Gandhi Jayanti 2 October: गांधी को समझना है तो पहले हिंसा को जान लीजिए
Mahatma Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी की जयंती पर आज (02 अक्टूबर 2021) हम उनके अहिंसा संबंधी विचारों पर प्रकाश डालेंगे।
Mahatma Gandhi Jayanti 2 October 2022: महात्मा गांधी के विचारों (Mahatma Gandhi Ke Vichar) में कुविचार हिंसा है, उतावली हिंसा है, मिथ्या भाषण हिंसा है, द्वेष हिंसा है, किसी का बुरा चाहना हिंसा है। इसके अलावा वह अहम् या अहम पर आधारित जितनी भी मानवीय चेष्टाएं है उन सबको हिंसा मानते थे। उनका मानना था कि स्वार्थ, प्रभुता की भावना, जातिगत विद्वेष, असंतुलित, अंधाधुंध एवं असंयमित भोगवृत्ति भी हिंसा है। विशुद्ध भौतिकता की पूजा भी हिंसा है। अपने व्यक्तिगत और वर्गगत स्वार्थों की पूर्ति में जुटे रहना या तत्पर रहना भी हिंसा है। शस्त्र और शक्ति के आधार पर अपनी कामनाओं की पूर्ति में जुटे रहना भी हिंसा है। अपने अधिकार को कायम रखने के लिए ताकत या बल का प्रयोग करना भी हिंसा है । येन केन प्रकारेण यानी कोई तिकड़म लगाकर किसी न किसी तरीके से दूसरों के अधिकारों का हनन करना या उन्हें छीन लेना भी हिंसा है।
जब हिंसा का स्वरूप हमें स्पष्ट हो जाता है तो अहिंसा समझ में आने लगती है। दरअसल, अहिंसा के मूल मंत्र के जरिये महात्मा गांधी ने मानव जाति को ऊर्ध्वमुखी विकास का सर्वोच्च बिन्दु दिया। जो कि हमारी संस्कृति में लोक व परलोक में मंगल की कामना के रूप में मौजूद रहा है। सबका मंगल हो की कामना ही अहिंसा का मूल तत्व है। हम कहते हैं सर्वे भवन्तु सुखिनः यानी व्यक्ति से परिवार और परिवार से समाज, समाज से देश और देश से वैश्विक जगत में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का विकास जो हो रहा है, उसके मूल में अहिंसा का ही मूल मंत्र है। दया, करूणा, मैत्री, सहायता, सेवा और क्षमा करना ये सब अहिंसा के ही तत्व हैं। हमारे आध्यात्मिक चिंतन की आत्मा अहिंसा है।
अहिंसा के आधुनिक व्याख्याकार महात्मा गांधी के शिष्य पाश्चात्य विद्वान लांजा डेलवास्टो का कहना था कि समस्त जीवों के प्रति दुर्भावना का पूर्ण तिरोभाव (त्याग) ही अहिंसा है। कहते हैं बंदूक सिर तोड़ सकती है किन्तु सिर जोड़ नहीं सकती। इसी तरह अहिंसा कायरों की चादर नहीं वीरों का आभूषण है। अहिंसा संत महात्माओं के लिए ही नहीं है, यह सब के लिए हैं। ये सब बातें महात्मा गांधी के अहिंसा संबंधी विचारों (Mahatma Gandhi Ke Ahinsa Sambandhi Vichar) की पुष्टि ही करती हैं।
महात्मा गांधी के लिए हम यह तो कहते हैं कि उन्होंने पूरे विश्व को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया, लोगों को जीवन जीने की कला सिखायी। अहिंसा को जीवन में कैसे उतारें इसका रास्ता दिखाया। लेकिन हमारे नेता से लेकर शासन प्रशासन से जुड़ा कोई व्यक्ति गांधी के विचारों पर चलना नहीं चाहता । इन सभी को अहिंसा छोड़कर हिंसा का रास्ता ही आसान लगता है। जबकि गांधी अहिंसा की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है। हम सब यह जानते हुए भी इसके शिकार बनते हैं।नतीजतन, एक पागल को उकसाने का दुष्परिणाम झेलते हैं।
गांधी ने यह भी कहा था कि जब मनुष्य को ठोकर लगती है और दर्द होता है तभी वह सीख पाता है। लेकिन गांधी के बाद के इन दशकों में हमने बार बार ठोकर खाने से कोई सबक नहीं लिया। ठोकर लगने पर भी हम न तो उस अवरोध को हटाने का उपक्रम करते हैं, न उससे सबक लेते हैं।
सबसे मूल बात अधिकार प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है। देश की आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमें अधिकार चाहिए । लेकिन कर्तव्यों की ओर हम पलटकर देखना भी नहीं चाहते। यह सब हिंसा का ही स्वरूप है। गांधी ने यह भी कहा था कि स्वच्छता, पवित्रता और आत्म सम्मान से जीने के लिए धन की जरूरत नहीं होती। लेकिन हम अस्वच्छता के प्रति अपना मोह नहीं छोड़ पा रहे चाहे वह मन की हो, तन की हो, हमारे आसपास की हो या समाज की हो। हम अस्वच्छता को बढ़ावा देने व फैलाने के सारे उपक्रम करते हैं।
त्याग ही जीवन है सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। गांधी की ये बातें हम सुनना देखना या समझना नहीं चाहते। हमारे कान बंद हो जाते हैं। फिर सुखद जीवन की चाह का अंत कहां है, कोई कैसे समझाए। गांधी ने तो इस पर भी कहा-जहां प्रेम है वहीं जीवन है। ईर्ष्या द्वेष विनाश की ओर ले जाते हैं। लेकिन हमने क्या समझा हम कहां जा रहे हैं यह अनुत्तरित सवाल हैं खुद से भी। अंत में गांधी के शब्दों में यही कहा जा सकता है कि यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी आपको शीतलता प्रदान करेगी।