Hanuman Chalisa Controversy: बवाल तो बहुत देख लिया अब जानिए हनुमान चालीसा के बारे में
Hanuman Chalisa: हनुमान चालीसा को रचने वाले बाबा तुलसीदास ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि भविष्य में कभी हनुमान चालीसा को लेकर इतना बवाल होगा।
Hanuman Chalisa: पिछले कुछ समय से देश में हनुमान चालीसा को लेकर बवाल कटा हुआ है। इसके बाद मुंबई में अमरावती की निर्दलीय सांसद नवनीत कौर राणा ने पति रवि राणा के साथ शनिवार सुबह 9 बजे सीएम उद्धव ठाकरे के घर मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने का चैलेंज दिया था। इससे मुंबई से लेकर दिल्ली तक हंगामा मच गया।
चालीसा को रचने वाले बाबा तुलसीदास ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि भविष्य में कभी हनुमान चालीसा को लेकर इतना बवाल होगा। फिलहाल आप जानिए कि तुलसीदास ने कब और कहां की थी चालीसा की रचना।
कहा जाता है कि सम्राट अकबर ने एक बार बाबा तुलसी को बुलाया और कहा कि मुझे श्रीराम के दर्शन करने हैं। इसपर बाबा ने उनको जवाब दिया कि श्रीराम सिर्फ भक्तों को दर्शन देते हैं। इससे अकबर नाराज हो गया और उसने बाबा को कारागार में डालने का आदेश दे दिया। वहीँ ये भी कहानी प्रचलित हैं कि एक बार अकबर ने बाबा तुलसी को दरबार में बुलाया जहां उनकी मुलाकात टोडरमल और अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना से हुई।
इन दोनों ने उनसे कहा कि अकबर के सम्मान में एक बड़े काव्य ग्रंथ की रचना करें। इसपर तुलसीदास ने मना कर दिया। गुस्से में अकबर ने उन्हें कारागार में डाल दिया। कारागार में ही तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की रचना की। तुलसीदास ने जब इसका पाठ आरंभ किया तो कारागार के आसपास हजारों वानर आ गए और उन्होंने काफी उत्पात मचा दिया इसके बाद तुलसीदास को रिहा कर दिया जाता है।
हनुमान चालीसा
अवधी में काव्य रूप में लिखी गई है हनुमान चालीसा।
हनुमान जी के गुणों के साथ ही इसमें श्रीराम और लक्ष्मण के बारे में भी बताया गया है।
जैसा कि चालीसा शब्द से चालीस का बोध होता है। तो इसमें 40 छन्द हैं।
चालीसा के पाठ से भय, आपदा, शोक का नाश होता है।
कहा जाता है कि जब बाबा तुलसीदास ने प्रथम बार इसका पाठ किया तो बजरंगबली ने स्वयं इसे सुना था।
सभी हिंदुओं को हनुमान चालीसा कण्ठस्थ होती है।
प्रथम 10 चौपाई हनुमान जी की शक्ति व ज्ञान का वर्णन करती हैं।
11 से 20 चौपाई में प्रभु राम के बारे में वर्णन है।
11 से 15 चौपाई में लक्ष्मण जी का वर्णन है।
अंतिम चौपाइयों में हनुमत कृपा का वर्णन है।
पढ़िए हनुमान चालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥
महाबीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मनबसिया ॥४॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥
लाय सजीवन लखन जियाए श्री रघुबीर हरषि उर लाए
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥६॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥९॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लाँघि गए अचरज नाही
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥
राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥
आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक ते काँपै
भूत पिशाच निकट नहि आवै महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥
नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा
संकट ते हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ॥१६॥
तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै
अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥
और देवता चित्त ना धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई
संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥१८॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु देव की नाई
जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥