Bharat me Prajnan Dar: भारत में हिन्दू मुस्लिम प्रजनन दर समान लेवल पर पहुँची
भारत में अब हिन्दुओं और मुस्लिमों में प्रजनन दर में बहुत मामूली अंतर रह गया है।
नई दिल्ली: भारत में मुस्लिमों और हिन्दुओं की जन्म दर या प्रजनन दर (prajnan dar) न सिर्फ घट रही है बल्कि एक समान लेवल पर पहुँचने वाली है। अब हिन्दुओं और मुस्लिमों में प्रजनन दर (prajnan dar) में बहुत मामूली अंतर रह गया है। अन्तर भले ही कम रह गया है। लेकिन कुल आबादी में धार्मिक समुदायों की संख्या में मामूली अंतर ही आया है। वाशिंगटन स्थित प्यू रिसर्च सेंटर (pew research center) की एक लेटेस्ट स्टडी ने यह निष्कर्ष निकाला है।
इस रिसर्च में पता किया गया था कि कुल आबादी में किस धार्मिक समुदाय की क्या स्थिति है। जनसँख्या में धार्मिक संयोजन का पता लगाने के लिए प्रजनन दर (prajnan dar), माइग्रेशन और धर्म परिवर्तन जैसे तीन प्रमुख बिन्दुओं पर फोकस किया गया। इसके लिए 2011 की जनगणना तथा नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों का अध्ययन किया गया था।
जहाँ तक प्रजनन दर (prajnan dar) की बात है तो स्टडी से पता चला है सबसे ज्यादा प्रजनन दर रखने वाले मुस्लिम समुदाय में ही सर्वाधिक गिरावट देखी गयी है। 1992 से 2015 के बीच मुसलमानों की कुल प्रजनन दर 4.4 से घट कर 2.6 पर गयी । जबकि इसी अवधि में हिन्दुओं की प्रजनन दर 3.3 से घट कर 2.1 पर पहुँच गयी। इससे पता चलता है कि भारत के धार्मिक ग्रुपों में प्रजनन दर में अब पहले जैसा भरी अंतर नहीं रह गया है। 1992 में मुस्लिमों में प्रजनन दर (prajnan dar) 4.4 थी । जबकि हिन्दुओं की 3.3 थी। प्रजनन दर से मतलब है कि शिशु जनने योग्य एक महिला अपने जीवन काल में कितने शिशुओं को जन्म देती है।
राष्ट्रीय औसत
भारत में राष्ट्रीय औसत प्रजनन दर 2.2 है ,जो आर्थिक रूप से संपन्न देशों की तुलना में काफी ज्यादा है। मिसाल के तौर पर अमेरिका में औसत प्रजनन दर 1.6 है। लेकिन यह गैप भी लगातार कम होता गया है। भारत में 1951 में प्रजनन दर 5.9 और 1992 में 3.4 थी।
अल्पसंख्यकों की स्थिति
भारत के सभी बड़े धार्मिक समूहों में वृद्धि की दर घटी तो है । लेकिन सबसे बड़े बदलाव धार्मिक अल्पसंख्यक ग्रुपों में आये हैं। जबकि इन ग्रुपों में वृद्धि दर कुछ दशक पहले हिन्दुओं की अपेक्षा ज्यादा तेज थी। 1951 से 1961 के बीच मुस्लिम जनसँख्या 32.7 फीसदी की दर से बढ़ी और ये भारत की कुल बढ़त 21.6 फीसदी की तुलना में 11 फीसदी ज्यादा थी। लेकिन अब यह गैप कम हो गया है।
2001 से 2011 के बीच मुस्लिमों और कुल जनसँख्या ग्रोथ के बीच सिर्फ 7 फीसदी अंक का अंतर रह गया। इस अवधि में मुस्लिमों की जनसँख्या वृद्धि 24.7 फीसदी रही । जबकि भारत की जनसँख्या 17.7 फीसदी की रफ़्तार से बढ़ी। हिन्दुओं और मुस्लिमों की अपेक्षा, ईसाइयों की जनसँख्या 2001 से 2011 के बीच सबसे धीमे रफ़्तार से बढ़ी। इस समुदाय की वृद्धि 15.7 फीसदी रही। आज़ादी के बाद वाले दशक में ईसाइयों की जनसँख्या में वृद्धि 29.0 फीसदी रही थी।
1951 से 2011 के बीच मुस्लिमों की तादाद 4.4 फीसदी अंक बढ़ कर कुल जनसख्या का 14.2 फीसदी हो गयी । जबकि हिन्दुओं की तादाद 4.3 फीसदी अंक घट कर कुल आबादी की 79.8 फीसदी हो गयी।
अन्य धार्मिक ग्रुपों की तुलना में भले ही किसी समुदाय की वृद्धि धीमी रही हो या घटी हो लेकिन स्वतंत्र रूप से भारत के सभी छह बड़े धार्मिक समुदायों – हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैनियों, की संख्या इस अवधि में बढ़ी है। इसमें सिर्फ पारसी ही अपवाद हैं जिनकी तादाद 1951 से 2011 के बीच 1,10,000 से घट कर 60 हजार ही रह गयी।
आदिवासी समुदाय
प्यू रिसर्च सेंटर की स्टडी में बताया गया है कि भारत की जनसँख्या में करीब 80 लाख लोग ऐसे हैं ,जो बड़े छह धार्मिक समुदायों में शुमार नहीं हैं। इस केटेगरी में अमूमन आदिवासी लोग हैं। इनमें सर्वाधिक 50 लाख सरना आदिवासी समुदाय के हैं ,जबकि 10 लाख गोंड तथा 5 लाख 10 हजार सारी धर्म के हैं।
लड़का-लड़की में भेद
स्टडी में बताया गया है कि लड़कियों की अपेक्षा लड़के को प्राथमिकता दिए जाने से भी ओवरआल प्रजनन दर प्रभावित होती है। स्टडी के अनुसार गर्भस्थ शिशु के लिंग की जानकारी होने के बाद गर्भपात कराये जाने का नतीजा यह हुआ कि 1970 से 2017 के बीच बच्चियों की जो अनुमानित संख्या होनी थी उसमें दो करोड़ की कमी आ गयी।
स्टडी में कहा गया है कि मध्य भारत में महिलाओं के ज्यादा बच्चे होते हैं , जिसमें बिहार और उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। जहाँ बिहार में कुल प्रजनन दर 3.4 है वहीं यूपी में ये 2.7 है। वहीं तमिलनाडु में ये दर 1.7 तथा केरल में 1.6 है।
स्टडी के अनुसार, वैसे तो माइग्रेशन यानी प्रवासन का भी जनसँख्या में धार्मिक संयोजन पर असर पड़ता है । लेकिन भारत में ऐसी स्थित नहीं हैं। भारत में 50 के दशक से माइग्रेशन का जनसँख्या पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा है। भारत में रहने वाले 99 फीसदी लोग भारत में ही पैदा हुये हैं। देश में आने वालों की तुलना में ३ गुना ज्यादा बाहर चले जाते हैं।
स्टडी ने भारत में रहने वाले अवैध अप्रवासियों की तादाद पर संदेह जताया है और कहा है कि अगर आसपास के मुल्कों से करोड़ों मुस्लिम भारत में आये हैं तो जनसांख्यिकी विज्ञानियों को उसका इम्पैक्ट उन देशो के डेटा में अवश्य नजर आयेगा जहाँ से ये लोग आये हैं। लेकिन ऐसा दिखाई नहीं पड़ा है।
प्यू रिसर्च सेंटर की ये स्टडी रिपोर्ट जून, 2021 को प्रकाशित की गयी थी। प्यू रिसर्च सेंटर एक प्रतिष्ठित संस्था है जो विश्व भर में रिसर्च और अध्ययन करती है।