Maharashtra News: पार्षदी बचाने के लिए अपने बच्चे को पराया बताने वाली महिला को नहीं मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत

Maharashtra News: कोर्ट ने कहा कि सिर्फ निर्वाचित होने के लिए आपने अपने बच्चे को ‘नकार’ दिया। अपने बच्चों को सिर्फ इसलिए अस्वीकार न करें कि आप चुनाव जीत कर एक राजनीतिक पद हासिल करना चाहती थी।

Report :  Network
Published By :  Sushil Shukla
Update: 2021-07-13 07:55 GMT

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

Maharashtra News: सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने सोमवार को एक फैसले में कहा कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण अपने बच्चे को पराया नहीं बताना चाहिए। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट (Court) ने शिवसेना (Shivesena) की एक महिला नेता की अयोग्यता को बरकरार रखा। उसके महाराष्ट्र (Maharastara) के सोलापुर (Solapur) नगर निगम (Nagar Nigam) में पार्षद (parshad) के रूप में चुनाव को दो से अधिक बच्चे होने के कारण रद्द कर दिया गया था।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस (Justice) हेमंत गुप्ता की पीठ ने अनीता मागर द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सिर्फ इसलिए कि आप निर्वाचित होना चाहती थीं, इसलिए आपने अपने बच्चे को 'नकार' दिया। अपने बच्चों को सिर्फ इसलिए अस्वीकार न करें कि आप चुनाव जीत कर एक राजनीतिक पद हासिल करना चाहती थी। मागर ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि इसके पर्याप्त सुबूत हैं कि नामांकन पत्र दाखिल करने की तारीख को मागर और उनके पति के तीन बच्चे थे, इसलिए सार्वजनिक कार्यालय चलाने के लिए राज्य सरकार के दो बच्चों के नियम के तहत उन्हें अयोग्य करार दिया गया था।

मामले में महिला का दावा था कि तीसरा बच्चा उसके पति के भाई का है। सुनवाई के दौरान मागर की ओर से पेश वकील ने दावा किया कि मागर के केवल दो जैविक बच्चे हैं और तीसरा बच्चा पति के भाई का है। वकील ने कहा कि अदालत को बच्चे के हित में हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि अब उसके माता-पिता पर सवाल खड़ा हो गया है। वकील ने कहा कि बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में उसके माता-पिता का नाम अलग है लेकिन हाईकोर्ट ने मागर और उनके पति को उस बच्चे का माता-पिता माना।

असंतुष्ट पीठ ने कहा, चुनाव जीतने के लिए बनाई कहानी

पीठ वकील की दलीलों से पूरी तरह से असंतुष्ट थी। पीठ ने मागर की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि चुनाव जीतने के लिए आपने यह कहानी बनाई थी। स्कूल के रिकॉर्ड के मुताबिक मागर उसकी मां है। जन्म प्रमाणपत्र को बाद में बदल दिया गया। कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यह सब किया गया। कोर्ट ने मागर से कहा कि हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। आपको अपने बच्चे के बारे में सोचना चाहिए।

पार्षद के चुनाव में हुईं थी विजयी, निचली अदालत ने किया था रद्द

24 मई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने वर्ष 2018 के निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें 2017 में हुए चुनाव में सोलापुर नगर निगम के पार्षद के रूप में मागर के चुनाव को रद्द कर दिया गया था। मागर और तीन अन्य ने सोलापुर के एक वार्ड से चुनाव लड़ा था और इसमें मागर विजयी हुई थी। इसके बाद चुनाव में दूसरे स्थान पर रही उम्मीदवार ने चुनाव परिणाम को चुनौती दी और सोलापुर सिविल कोर्ट में एक चुनाव याचिका दायर की। चुनाव याचिका में कहा गया था कि मागर का चुनाव महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम, 1949 की धारा 10(1)(आई) के तहत रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि इसके तहत कोई व्यक्ति पार्षद के निर्वाचन के लिए अयोग्य होगा यदि उसके दो से अधिक बच्चे होंगे। इस याचिका पर निचली अदालत ने वर्ष 2018 को मागर के चुनाव को रद्द कर दिया था।

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