरे देश में आज उनकी जयंती (Atal Bihari Vajpayee Jayanti) धूमधाम से मनाई जा रही है। वाजपेयी इकलौते ऐसे नेता थे जिन्हें सत्तापक्ष ही नहीं बल्कि विपक्ष के नेता भी पूरा सम्मान दिया करते थे। अपने प्रधानमंत्रित्व काल में वाजपेयी ने लाहौर की बस यात्रा की थी और पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की बड़ी पहल की थी। उस दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (Nawaz Sharif) थे और उन्होंने अटल जी का जोरदार स्वागत किया था। स्वागत करते हुए नवाज शरीफ ने यहां तक कह डाला था कि वाजपेयी साहब, अब तो आप पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं।
अटल की ओर से की गई लाहौर बस यात्रा को भारत और पाक के रिश्ते (India and Pakistan relations) को मजबूत बनाने की दिशा में बड़ा प्रयास माना गया था। हालांकि पाकिस्तान इसके बाद भी शरारत से बाज नहीं आया और कारगिल युद्ध से दोनों देशों के रिश्ते एक बार फिर तनावपूर्ण हो गए।
लाहौर की ऐतिहासिक बस यात्रा
प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी ने 1999 में (Atal Bihari Vajpayee 1999) लाहौर की बस यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच रिश्तों के तनाव को खत्म करने के साथ ही शांति स्थापित करने की जोरदार अपील की थी। उनका कहना था कि दोनों देशों को आपसी कटुता भुलाकर शांतिपूर्ण रिश्तों की पहल करनी चाहिए और एक-दूसरे के विकास के लिए कदम आगे बढ़ाना चाहिए। लाहौर बस यात्रा (lahore bus yatra) के दौरान वाजपेयी का काफी गर्मजोशी के साथ स्वागत और अभिनंदन किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी वाजपेयी के मुरीद हो गए थे और उन्होंने यहां तक कह डाला था कि वाजपेयी साहब अब पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं।
हालांकि यह भी सच्चाई है कि वाजपेयी की ओर से की गई इस पहल के बावजूद पाकिस्तान बाद में दगाबाजी और शरारत से बाज नहीं आया। कारगिल युद्ध के जरिए उसने एक बार फिर वाजपेयी की पहल को छिन्न-भिन्न कर दिया और भारत की पीठ में छुरा घोंपने की कोशिश की। भारतीय सेना भी देश की सुरक्षा के लिए पूरी मुस्तैद थी और यही कारण था कि भारत पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने में कामयाब रहा।
प्रधानमंत्री के रूप में अटल
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996 में (atal bihari vajpayee 1996 election) पहली बार देश की सत्ता संभाली थी। हालांकि उस समय बहुमत न होने के कारण वाजपेयी सिर्फ 13 दिनों तक ही प्रधानमंत्री के पद पर रह सके। 1998 में उन्होंने एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री का दायित्व संभाला, लेकिन इस बार भी वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 13 महीने बाद ही उनकी सरकार एक बार फिर गिर गई। 1999 में अटल की अगुवाई में 13 दिनों की गठबंधन सरकार ने केंद्र की बागडोर संभाली और इस बार वाजपेयी ने 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया।
इस कार्यकाल के दौरान वाजपेयी ने सहयोगी दलों के साथ बेहतर सामंजस्य बनाए रखा। देश की सियासत में वाजपेयी अकेले ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष में भी बराबर और रूप से सम्मान हासिल था। वे जब संसद में बोला करते थे तो सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष के लोग भी पूरे सम्मान के साथ उनकी बातों को सुना करते थे।
भाजपा को मजबूत बनाने में बड़ी भूमिका
भारतीय जनता पार्टी को सशक्त बनाने में अटल की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सिर्फ दो सांसद चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे थे। उस समय अटल पार्टी के अध्यक्ष थे और इस हार ने उन्हें शर्मसार कर दिया था। वे ग्वालियर से खुद भी पराजित हो गए थे। 1984 की हार के बाद उन्होंने ग्वालियर से कभी चुनाव नहीं लड़ा। 1991 के चुनाव में उन्होंने मध्य प्रदेश की विदिशा सीट और लखनऊ सीट से किस्मत आजमाई थी और उन्हें दोनों सीटों पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि बाद में उन्होंने विदिशा सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद वे लगातार पांच बार लखनऊ संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे।
1984 में 2 सीट जीतने वाली भाजपा 1989 के चुनाव में 85 और 1991 के चुनाव में 120 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 161 और 1998 के चुनाव में 182 सीटों पर पहुंच गई। भाजपा को मजबूत बनाने में अटल और आडवाणी की बड़ी भूमिका मानी जाती रही है। भाजपा के मजबूत होने के बाद कांग्रेस का दायरा लगातार सिमटता जा रहा है।