Mystery Behind Idols Drinking Milk: आखिर क्यों पत्थर की प्रतिमाएं पी जाती हैं दूध, जानें वैज्ञानिक कारण
Mystery Behind Idols Drinking Milk: अचानक ये खबर फैलने लगी कि शिव मन्दिर में शिवलिंग के सामने रहने वाली नन्दी प्रतिमा दूध पी रही है। ऐसे में नन्दी को दूध पिलाने के लिए लंबी कतारें लग गईं।
Mystery Behind Idols Drinking Milk: आज से करीब 27 से साल पहले 21 सितंबर को गणेश चतुर्थी की सुबह खबर आई कि गणेशजी दूध पी रहे हैं। यह खबर आग में जंगल की तरह फैली और देशभर के मंदिरों में गणेशजी को दूध पिलाने के लिए भीड़ लग गई। लोकसभा में विपक्ष के तत्कालीन नेता अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) भी गणेशजी को दूध पिलाते देखे गए। टीवी चैनलों पर अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई नेता गणेशजी की मूर्तियों को दूध पिलाते दिखाई दिए। दूसरे देशों में रहने वाले भारतीयों ने गणेशजी को दूध पिलाकर देखा और वहां भी गणेशजी ने दूध पी लिया।
इस खबर के फैलते जाने के कारण देश में दूध की कमी हो गई थी और हर कोई गणेश जी को दूध पिलाने की कोशिशों में लग गया था। हांलाकि बाद में वैज्ञानिकों ने इसे तरल पदार्थो के पृष्ठ तनाव की एक साधारण घटना बताया था।
आज भी इसी तरह की घटना की पुनरावृत्ति हो रही है। आज दोपहर करीब डेढ़ बजे से अचानक ये खबर फैलने लगी कि शिव मन्दिर (Shiv Mandir) में शिवलिंग के सामने रहने वाली नन्दी प्रतिमा दूध पी रही है। देखते ही देखते नन्दी को दूध पिलाने के लिए महिलाओं की भीड़ लगने लगी। पहले तो ये खबर एक ही स्थान से आई थी, लेकिन कुछ ही देर में कई शहरों और गांवों से नन्दी के दूध पीने की खबरें आने लगी।
वैज्ञानिक कारण
कुछ वैज्ञानिकों ने एक थ्योरी पेश की कि वह "मास हाइपनोसिस" (Mass Hypnosis) अथवा "साइको-मैकेनिक रिएक्शन" (Psycho-Mechanic Reaction) था, जिसमें भीड़ एक दूसरे की देखा देखी में डूब गई थी। वहीं, फिजिक्स के कुछ एक्सपर्ट्स (Physics Experts) के अनुसार, अगर किसी बंद किये नल की टोंटी से टपकती बूंद को स्पर्श करें तो वह सरक कर हाथ में आ जाती है। इसी प्रकार जब दूध से भरे चम्मच को किसी बाहर की ओर निकली आकृति वाली मूर्ति से स्पर्श कराया जाता है तो दूध का पृष्ठ तनाव द्रव को ऊपर की ओर चम्मच से बाहर खींचता है। दूध खिंचने के बाद गुरुत्वाकषर्ण के कारण यह मूर्ति से नीचे की ओर सरक जाता है। इसे सरफेस टेंशन (Surface Tension) कहते हैं।
इसकी वजह से चम्मच जैसे पात्र में रखा तरह पदार्थ जब भी किसी अन्य सतह के सम्पर्क में आता है, वह अन्य सतह की तरफ खींचने लगता है और चम्मच में रखा तरल पदार्थ, अन्य सतह की तरफ चला जाता है। जब यही घटना किसी मूर्ति के मूंह के साथ होती है,तो देखने वाले को यह प्रतीत होता है कि मूर्ति तरह पदार्थ पी रही है। जबकि वास्तविकता यह होती है,कि उक्त तरल पदार्थ, मूर्ति से होता हुआ नीचे चला जाता है और जमीन पर बहने लगता है। यदि मूर्ति सचमुच में दूध या पानी पी रही होती,तो दूध या पानी की एक भी बून्द नीचे जमीन पर नहीं जाती, बल्कि मूर्ति के भीतर चली जाती। यह तथ्य ही इसे साबित करने के लिए पर्याप्त है कि मूर्ति को जितना दूध कथित तौर पर पिलाया जा रहा है, वह पूरा दूध जमीन पर बह जाता है।
कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि मूर्तियों में तमाम छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिससे लिक्विड अंदर की ओर सरक जाता है। इन्हें सकिंग पोर्स (Sucking Pores) कहते हैं। कोई भी लिक्विड या दूध इन्हीं पोर्स से होता हुआ मूर्ति के अंदर चला जाता है। आमतौर पर जब गर्मी पड़ती है तब वैक्युम पोर्स या सकिंग पोर्स एक्टिव हो जाते हैं।
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