जीनोम सीक्वेसिंग में भारत को बड़ी उपलब्धि, सिर्फ एक पेपर से पता चलेगा वायरस का म्यूटेशन
जीनोम सीक्वेसिंग विज्ञान में अभी तक की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत के वैज्ञानिकों को हासिल हुई है।
Corona Virus: भारतीय वैज्ञानिकों को जीनोम सीक्वेसिंग विज्ञान में अभी तक की सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। देश के वैज्ञानिकों ने दुनिया में पहली बार कागज के जरिये सिर्फ एक घंटे में कोरोना के वायरस के म्यूटेशन का पता लगाने वाली तकनीक को बनाया है। इस तकनीक को फेलुदा रे(RAY) नाम दिया है। बीते साल फेलुदा नाम से ही जांच किट तैयार की थी, जो अभी कई राज्यों में उपयोग की जा रही है।
ऐसे में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के नई दिल्ली के आईजीआईबी संस्थान के वैज्ञानिकों ने इसी साल जनवरी से मई के बीच इस रैपिड वैरिएंट डिटेक्शन एसे (रे) तकनीक को विकसित किया है। सामान्यत् एक सैंपल की जीनोम सीक्वेसिंग में काफी लंबा समय और खर्चा लगता है। इसके उच्च स्तरीय लैब की जरूरत होगी, जिसकी भारत में काफी कमी है।
कई गंभीर वैरिएंट देश के सामने
वैज्ञानिकों के जरिए अभी तक 10 लैब में जीनोम सीक्वेसिंग चल रही है। जिसके चलते हाल ही में 17 अन्य लैब में शुरुआत हुई है। इसके तहत जिला स्तर पर जीनोम सीक्वेसिंग की सुविधा नहीं है।
इन हालातों में स्थिति यह है कि अभी तक देश में 37 करोड़ से ज्यादा सैंपल की जांच हुई है लेकिन इनमें से केवल 30 हजार सैंपल की सीक्वेसिंग कर पाए हैं। वहीं यह स्थिति तब है जब कोरोना की दूसरी लहर में अब तक डेल्टा समेत कई गंभीर वैरिएंट देश के सामने हैं।
इस बारे में शोद्यार्थी देवज्योति चक्रवर्ती के मुताबिक, आईजीआईबी के डॉ. सौविक मैत्री व डॉ. राजेश पांडे की निगरानी में डॉ. मनोज कुमार, स्नेहा गुलाटी इत्यादि ने मिलकर सीक्वेसिंग की आसान प्रक्रिया जानने के लिए अध्ययन शुरू किया था जो अब पूरा हो चुका है। सीक्वेसिंग के लिए एफएनसीएस9 नामक एक तकनीकी है जिसका इस्तेमाल हमने फेलुदा रे में किया है।
आगे उन्होंने बताया कि हमने आरएनए से एसएनवी का पता लगाने और पहचानने के बाद रीडआउट को पेपर स्ट्रिप्स के जरिये पूरा किया। इस प्रोसेस में लगभग एक घंटे का समय लगा है जिसके बाद हमें डेल्टा सहित गंभीर म्यूटेशन के बारे में पता चला। वहीं यह तकनीक अब तक की सबसे आसान और सरल है जो जीनोम सीक्वेसिंग को लेकर देश में एक बड़ा बदलाव ला सकती है।
इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक को भारत में किस तरह से इस्तेमाल करना है? इसकी योजना अभी तक नहीं बनी है लेकिन जल्द ही इस पर काम किया जा सकता है क्योंकि आईसीएआर सहित अन्य सभी संस्थानों के साथ विचार चल रहा है। अगले एक से दो महीने में इसे लेकर बड़ी घोषणा के संकेत मिल रहे हैं।