पवार ने दिया कांग्रेस को बड़ा झटका, Bjp के खिलाफ एकजुट विपक्ष के नेतृत्व का मामला और उलझा
शरद पवार ने कहा कि कांग्रेस को इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए कि अब उसकी पुरानी ताकत खो चुकी है...
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के मुखिया शरद पवार ने कांग्रेस को उसकी कमजोर होती स्थिति से रूबरू कराया है। पवार का कहना है कि कांग्रेस को इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए कि अब उसकी पुरानी ताकत खो चुकी है। अब देश के विभिन्न राज्यों में कांग्रेस का वैसा दबदबा नहीं रह गया है जैसा किसी जमाने में हुआ करता था। पवार ने कहा कि जब कांग्रेस में इस सच्चाई को स्वीकार करने की मानसिकता पैदा होगी, तभी उसकी अन्य विपक्षी दलों के साथ नजदीकी बढ़ पाएगी। पवार के इस बयान को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इन दिनों भाजपा और पीएम मोदी के खिलाफ 2024 की सियासी जंग के लिए विपक्षी दलों की एकजुटता के प्रयास किए जा रहे हैं। विपक्षी दलों की एकजुटता के लिए एनसीपी के मुखिया पवार को महत्वपूर्ण धुरी माना जा रहा है। यही कारण है कि पिछले दिनों विपक्ष के कई नेताओं ने पवार से मुलाकात कर उनसे विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने में मदद करने की अपील की थी। पवार ने इस बयान के जरिए कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है और उसे संकेत दिया है कि विपक्षी दलों का चौधरी बनने का सपना देखने से पहले उसे अपनी ताकत का भी आकलन करना चाहिए। पवार के बयान से 2024 की जंग में एकजुट विपक्ष के चेहरे को लेकर मामला और उलझता नजर आ रहा है।
कांग्रेस अपनी ताकत की सच्चाई स्वीकार करें
पवार ने एक मीडिया समूह से बातचीत में कहा कि यह सच्चाई है कि एक जमाना था जब कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कांग्रेस का दबदबा दिखता था। उस समय दिल्ली के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों में भी कांग्रेस की ही सरकारें थीं मगर यदि हम मौजूदा दौर को देखें तो स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। अब कांग्रेस वह पुरानी ताकत पूरी तरह खो चुकी है। उन्होंने कहा की महाराष्ट्र की सत्ता में हमारे सहयोगी दल कांग्रेस को अपनी ताकत की वास्तविकता की पड़ताल करनी चाहिए। पार्टी को यह सत्य स्वीकार करना होगा कि उसकी पुरानी ताकत अब नहीं रह गई है। पवार ने काफी बेबाकी के साथ कहा कि जब कांग्रेस अपनी खिसक चुकी जमीन की सच्चाई स्वीकार कर लेगी तब निश्चित रूप से अन्य विपक्षी दलों के साथ उसकी नजदीकी में इजाफा होगा।
कांग्रेस के नेता रुख बदलने को तैयार नहीं
दरअसल, विपक्षी दलों की एकता में सबसे बड़ा पेंच पीएम पद के लिए विपक्ष के चेहरे को लेकर फंसा हुआ है। इसी की ओर इशारा करते हुए पवार ने कहा कि नेतृत्व की बात आने पर हमारे सहयोगी दल कांग्रेस के नेता अलग नजरिया अपनाने को तैयार नहीं दिखते हैं। जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के एकजुट विपक्ष का चेहरा होने की बात उठी तो कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी का नाम उछाला जाने लगा। कांग्रेस अपनी खिसक चुकी जमीन की सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं है । यही कारण है कि कांग्रेस के नेता नेतृत्व के मुद्दे पर पुराना राग अलापने लगते हैं। वे अपना रुख बदलने को तैयार नहीं दिखते।
पवार ने सुनाई पुराने जमींदारों की कहानी
कांग्रेस की हालत बयां करने के लिए पवार ने पुराने जमींदारों की कहानी भी सुना दी। उन्होंने कहा कि मैंने कभी उत्तर प्रदेश के जमींदारों की एक कहानी सुनाई थी जो काफी जमीन और बड़ी हवेलियों के मालिक थे। भू-सीमन कानून बनने के बाद उनकी जमीन काफी कम हो गई। जो हवेलियां उनके पास बची थीं, उनकी मरम्मत और रखरखाव तक में वे असमर्थ हो गए। एक जमींदार जब सुबह सोकर उठा तो उसने आसपास के खेतों को देखकर कहा कि यह जमीन कभी उसकी थी मगर अब वह इसका स्वामी नहीं रह गया है। पवार ने इस कहानी के जरिए कांग्रेस की मौजूदा हालत पूरी तरह बयां कर दी। इशारों में उन्होंने यह कहने की कोशिश की कि कांग्रेस भी किसी जमाने में काफी मजबूत पार्टी थी मगर आज स्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं और कांग्रेस के हाथ से कई राज्य छिन चुके हैं। इसी की ओर इशारा करते हुए पवार ने कहा कि अब वह समय आ गया है जब कांग्रेस को अपनी मौजूदा ताकत की सच्चाई को स्वीकार कर लेना चाहिए।
विपक्षी दलों में फंसा है नेता को लेकर पेंच
सियासी जानकारों का कहना है कि पवार ने इशारों में बड़ी बात करने की कोशिश की है। 2024 की सियासी जंग के लिए लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी,खुद शरद पवार और अन्य प्रमुख नेताओं की ओर से कोशिश तो की जा रही है मगर विपक्ष के चेहरे का मुद्दा नहीं तय हो पा रहा है। ममता बनर्जी अभी तक इस मुद्दे पर खुलकर नहीं बोल रही हैं। उनका कहना है कि पहले विपक्षी दलों में एकजुटता कायम की जाएगी और चेहरे को लेकर कोई विवाद नहीं पैदा होगा मगर सच्चाई यह है कि कांग्रेस का राहुल गांधी को छोड़कर किसी अन्य चेहरे के लिए तैयार होना काफी मुश्किल माना जा रहा है। ममता बनर्जी ने अपनी पिछली दिल्ली यात्रा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी मगर इस दौरान भी नेतृत्व के मुद्दे पर कुछ भी स्पष्ट बात नहीं कही गई। पवार ने अपने बयान के जरिए इसी ओर संकेत किया है। विपक्ष के दूसरे नेता भी सच्चाई से वाकिफ हैं मगर विपक्षी दलों की एकजुटता में टूट से बचने के लिए कोई भी नेता इस मुद्दे पर खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है। हर किसी की नजर इसी बात पर टिकी है कि आखिर विपक्ष का चेहरा कौन होगा मगर यह मुद्दा आसानी से सुलझता नहीं दिख रहा है।
लगातार कमजोर होती जा रही कांग्रेस
वैसे पवार की बातों में काफी दम है क्योंकि एक समय पूरे देश में ताकतवर माने जाने वाली कांग्रेस अब लगातार कमजोर होती जा रही है। यदि हम 2019 के लोकसभा चुनाव को देखें तो बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने 352 सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा देश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसने 303 लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त की थी। दूसरी ओर कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए के खाते में सिर्फ 91 सीटें ही आई थीं। इसमें कांग्रेस के खाते में सिर्फ 52 सीटें आई थीं जबकि यूपीए में दूसरे नंबर की पार्टी डीएमके ने 23 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की अगुवाई में एनडीए को 45 फीसदी वोट मिले थे। इसमें भाजपा की अकेले हिस्सेदारी 37.43 फीसदी की थी। यदि यूपीए का वोट प्रतिशत देखा जाए तो वह 26 फ़ीसदी था। कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनाव में सिर्फ 19.51 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब हुई थी।संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा में भी भाजपा लगातार मजबूत होती जा रही है। राज्यसभा में उसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 95 हो गई है जबकि करीब चार दशक तक इस सदन में बहुमत में रहने वाली कांग्रेस अब 36 सदस्यों पर सिमट गई है।
कांग्रेस के हाथ से निकलते जा रहे राज्य
2014 में भाजपा के हाथों मिली हार के बाद कांग्रेस विभिन्न राज्यों में लगातार कमजोर होती जा रही है। कांग्रेस की लगातार पतली होती जा रही हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मौजूदा समय में कांग्रेस पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और झारखंड छोड़कर पूरे देश भर में सत्ता से बाहर है। महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस भले ही सत्ता में है मगर यहां भी पार्टी ज्यादा मज़बूत स्थिति में नहीं है। महाराष्ट्र में पार्टी नंबर तीन तो झारखंड में नंबर दो की स्थिति में है। पुडुचेरी में कांग्रेस का किला ढहने के बाद अब दक्षिण भारत से कांग्रेस पूरी तरह साफ हो चुकी है। एक समय दक्षिण भारत में काफी मजबूत माने जाने वाली कांग्रेस आज दूसरे दलों के सहारे पर निर्भर है।