'अब पति का भी दर्द सुनेंगे जज'... हाईकोर्ट से 'रेप के आरोपी को जमानत' समेत ये तीन फैसले पुरुषों के पक्ष में
High Court: दिल्ली और इलहाबाद हाईकोर्ट ने तीन अलग अलग मामलों में तीन बड़े फैसले सुनाए हैं।;
High Court Decisions: पिछले दिनों में लगातार घरेलू हिंसा की घटनाएं हो रही हैं। तंग और परेशान होकर कई पुरुषों ने आत्महत्याएं कर ली। इन घटनाओं को संज्ञान में लेकर कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुना ही दिया। दरअसल, कोर्ट ने एक नहीं बल्कि अलग-अलग मामलों में तीन बड़े फैसले पुरुषों के पक्ष में सुनाये हैं। न्यायमूर्ति ने रेप के आरोपी को यह कहते हुए राहत दे दी कि महिला ने खुद मुसीबत बुलाई।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादास्पद फैसला: पीड़िता ने खुद बुलाया मुसीबत को
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक चर्चित मामले में फैसला सुनाते हुए बलात्कार के आरोपी को जमानत दे दी है। यह मामला पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही एक छात्रा से कथित बलात्कार का है। आरोपी को जमानत देते हुए न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने टिप्पणी की कि पीड़िता ने खुद ही उस स्थिति को न्योता दिया था। जज सिंह ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता शराब के नशे में धुत्त थी और उसने आरोपी के घर जाने के लिए स्वेच्छा से सहमति दी थी। कोर्ट के मुताबिक, चूंकि पीड़िता एमए की छात्रा है, इसलिए उसे अपनी हरकतों के नैतिक और सामाजिक प्रभाव की समझ होनी चाहिए थी। न्यायालय ने इस आधार पर आरोपी को जमानत देने का निर्णय लिया।
इस फैसले ने न्यायिक दृष्टिकोण और लैंगिक संवेदनशीलता को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। महिला अधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने इस टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है, इसे पीड़िता को दोषी ठहराने वाला और न्याय प्रक्रिया के प्रति असंवेदनशील करार दिया है।
हर घरेलू विवाद में पति को दोषी मानना सही नहीं, 9 साल बाद राहत
दिल्ली हाईकोर्ट ने घरेलू विवाद से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि हर ऐसे मामले में पति और उसके परिवार को प्रताड़ित करने वाला मान लेना न्यायोचित नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पति का पक्ष भी समान रूप से कानूनी सुनवाई का हकदार है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा के मामलों में निष्पक्ष और संतुलित जांच जरूरी है ताकि किसी निर्दोष को अन्याय का शिकार न होना पड़े।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने एक याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए दी, जो पिछले 9 वर्षों से अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए लड़ रहा था। याचिकाकर्ता पर उसकी पत्नी ने गंभीर आरोप लगाए थे, जिनके चलते उसे और उसके परिवार को न केवल सामाजिक बदनामी का सामना करना पड़ा बल्कि उसे गिरफ्तार भी किया गया। हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार को पत्नी द्वारा सार्वजनिक रूप से बदनाम किया गया, जबकि तथ्यों के आधार पर यह आरोप झूठे साबित हुए। कोर्ट ने इस व्यक्ति की गिरफ्तारी को गैरकानूनी करार देते हुए 9 साल पहले दिए गए जेल भेजने के आदेश को रद्द कर दिया।
बिना शादी के भी पुरुष और महिला लिव इन में रह सकते हैं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि अगर कोई महिला और पुरुष वयस्क हैं, तो वे विवाह के बंधन में न होते हुए भी एक साथ रह सकते हैं। यह उनका संवैधानिक अधिकार है, और पुलिस को उन्हें सुरक्षा उपलब्ध करानी चाहिए। यह टिप्पणी अदालत ने अलग-अलग धर्मों से ताल्लुक रखने वाले एक दंपति के केस में की, जो लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं।
यह मामला एक साल चार महीने के बच्चे की ओर से दाखिल याचिका से जुड़ा है, जिसमें कहा गया कि उसके माता-पिता 2018 से साथ रह रहे हैं। बच्चे की मां पहले से शादीशुदा थीं, लेकिन पति की मृत्यु के बाद उन्होंने संबंधित व्यक्ति के साथ रहना शुरू किया। याचिका में कहा गया कि दोनों के साथ रहने से ही बच्चे की परवरिश संभव है, इसलिए उनके रिश्ते को कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस शेखर सर्राफ और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने कहा कि संविधान के तहत "अभिभावक" की परिभाषा में वे दोनों आते हैं, और वयस्क होने के नाते साथ रहने का उनका फैसला पूरी तरह वैध है — भले ही उनके बीच विवाह न हुआ हो।
याचिका में यह भी बताया गया कि महिला और युवक को समाज व पुलिस की ओर से परेशान किया जा रहा है, और अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। इस पर कोर्ट ने संभल जिले के एसपी को निर्देश दिया कि मामले में एफआईआर दर्ज की जाए और याचिकाकर्ताओं को आवश्यक सुरक्षा प्रदान की जाए।