इमरजेंसी में जयप्रकाश नारायण की हुई थी पहली गिरफ्तारी
Emergency Imposed : 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया था।
Emergency Imposed: 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने देश में आपातकाल लगाकर प्रमुख नेताओं जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan), मोरारजी देसाई (Morarji Desai), लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani), अशोक मेहता और अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) को जेल में डाल दिया था। 26 जून के अखबारों में यह बैनर था। राष्ट्रपति ने आंतरिक गड़बड़ी से देश की सुरक्षा को खतरा बताकर यह इमरजेंसी (Emergency) लागू की थी। इसके लिए सुबह 6 बजे कैबिनेट की बैठक (Cabinet Meeting) हुई और इमरजेंसी लागू करने की सिफारिश राष्ट्रपति से की गई और एक घंटे के अंदर सुबह 7 बजे राष्ट्रपति ने इमरजेंसी के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिये।
इससे पहले 1971 में भी विदेशी ताकतों से खतरे को लेकर इमरजेंसी लगाई गई थी। इमरजेंसी लागू करने के बाद सबसे पहले जयप्रकाश नारायण को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद दो बजे रात में मोरारजी देसाई को गिरफ्तार किया गया। पुलिस अधिकारियों ने उनकी गिरफ्तारी से पहले उन्हें नहाने और पूजा करने की इजाजत देने की मेहरबानी कर दी। इस बीच उनके कपड़े टैक्सी में रख लिए गए। इसके बाद तड़के 6.45 बजे कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक मेहता को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद पूरे देश में दमनचक्र शुरू हो गया और बेंगलुरु से एलके आडवाणी को गिरफ्तार किया गया।
35 नेताओं को किया गया गिरफ्तार
हरियाणा के कई जिलों से जनसंघ के दो विधायकों सहित तमाम विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया। चंडीगढ़ से जनसंघ और सोशलिस्ट पार्टी के करीब 35 प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा डेली ट्रिब्यून के स्टाफ करेस्पांडेंट एमएल काक को गिरफ्तार कर लिया गया। राजनारायण, नरेंद्र मोदी और चंद्रशेखर को भी गिरफ्तार किया गया। यह दमन चक्र 23 मार्च 1977 तक चला। जिसमें देश की विभिन्न जेलों में लोगों को यातनाएं भी दी गई।
इमरजेंसी लगाने के पीछे मुख्य मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें इंदिरा गांधी ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इस निर्णय से 1975 की जून की तपती गर्मी में अचानक भारतीय राजनीति सुलग उठी।
इलाहाबाद कोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ सुनाया यह फैसला
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी करार दे दिया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद इंदिरा गांधी के पास इस्तीफा देने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा था और उनका राजनीतिक करियर दांव पर आ गया। लेकिन इंदिरा गांधी को यह फैसला मंजूर नहीं था वह टस से मस नहीं हुईं। हद तो तब हो गई जब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कह दिया कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
इंदिरा गांधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी।" इस बीच 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी जो कि होना भी जरुरी था क्योकि राजतन्त्र में ऐसा ही होता है। 25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के न चाहते हुए भी इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वाहन किया। इसके बाद 25 जून 1975 को राष्ट्रपति के अध्यादेश पास करने के बाद सरकार ने आपातकाल लागू कर दिया।
आपको बता दें कि इमरजेंसी के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबन्धित करने का फैसला इंदिरा गांधी को बहुत भारी पड़ा। हालांकि उनका मानना था कि यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है तथा इसका बड़ा संगठनात्मक आधार सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन करने की सम्भावना रखता था। सत्ता का इशारा पाकर पुलिस इस संगठन पर टूट पड़ी और उसके हजारों कार्यकर्ताओं को कैद कर दिया गया। आरएसएस ने प्रतिबंध को चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने प्रतिबंध के खिलाफ और मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ सत्याग्रह में भाग लिया।
विपक्षी नेताओं और सरकार के आलोचकों को सलाखों के पीछे भेज दिये जाने से पूरा देश सदमे में आ गया। देश में पहले जनविरोध का आयोजन अकाली दल ने किया जिसे "लोकतंत्र की रक्षा का अभियान" के रूप में जाना जाता है। इसे 9 जुलाई को अमृतसर में शुरू किया गया था।
इमरजेंसी में देश की स्थिति राजतंत्र जैसी हो गई और इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने सितंबर 1976 में देश भर में अनिवार्य पुरुष नसबंदी का आदेश लागू कर दिया। इसके अंतर्गत लोगों की इच्छा के विरुद्ध घरों से राहत चलते उठाकर नसबंदी कराई गयी। इसी दौरान संजय गांधी की करीबी रुखसाना सुल्ताना का नाम उभरा जिन्हें पुरानी दिल्ली के मुस्लिम क्षेत्रों में नसबंदी अभियान के नेतृत्व और बुलडोजर चलवाने में बदनामी मिली। हालात बिगड़ते गए भारी दबाव के बीच 18 जनवरी 1977 को 1977को इन्दिरा गांधी ने लोकसभा भंग करते हुए मार्च मे लोकसभा चुनाव की घोषणा की और सभी राजनैतिक बन्दियों को रिहा कर दिया और २३ मार्च को आपातकाल समाप्त हो गया।