आ रही कोरोना की एक और वैक्सीन कॉर्बेवैक्स, खास है Biological E का स्वदेशी टीका, कोविशील्ड-कोवैक्सीन से कितनी अलग

Made In India Vaccine Corbevax : कॉर्बेवैक्स एक नए तरह की वैक्सीन है जो एक अलग कैटेगरी के अंतर्गत आती है और अपनी तरह की पहली वैक्सीन है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shivani
Update:2021-07-27 13:32 IST

बायोलॉजिकल ई कॉर्बेवैक्स वैक्सीन (डिजाइन इमेज)

Made In India Vaccine Corbevax: भारत में जल्द ही एक और कोरोना वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) आने वाली है। इस वैक्सीन नाम है कॉर्बेवैक्स (Corbevax) जिसे हैदराबाद की बायोलॉजिकल ई कम्पनी (Biological E) ने डेवलप किया है। अभी तक दुनिया भर में कोरोना की जितनी वैक्सीनें हैं वे एमआरएनए (MRNA) (फाइजर और मॉडर्ना (Pfizer/ Moderna), निष्क्रिय वायरस (कोवैक्सिन /Covaxin), या वायरल वेक्टर श्रेणी (कोविशील्ड / Covishield ) के अंतर्गत आती हैं।

कॉर्बेवैक्स एक नए तरह की वैक्सीन है जो एक अलग कैटेगरी के अंतर्गत आती है और अपनी तरह की पहली वैक्सीन है। बायोलॉजिकल ई कम्पनी इस वैक्सीन को डेवलप कर रही है और भारत सरकार ने इस वैक्सीन की 30 करोड़ डोज़ का एडवांस आर्डर भी दे दिया है। दावा है कि ये वैक्सीन दुनिया की सबसे सस्ती कोरोना वैक्सीन होगी। इस वैक्सीन के ट्रायल में देखा गया है कि ये कोविड से होने वाली गंभीर और मध्यम बीमारियों के खिलाफ 90.4 प्रतिशत असरदार है।

स्पाइक प्रोटीन से बनी है वैक्सीन (Spike Protein Based Vaccine)

ये वैक्सीन कोरोनावायरस के एक हिस्से स्पाइक प्रोटीन का उपयोग करके बनाई गई है, जो वायरस की सतह पर रहता है। दरअसल, स्पाइक प्रोटीन कोरोनावायरस को हमारे शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करने, उन्हें दोहराने और बीमारी का कारण बनने की अनुमति देता है। हालांकि, जब स्पाइक प्रोटीन को वायरस से अलग करके शरीर में डाला जाता है, तो ये बिल्कुल भी हानिकारक नहीं होता है।
जैसा कि किसी भी अन्य टीके में होता है, स्पाइक प्रोटीन, जब इंजेक्ट किया जाता है, तो शरीर की प्रतिरक्षा कोशिकाओं को इसके प्रति एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित करने की अनुमति देता है और इस तरह भविष्य में संक्रमण की किसी भी घटना में वायरस से निपटने के लिए तैयार होता है। स्पाइक प्रोटीन जब शरीर में इंजेक्ट किया जाता है, तो शरीर का इम्यून सिस्टम इसके प्रति एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित करने की प्रक्रिया में लग जाता है। और इस तरह ये भविष्य में संक्रमण की किसी भी घटना से निपटने के लिए तैयार हो जाता है।

वैक्सीन बनाने की इस तकनीक का इस्तेमाल पहले भी किया जा चुका है। हेपेटाइटिस-बी का टीका इसी तकनीक पर बना है। स्पाइक प्रोटीन तकनीक का इस्तेमाल नोवावैक्स वैक्सीन बनाने में भी किया जा रहा है।
अभी जो कोरोना वैक्सीन उपलब्ध हैं उनके जरिए भी शरीर के इम्यून सिस्टम को स्पाइक प्रोटीन की तरफ प्रेरित किया जाता है। इस मामले में कॉर्बेवैक्स किसी कोड की बजाय वास्तव में शरीर में प्रोटीन पहुंचाता है। इस वैक्सीन की रिसर्च अमेरिका के बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के नेशनल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिकों द्वारा फरवरी 2020 में शुरू की गई थी।

पहली बार दिया एडवांस ऑर्डर

अभी तक भारत सरकार ने किसी भी वैक्सीन का एडवांस आर्डर नहीं दिया था। आर्डर तभी दिया गया जब वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी थी। कॉर्बेवैक्स के मामले में ये पहली बार है जब भारत सरकार ने आपातकालीन उपयोग की मंजूरी मिलने से पहले ही आर्डर दिया है। सरकार ने 30 करोड़ डोज़ के लिए 1500 करोड़ रुपए का अग्रिम भुगतान किया है। केंद्र सरकार ने इस वैक्सीन के डेवलपमेंट के लिए प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल ट्रायल में मदद भी की है और इस काम में जैव प्रौद्योगिकी विभाग से 100 करोड़ रुपये की सहायता अनुदान भी शामिल है। भारत द्वारा इतना बड़ा ऑर्डर देने की एक बड़ी वजह वैक्सीन की आपूर्ति बढ़ाने में हो रही मुश्किलें हैं।

सबसे सस्ती वैक्सीन (Sabse Sasti Vaccine)
एक रिपोर्ट के मुताबिक, कॉर्बेवैक्स की दो डोज की कीमत 400 रुपए से भी कम होने की संभावना है। यानी ये अभी तक की सबसे सस्ती वैक्सीन होगी। इस वैक्सीन की दो डोज़ लगाई जाएंगी।
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