नीलकंठ पर्वत पर खिलता है एक फूल, जिसकी शक्तियों के बारे में जानकर हो जाएंगे दंग
लोग सबसे बड़े तीर्थ स्थल की बात करते हैं तो उसमें सबसे पहले बद्रीनाथ धाम आता है।
लोग सबसे बड़े तीर्थ स्थल की बात करते हैं तो उसमें सबसे पहले बद्रीनाथ धाम आता है। बद्रीनाथ धाम देवी देवताओं की अलौकिक शक्तियों से बंधा है। बद्रीनाथ धाम हिमालय का वह क्षेत्र है जहां अलौकिक अविस्मरणीय अद्भुत शक्तियों से गुलजार है। इस बद्रीनाथ धाम की बर्फीली पहाड़ियों पर इन दिनों ब्रह्म कमल नीलकंठ की तलाश में खिला है।
जिससे बद्रीनाथ धाम की सुंदरता में ब्रह्म कमल ने चार चांद लगा दिया है। भगवान नीलकंठ के दर्शन को पूरे देश और विदेश से हजारों हजार किलोमीटर की यात्रा कर दर्शनार्थी अपना मत्था टेकने पहुंचते हैं। यह यात्रा साहसिक पर्यटकों और आस्थावान तीर्थयात्रियों की पहली पसंद है। हालांकि वर्ष 2020 से कोरोना महामारी के चलते यहां पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की आवाजाही ठप है।
बर्फीली वादियों में नीलकंठ की शोभा बढ़ाने के लिए उगता है यह फूल
बर्फ की चोटियों पर खिलने वाला ब्रह्म कमल फूलों का राजा कहलाता है। यह एक अलौकिक अद्भुत और दुर्लभ प्रजाति का पौधा है। यह मुख्य रूप से भारत की बर्फीली वादियों में नीलकंठ की सुंदरता को चार चांद लगाने के लिए ही उगता है। आपको बता दें कि यह फूल बेहद कम समय के लिए दिखता है। ब्रह्म कमल एक स्थानीय और दुर्लभ फूल वाले पौधे की प्रजाति है जो मुख्य रूप से भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती है। फूल को 'हिमालयी फूलों के राजा' के रूप में भी जाना जाता है। तारा की तरह चमकने वाला ब्रह्म कमल फूल खिलता है देखने में बहुत ही आकर्षक अद्भुत अकल्पनीय है।
अलौकिक शक्तियों का वास है इस फूल में
कलयुग में संजीवनी तो नहीं मिल सकती। लेकिन ब्रह्म कमल नामक फुल में अलौकिक शक्तियों का वास है। इस फुल में अद्भुत चमक है। 'ब्रह्म कमल' नामक फूल के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। इस फूल की खासियत जानकर तो आपको और भी अधिक हैरानी होगी। दरअसल, यह फूल किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं माना जाता। दरअसल इस पुष्प की मदद से ही कई प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं। इस फूल की मदद से बहुत से लोगों का इलाज भी होता है।
बर्फीली वादियों में केवल नीलकंठ पर्वत पर खिलता है यह फूल
नीलकंठ पर्वत चमोली जिले के बदरीनाथ धाम से आठ किलोमीटर की चढ़ाई पार कर हिमालय की 6,596 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नीलकंठ पर्वत को बदरीनाथ, केदारनाथ और सतोपंथ का बेस माना जाता है। नीलकंठ पर्वत ऋषिगंगा नदी का उद्गम स्थल है। यह स्थान 12 माह बर्फ से पटा रहता है। उच्च हिमालीय क्षेत्र होने के चलते यहां हिमालीय जड़ी-बूटियों का संसार मौजूद हैं। इन दिनों ग्लेशियरों के घटने के बाद यहां राज्य पुष्प ब्रहम कमल से नीलकंठ पर्वत की चोटी गुलजार हो गई है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नीलकंठ पर्वत को देवों के देव महादेव के प्रिय स्थलों में माना जाता है
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नीलकंठ पर्वत को देवों के देव महादेव के प्रिय स्थलों में एक माना जाता है। हिन्दू के साथ-साथ विदेशियों के लिए यह स्थान विशिष्ट महत्व रखता है। स्थानीय लोगों के अनुसार कई बार चांदनी रात में पर्वत पर भगवान की तपस्यारत आकृति भी नजर आती है। ब्रह्म कमल का उल्लेख वेदों में भी मिलता है। जैसा कि इसके नाम से ही विदित है। ब्रह्म कमल का नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा जी के नाम पर रखा गया है।
इसे सौसूरिया अब्वेलेटा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बारहमासी पौधा है। यह ऊंचे चट्टानों और दुर्गम क्षेत्रों में उगता है। यह कश्मीर, मध्य नेपाल, उत्तराखंड में फूलों की घाटी, केदारनाथ शिवलिंग क्षेत्र आदि स्थानों में बहुतायत में होता है। यह 3,600 से 4,500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। पौधे की ऊंचाई 70-80 सेंटीमीटर होती है।