Jawaharlal Nehru पुण्यतिथि: जानें कैसे देश के पहले प्रधानमंत्री बने नेहरू
Jawaharlal Nehru Death Anniversary: सबकी पसंद सरदार पटेल होने के बाद भी गांधी के चलते नेहरू प्रधानमंत्री बनाए गए थे।
Jawahar Lal Nehru Death Anniversary: 27 मई 1964, वो दिन जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। दोपहर का वक्त था जब ये खबर आई कि जवाहर लाल नेहरू नहीं रहे। ये खबर सामने आते ही आग की तरह फैल गई और इसी के साथ देशभर की आंखें नम कर गई। नेहरू के देहांत के महज दो घंटे बाद ही सरकार के गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया।
नेहरू के नाम आज भी सबसे ज्यादा समय तक भारत का प्रधानमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड है। वो 16 साल 9 महीने और 12 दिन तक भारत के प्रधानमंत्री बने रहे। 15 अगस्त 1947 से लेकर 26 मई 1964 तक नेहरू इस पद पर आसीन रहे। आज हम आपको नेहरू के पुण्यतिथि के मौके पर उनके पीएम बनने की कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं।
आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री चुनने की तैयारी
1857 से ही भारत अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। बरसों चली लंबी लड़ाई के बाद 1946 तक देश की स्थिति बिल्कुल बदल चुकी थी। इस समय तक देशवासियों को आजाद भारत स्पष्ट दिखाई देने लगा था। उधर, ब्रिटेन ने भी भारत को आजाद करने का फैसला कर लिया। 2 अप्रैल, 1946 को कैबिनेट मिशन के दिल्ली पहुंचने के बाद आजादी और बंटवारे की लड़ाई अपने चरम पर पहुंच गई थी। इसी के साथ यह बहस भी शुरू हो गई कि आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
अंग्रेज देश छोड़ने को मजबूर हो चुके थे, लेकिन सवाल था अब सत्ता हस्तांतरण का। इसके लिए भारत में अंतरिम चुनाव कराने का फैसला किया गया। जिसमें मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समेत कई दलों ने हिस्सा लिया, लेकिन कांग्रेस को बड़ी जीत मिली। इसके बाद अंग्रेजों ने फैसला किया कि भारत में अंतरिम सरकार बनेगी। अब सरकार बनाने के लिए वायसराय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल बनाने का निर्णय किया गया।
जिसके बाद यह तय किया गया कि इस एग्जीक्यूटिव काउंसिल का अध्यक्ष अंग्रेज वायसराय होगा और कांग्रेस अध्यक्ष को इसका वाइस प्रेसिडेंट बनाया जाएगा। बाद में यह भी स्पष्ट किया गया कि वाइस प्रेसिडेंट को ही भारत का प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष पद बेहद ही महत्वपूर्ण हो चला। उस समय 1940 से ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर अबुल कलाम आजाद थे। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव का एलान कर दिया गया।
मौलाना को गांधी ने पत्र लिखकर जताई थी ये इच्छा
एक तरफ मौलाना आजाद अध्यक्ष पद पर बने रहना चाहते थे तो दूसरी ओर गांधी अपनी पसंद जाहिर कर चुके थे, जो कि नेहरू थे। जब मौलाना आजाद को दोबारा अध्यक्ष बनाए जाने की खबर फैलने लगी तो गांधी निराश हो गए। ऐसे में उन्होंने मौलाना को एक पत्र लिखकर कहा कि मैंने कभी अपनी राय खुलकर नहीं बताई। लेकिन आज के हालात में अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं नेहरू को प्राथमिकता दूंगा।
उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस कमेटी के कुछ सदस्यों द्वारा पूछे जाने पर मैंने दोबारा उसी अध्यक्ष का चुनाव करने के पक्ष में असहमति जताई। ऐसे में अगर तुम्हारी भी यही राय है तो एक बयान जारी कर बता दो कि तुम्हें दोबारा प्रेसिडेंट नहीं बनना है। इस बात का जिक्र गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने अपनी किताब 'पटेल: ए लाइफ' में किया है।
पटेल के नाम को मिली मंजूरी
हालांकि गांधी की पसंद के विपरीत कांग्रेस समिति के ज्यादातर सदस्य सरदार वल्लभभाई पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के पक्ष में थे। इस पद पर कौन आसीन होगा इसका निर्णय 29 अप्रैल 1946 को तय होना था। कांग्रेस प्रदेश कमेटी की बैठक बुलाई गई, जिसके 15 में से 12 सदस्यों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को अध्यक्ष पद के लिए नॉमिनेट किया। अन्य ने किसी का नाम आगे नहीं बढ़ाया। लेकिन नेहरू का नाम किसी भी सदस्य ने नहीं लिया।
गांधी ने कह दिया था नाम वापस लेने को
इसके बाद गांधी ने नेहरू से पूछा कि कमेटी के किसी भी सदस्य ने तुम्हारा नाम आगे नहीं बढ़ाया। इस पर नेहरू के पास कोई जवाब नहीं था। फिर गांधी ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू को दूसरे नंबर का पद कभी नहीं लेगा। ऐसे में उन्होंने सरदार पटेल से नॉमिनेशन वापस लेने के लिए कह दिया। पटेल ने भी बिना विरोध किए गांधी की इच्छा को स्वीकार कर लिया। इस संबंध में गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने अपनी किताब में बताया कि पटेल ने गांधी की इच्छा का विरोध इसलिए नहीं किया क्योंकि वो हालात को और खराब नहीं करना चाहते थे।
इस तरह नेहरू बन गए प्रधानमंत्री
इस तरह दो सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन हुआ। इसके बाद देश के आजाद हो जाने पर भारत के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर नेहरू चुने गए। जबकि पटेल को उप-प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री की जिम्मेदारी मिली। 1950 में संविधान लागू होने के बाद 1951-52 में स्वतंत्र भारत का पहला आम चुनाव कराया गया। जिसमें कांग्रेस ने 364 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल की और नेहरू ही प्रधानमंत्री बने। देश के पहले आम चुनाव से पहले ही 1950 में पटेल का स्वर्गवास हो चुका था।