जानिए देश की उस यूनिवर्सिटी को जहां जवानों की वीरगति पर आंसू नहीं पार्टी हुई, विवादों से गहरा नाता

JNU Controversy: जेएनयू में ऐसा क्या है जो इसे हमेशा विवाद में ले आता है और 50 वर्षों (22 अप्रैल,1969) से सिर्फ हिंसा और अराजकता की ही ख़बरें बाहर क्यों आती है?

Newstrack :  Network
Published By :  Shreya
Update:2022-04-15 17:53 IST

जेएनयू यूनिवर्सिटी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

JNU Controversies: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जिसे जेएनयू (Jawaharlal Nehru University- JNU) नाम से ज्यादा जाना जाता है। रामनवमी (Ram Navami 2022) के बाद से सुर्ख़ियों में चल रहा है। आखिर जेएनयू में ऐसा क्या है जो इसे हमेशा विवाद में ले आता है और 50 वर्षों (22 अप्रैल,1969) से सिर्फ हिंसा और अराजकता की ही ख़बरें बाहर क्यों आती है?

नेहरू नहीं चाहते थे, उनके नाम पर हो यूनिवर्सिटी का नाम। उनकी मृत्यु के बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी चाग्ला (MC Chagla) ने उनके नाम पर नामकरण कर दिया। इस यूनिवर्सिटी में सामान्य आरक्षण के अलावा गरीब, पिछड़े और महिला स्टूडेंट को आरक्षण मिलता है। जेएनयू देश में वामपंथ का सबसे बड़ा गढ़ है, स्टूडेंट से लेकर टीचर्स तक सभी पर वामपंथी होने के आरोप लगते रहे हैं।

जेएनयू के विवाद (JNU All Controversies)

1975-77 में देश इमरजेंसी से कराह रहा है और जेएनयू इसे सही ठहरा रहा है। सरकार की जय-जय हो रही है, क्योंकि इमरजेंसी को वामपंथी दलों ने अपना समर्थन दिया है। 

1983 में इस कैंपस में स्टूडेंट इतना हिंसक हो गए कि 1984 तक यूनिवर्सिटी को बंद करने का निर्णय लेना पड़ा। सुरक्षाबल तैनात करना पड़ा। इससे पहले स्टूडेंटस ने कुलपति प्रोफेसर पीएन श्रीवास्तव के घर उजाड़ के लूटमार की। सिर्फ इतना ही वार्डेन हरजीत सिंह का घर भी उनके निशाने पर था, जहां तोड़फोड़ हुई इस घटना में वामपंथी विचारधारा वाले टीचर्स का भी नाम आया।

1984 में सिख दंगा पीड़ित परिवारों को स्टूडेंट महीनों खाना खिलाते रहे।

2000 में जेएनयू में मुशायरे का आयोजन होता है। इसमें कई गजलें पाकिस्तान के समर्थन में पढ़ी जाती है और कारगिल युद्ध के लिए भारत को जिम्मेदार बताया जाता है। केसी ओट सभागार में ये कार्यक्रम चल रहा था। सेना के दो जवानों ने जब इसका विरोध किया तो उन्हें बुरी तरह मारा गया। कर्नल भुवन चन्द्र खंडूरी ने इस मामले को संसद में भी उठाया।

2005 में पीएम मनमोहन सिंह कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए। इससे पहले भारत ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिकी प्रतिबंध का समर्थन कर चुका था। स्टूडेंट्स ने पीएम के खिलाफ नारेबाजी करते हुए रास्ता रोकने का प्रयास किया।

2008 में छात्रसंघ बैन कर दिया गया, वर्ष 2011 में ये बैन हटा।

2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के 76 जवान माओवादी हमले में शहीद हुए तो जेएनयू में पार्टी की गई।

2012 में हुए दामिनी हत्याकांड का सबसे पहला विरोध जेएनयू के स्टूडेंट्स ने ही किया था।

2013 में महिषासुर पूजन दिवस मनाया गया, पर्चे बांटें गए जिसमें देवी दुर्गा के लिए अपशब्दों का प्रयोग था।

2016 में आतंकी अफज़ल गुरु की बरसी के दिन 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' का नारा लगा।

2019 में फीस बढ़ोत्तरी को लेकर हंगामा हुआ और हिंसक झड़प हुई।

2019 को जब कश्मीर में धारा 370 निष्प्रभावी हुई उस समय भी अलगाववादी नारेबाजी की गई।

इसके आलावा भी आए दिन यहाँ से मारपीट बवाल की खबरें सामने आती रहती हैं। तो कह सकते हैं कि ये एक ऐसी यूनिवर्सिटी है जहां नाम तो नेहरू का है लेकिन वामपंथ पला बढ़ा और पुष्ट हो रहा है। 

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