Poor Road in India: सड़कों के गड्ढों में छिपी है मौत, अपनी जान खुद बचाइए
Poor Road In India: 2017 में सड़क परिवहन मंत्रालय ने बताया था कि गड्ढों की वजह से दस हजार सड़क दुर्घटनाएं हो रही है...
Poor Road In India: भारत में सड़क पर बने गड्ढे हर साल हजारों लोगों की मौत का कारण बनते हैं। मानसून में ये गड्ढे मौत बनकर लोगों की जीवन लीला समाप्त कर देती है। केंद्र और राज्य सरकारें सड़कों को विकास का पर्याय मानती हैं। अरबों रुपए सड़क बनाने और मेंटेनेंस के नाम पर खर्च किए जाते हैं। रोजाना कितनी सड़कें बनी इसके बड़े बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन यही सड़कें चंद महीनों में टूट जाती हैं तब किसी की जिम्मेदारी तय नहीं होती, जबकि सड़क के रखरखाव का एक सिस्टम भी बना हुआ है। नियम - कानून की बात करें तो गलत ड्राइविंग के बारे में सजा की व्यवस्था है, लेकिन खराब सड़कों के बारे में कानून शांत है। सड़क के हर गड्ढे में मौत छिपी हुई है, आपको अपनी जान खुद बचानी होगी, यही सोच कर घर से निकलें।
केंद्र सरकार के अनुसार 2018 में 4869 और 2019 में 4775 हादसे हुए। 2020 में कोरोना की वजह से लॉकडाउन था। इसके चलते ट्रैफिक भी बहुत कम रहा, लेकिन इसके बावजूद 3564 हादसे हुए। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार सड़क की खराबी की वजह से कितने हादसे हुए इसका अलग से कोई आंकड़ा नहीं है। वैसे 2017 में सड़क परिवहन मंत्रालय ने बताया था कि गड्ढों की वजह से हर साल औसतन दस हजार सड़क दुर्घटनाएं हो रही है, जिनमें करीब 2,800 लोगों की मौत हो गई है। 2017 में 3,,597 मौतें गड्ढों की वजह से हुईं।
मुआवजा दिला देते हैं कोर्ट
भारत में सड़क के गढ़ों के कारण हुई चोट या मौत होने के बारे में कोई कानूनी व्यवस्था नहीं है। ऐसी घटनाओं में सिर्फ मुआवजा देने का रवैया अपनाया जाता रहा है। कई घटनाओं में अदालतों ने यह फैसला दिया है कि सड़क पर गड्ढे की वजह से किसी व्यक्ति की मौत होने पर उसके उत्तराधिकारियों को मुआवजा पाने का अधिकार है। यह भी अदालतों ने अपनी तरफ से आदेश दिए हैं। कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
आईपीसी में क्या है
टूटी-फूटी सड़क के कारण किसी तरह की दुर्घटना होने पर सड़क के रखरखाव के लिए IPC में कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है। हाँ, जिम्मेदार ठेकेदार और अधिकारियों के खिलाफ IPC की कुछ धाराओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर सार्वजानिक उत्पात, संकट, परेशानी या बाधा के मामलों में धारा 268 का इस्तेमाल किया जाता है। 100 गड्ढों को भी सार्वजानिक परेशानी की वजह मानकर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ इस धारा का इस्तेमाल हो सकता है। इसी तरह धारा 283 है जो सार्वजानिक आवागमन में ख़तरा या व्यवधान पैदा करने को लेकर है, लेकिन इन दोनों धाराओं में बहुत ही मामूली सजा है – मात्र 200 रुपये का जुर्माना करने का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट में है मामला
सुप्रीम कोर्ट में जुलाई 2018 में देश में सड़क सुरक्षा से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान गड्ढों का मसला उठ खड़ा हुआ। गड्ढों की बात जब चली तो अदालत ने इसे एक गंभीर समस्या बताया और कहा कि जितनी मौतें आतंकी हमलों में नहीं होती उससे ज्यादा तो सड़कों के गड्ढों की वजह से होती हैं। जस्टिस मदन बे. लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता ने सड़क सुरक्षा पर बनी सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से कहा कि वह इस मामले को देखे। इस कमेटी के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज के.एस. राधाकृष्णन थे। इसके बाद दिसंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने अदालत को अपनी रिपोर्ट दी। जिसपर अदालत ने इस बात पर चिंता जताई कि बीते 5 साल में 14,926 लोगों की मौत सड़क के गड्ढों की वजह से हुई है। न्यायाधीशों ने कहा कि 2013 से 2017 तक हादसों के आंकड़े बताते हैं कि सड़कों के रखरखाव में अधिकारियों की रुचि नहीं है।
जिम्मेदारी तय की
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ( एनएचएआई), नगर निगम या राज्य सरकारों के सड़क संबंधी विभागों के साथ काम करने वाले ठेकेदार या निजी व्यापारी, गड्ढों के कारण हुई मौतों के लिए जिम्मेदार बताये जाने चाहिए, क्योंकि ये सब पक्ष सड़कों का रखरखाव नहीं कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि आंकड़े बता रहे हैं कि सम्बंधित अधिकारी और विभाग सड़कों का रखरखाव नहीं कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि गड्ढों की वजह से होने वाली मौतों के पीड़ित लोगों को मुआवजे का अधिकार दिया जाना चाहिए। इसके बाद मोटर व्हीकल एक्ट में व्यापक संशोधन हुए, लेकिन उसमें भी सड़क के गड्ढों के बारे में कोई स्पष्ट बात नहीं कही गई है। सिर्फ सड़क हादसों में मिलने वाले मुआवजे की रकम को बढ़ा दिया गया है। सडकों के रखरखाव के लिए ठेकेदार या सरकारी विभागों-अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने और उनके लिए सजा के प्रावधान करने जैसी कोई व्यवस्था अब तक नहीं बन पाई है। अन्य देशों की बात करें तो सड़क की खराबी से हादसे होने पर सबसे प्रमुख और व्यापक एप्रोच पीड़ित को मुआवजा देने का होता है। मिसाल के तौर पर अमेरिका और ब्रिटेन में सड़क के गड्ढे से होने वाला हादसा 'टोर्ट्स' कानून के तहत देखा जाता है, जिसमें लापरवाही साबित हो जाने पर मुआवजा देने का निश्चित प्रावधान है।