Coronavirus Third Wave: बच्चों को कोरोना की तीसरी लहर से कितना खतरा, सामने आया AIIMS-WHO का सर्वे
Coronavirus Third Wave: कोरोना वायरस की तीसरी संभावित लहर को लेकर खौफ बना हुआ है। ऐसे में तीसरी संभावित लहर का बच्चों पर किस कदर कितना प्रभाव पड़ेगा, इस बारे में अध्ययन किया गया है।
Coronavirus Third Wave: पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने जिस तरह से तबाही का मंजर दिखाया, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। अब कोरोना वायरस की तीसरी संभावित लहर को लेकर खौफ बना हुआ है। ऐसे में तीसरी संभावित लहर का बच्चों पर किस कदर कितना प्रभाव पड़ेगा, इस बारे में अध्ययन किया गया है।
कोरोना की तीसरी लहर को लेकर दुनियाभर के विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के अलग अलग किए जा रहे दावे भी सामने आ रहे हैं। इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और एम्स (AIIMS) का सर्वेक्षण सामने आया है।
पांच राज्यों में किया गया सर्वे
सूत्रों से सामने आई रिपोर्ट के अनुसार, इस सर्वेक्षण के हवाले से कहा है कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर का बच्चों पर अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना कम है। पहले बताया जा रहा था कि तीसरी लहर सबसे ज्यादा बच्चों पर वार करेगी।
इस सर्वे में वयस्कों की अपेक्षा बच्चों में सार्स-सीओवी-2 की सीरो पॉजिटिविटी रेट ज्यादा थी। तीसरी लहर पर किया गया ये सर्वेक्षण देश के पांच राज्यों में किया गया था।
सूत्रों से सामने आई रिपोर्ट के अनुसार, सार्स कोवी-2 की सीरो पॉजिटिविटी रेट बच्चों में वयस्कों की तुलना में अधिक पाई गई इसलिए ऐसी संभावना नहीं है कि भविष्य में कोविड-19 का मौजूदा स्वरूप दो साल और इससे अधिक उम्र के बच्चों को अधिक प्रभावित करेगा।
आपको बता दें कि सीरो-पॉजिटिविटी खून में एक खास तरह का एंटीबॉडी की मौजूदगी है। साथ ही अध्ययन के आखिरी रिजल्ट मेडआरक्सीव में जारी किए गए हैं। जिसमें ये परिणाम 4,509 भागीदारों के मध्यावधि विश्लेषण पर आधारित हैं।
इस अध्ययन में दो से 17 साल की आयु समूह के 700 बच्चों को जबकि 18 या इससे अधिक आयु समूह के 3,809 लोगों को शामिल किया गया। बता दें, ये लोग पांच राज्यों से लिए गए थे। फिर अगले दो से तीन महीनों में और परिणाम आने की संभावना है।
ऐसे में अध्ययन में 18 साल से कम उम्र के आयु समूह में सीरो मौजूदगी 55.7 प्रतिशत पाई गई, जबकि 18 साल से अधिक उम्र के आयु समूह में 63.5 प्रतिशत दर्ज की गई है। इस बारे में अध्ययन में पाया किया कि शहरी स्थानों (दिल्ली में) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में सीरो पॉजिटिविटी दर कम पाई गई। दक्षिण दिल्ली के शहरी क्षेत्रों की पुनर्वास कॉलोनियों में जहां बहुत भीड़भाड़ वाली आबादी है वहां सीरोप्रवेलेंस 74.7 प्रतिशत थी।
सरकार की गाइडलाइन
बताया जा रहा कि ये अध्ययन पांच चयनित राज्यों में कुल 10 हजार की आबादी के बीच किया जा रहा है। जबकि आंकड़े जुटाने की अवधि 15 मार्च से 15 जून के बीच की थी। वहीं अध्ययन के लिए दिल्ली शहरी पुनर्वास कॉलोनी, दिल्ली ग्रामीण (दिल्ली-एनसीआर के तहत फरीदाबाद जिले के गांव), भुवनेश्वर ग्रामीण क्षेत्र, गोरखपुर ग्रामीण क्षेत्र और अगरतला ग्रामीण क्षेत्र से नमूने लिए गए थे।
लेकिन इसके बाद भी सरकार तीसरी लहर को लेकर पहले से ही सतर्क हो गई है। जिसके चलते सरकार ने अपने दिशा-निर्देशों में कहा है कि कोरोना के वयस्क रोगियों के उपचार में काम आने वाली आइवरमेक्टिन, हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन, फैविपिराविर जैसी दवाएं और डाक्सीसाइक्लिन व एजिथ्रोमाइसिन जैसी एंटीबायोटिक दवाएं बच्चों के इलाज के लिए अनुकूल नहीं हैं। वहीं सरकार ने बच्चों में संक्रमण के आंकड़े जमा करने के लिए राष्ट्रीय पंजीकरण की सिफारिश भी की है।
इसके साथ ही सरकार का कहना है कि बच्चों की उचित देखभाल के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों को क्षमता बढ़ाने के काम शुरू कर दिए जाने चाहिए। बच्चों के अस्पतालों में कोरोना संक्रमित बच्चों के लिए अलग बिस्तरों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
वहीं सरकार की तरफ से जारी की गई गाइडलाइन में ये भी कहा गया है कि कोविड अस्पतालों में बच्चों की देखभाल के लिए अलग क्षेत्र बनाया जाना चाहिए, जहां बच्चों के साथ उनके माता-पिता को आने जाने की मंजूरी हो।