Bharat Main kachre Ka Record: भारत के लिए बहुत बड़ी समस्या कचरे का निस्तारण, भविष्य के आंकड़े डराने वाले
देश से प्रतिदिन 25,940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। दिनों दिन बढ़ती आबादी इसे ख़त्म होने नहीं दे रही है।
Bharat Main kachre Ka Record: देश के लगभग सभी शहरों में 'कचरा प्रबंधन' यानि वेस्ट मैनेजमेंट एक बड़ी समस्या के तौर पर उभरा है। केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर इसके निपटान की कई कोशिशें होती रही हैं। लेकिन दिनों दिन बढ़ती आबादी इसे ख़त्म होने नहीं दे रही है। सरकार के प्रयासों के बाद कई निजी कंपनियां विभिन्न शहरों में कचरा प्रबंधन के लिए आगे आई हैं। जिससे अब उम्मीद बनती है कि इस दिशा में सार्थक परिणाम देखने को मिलेंगे। सरकार कचरा प्रबंधन में जुटी निजी कंपनियों को प्रोत्साहन के तौर पर इंसेंटिव देने बातें भी करती रही है। दिनों दिन कचरे के बढ़ते ढेर की मुख्य वहज भारत की लगातार बढ़ती आबादी है। आंकड़ों की मानें तो, भारत की शहरी आबादी प्रति वर्ष 3 से 3.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। ऐसे में शहरी कचरे के प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत की दर से बढ़ने की आशंका है। के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली योजना आयोग की समिति ने साल 2014 की एक रिपोर्ट में यह पाया था कि भारत की शहरी आबादी के लिए प्रति व्यक्ति 0.45 किग्रा. प्रतिदिन के आधार पर प्रतिवर्ष 62 बिलियन टन सार्वजनिक ठोस कचरा उत्पन्न होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत प्रत्येक वर्ष 52 मिलियन टन अथवा प्रतिदिन लगभग 0.144 मिलियन टन कचरा उत्पन्न करता है। इसमें से लगभग 23 मिलियन टन कचरे को भराव क्षेत्र में ले जाया जाता है अथवा विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल कर रिसाइकल किया जाता है।
प्रतिदिन 25,940 टन प्लास्टिक कचरा
क्या आपको पता है कि देश से प्रतिदिन 25,940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि कचरा प्रबंधन क्यों जरूरी है। भारत के शहरों से प्रतिदिन निकलने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा लगभग 25,940 टन है। इसमें से 15,384 टन यानि 60 प्रतिशत कचरे को प्रतिदिन जमा कर उन्हें ट्रीट किया जाता है।
आंकड़ों में अटकलबाजी ज्यादा
भारत में कचरे से संबंधित आंकड़ों की समस्या यह है कि ये सभी आंकड़े सीपीसीबी की 2004-05 की 59 शहरों जिनमें 35 महानगर और 24 राज्य की राजधानियों की रिपोर्ट से लिए गए हैं। जिसमें नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने सहायता की है। यह देश में उत्पन्न ठोस कचरे के वास्तविक आंकड़े और अनुमानों की आखिरी रिपोर्ट थी। इससे पता चलता है कि देश में उत्पन्न कचरे के अनुमान काफी हद तक अटकलबाजी पर ही आधारित हैं।
भराव क्षेत्र भी स्वच्छता मानदंडों के अनुसार नहीं
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुमानों के अनुसार, देश के 90 फीसदी शहरों में जहां कचरा जमा करने की व्यवस्था है। वहां इनका निपटान भराव क्षेत्र में किया जाता है। अब बोर्ड यह भी बताता है कि जिन भराव क्षेत्र में कचरे को जमा किया जाता है , वह भी निर्धारित स्वच्छता मानदंडों के अनुसार नहीं बनाए गए हैं। साल 2008 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शहरों की निगरानी के दौरान पाया था कि 59 में से 24 शहर 1,900 हेक्टेयर में फैले भराव क्षेत्र का इस्तेमाल कर रहे थे। जबकि शेष 17 ने भी भराव क्षेत्रों का निर्माण करने की योजना बनाई थी।एक अन्य समस्या है कि शहरों में जमीन की पहले से कमी है, ऐसे में कचरे का निस्तारण विकराल रूप ले लेता है। जगह की इसी कमी को देखते हुए नगरपालिकाएं कचरे के निपटान के लिए अन्य जगहों की खोज कर रहे थे।
40 प्रतिशत कचरे खुले में फेंके जा रहे
रिपोर्ट्स की मानें तो, हमारे देश में प्लास्टिक कचरे का 60 फीसदी हिस्सा ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से पहले रिसाइकिल कर साफ किया जा रहा है। शेष 40 प्रतिशत कचरों को नदी, तालाब और खुले में जमीन पर फेंक दिया जाता है। ये बातें, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संसद में पेश रिपोर्ट के आंकड़ों से सामने आई है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में प्लास्टिक कचरे का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
प्लास्टिक कचरा मतलब 'विषैला बम'
एक रिपोर्ट के अनुसार रि साइकिल और साफ़ नहीं हो पाने की स्थिति में प्लास्टिक कचरा भविष्य में देश के लिए एक विषैले टाइम बम की भांति साबित होगा। इस स्थिति का सरकार को अनुमान पहले से है । इससे बचने के लिए मंत्रालय ने 'प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016' अधिसूचित कर 50 माइक्रोन से कम आकार के प्लास्टिक थैले सहित अन्य उत्पादों पर कड़े प्रतिबंध लागू किए। इन्हें 21 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक लागू किया। शोधित प्लास्टिक कचरे से ईंट बनाकर भवन निर्माण तथा इसके तरल रूप का इस्तेमाल सड़क निर्माण में करना भी सुनिश्चित किया गया है।
... तो हैदराबाद-मुंबई-चेन्नई के बराबर भराव क्षेत्र की जरूरत
साल 2009 में आर्थिक कार्य विभाग के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी स्थिति पत्र में बताया गया है कि भारत की शहरी आबादी पहले ही प्रतिदिन 80,000 मीट्रिक टन कचरे का उत्पादन कर रही थी। इस अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2047 तक भारत एक वर्ष में 260 मिलियन टन कचरे का उत्पादन करेगा, जिसका निपटान करने के लिए 1,400 वर्ग किलोमीटर के भराव क्षेत्र की जरूरत होगी। एक अनुमान के मुताबिक, यह क्षेत्र हैदराबाद, मुंबई और चेन्नई को मिलाकर बने क्षेत्र के बराबर होगा।
नियमावली में क्या?
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली ,2016 में यह स्वीकार किया गया है कि भराव क्षेत्र का इस्तेमाल केवल ऐसे कचरे के लिए किया जाएगा, जिसका दोबारा उपयोग न किया जा सके।इसे फिर नवीनीकृत न किया जा सके। साथ ही, जैविक तौर पर नष्ट होने योग्य न हो, ज्वलनशील न हो तथा रासायनिक प्रतिक्रिया न करता हो। इसमें यह भी कहा गया है कि भराव क्षेत्र से कचरा समाप्त करने के उद्देश्य को हासिल करने के लिए कचरे में पुन: उपयोग या उसे नवीनीकृत करने के प्रयास किए जाएंगे।