Vijay Diwas: आज क्यों मनाया जाता है विजय दिवस, जानिए- कैसे 93000 पाक सैनिकों को बनाया गया था बंदी

Vijay Diwas: 16 दिसंबर , 1971 को भारत से करारी शिकस्त मिलने के बाद पूर्वी पाकिस्तान (Pakistan) पूरी तरह से स्वतंत्र हो गया ।

Written By :  Rahul Singh Rajpoot
Published By :  Monika
Update: 2021-12-16 03:48 GMT

विजय दिवस (फोटो : सोशल मीडिया )

Vijay Diwas: आज 16 दिसंबर (16 december) है, आज की तारीख भारत के इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। क्योंकि आज के दिन हिंदुस्तान ने अपने कट्टर दुश्मन पाकिस्तान को धूल चटाई थी। इस जीत पर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। 16 दिसंबर , 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध (India-pak war) के दौरान भारत ने उस पर विजय हासिल की थी। तभी से पूरा हिंदुस्तान विजय दिवस (Vijay Diwas) का जश्न मनाता है। आज 16 दिसंबर के मौके पर एक बार फिर से हम अपने बहादुर जवानों को सलाम करते हैं।

जीत के साथ बांग्लादेश का हुआ जन्म

16 दिसंबर , 1971 को भारत से करारी शिकस्त मिलने के बाद पूर्वी पाकिस्तान (Pakistan) पूरी तरह से स्वतंत्र हो गया । एक नए देश का निर्माण हुआ जिसे आज हम बांग्लादेश (Bangladesh ) के रूप में जानते हैं। बांग्लादेश तभी से भारत का परम मित्र है और पाकिस्तान हिंदुस्तान का कट्टर दुश्मन है। यह युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक और हर भारतवासी के लिए उमंग पैदा करने वाला साबित हुआ। इस युद्ध में तत्कालीन पाकिस्तान बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने अपने 93000 सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। जिसके बाद 17 दिसंबर को 93000 पाकिस्तान सैनिकों को युद्ध बंदी बना लिया गया था।

25 मार्च 1971 जन भावनाओं को कुचलने का आदेश

वैसे तो 1971 की लड़ाई की नींव शुरुआती महीनों में ही पड़ने लगी थी। पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याहिया ख़ां ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की जनभावनाओं को सैनिक ताकत से कुचलने का आदेश दे दिया था। इसके बाद शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। तब वहां से कई शरणार्थी भारत आने लगे। पूर्वी पाकिस्तान से पलायन और वहां लोगों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार की खबरों के बीच भारत पर दबाव पड़ने लगा कि वह वहां पर सेना के जरिए हस्तक्षेप करे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि अप्रैल में आक्रमण किया जाए। इस बारे में इंदिरा गांधी ने थलसेना अध्यक्ष जनरल मानेकशॉ से बातचीत भी की थी। लेकिन उस वक्त भारत की ऐसी हालात नहीं थी कि वह तुरंत उस पर हमला कर दे। हिंदुस्तान के पास उस वक्त एक पर्वतीय डिवीजन था , इस डिवीजन के पास पुल बनाने की क्षमता भी नहीं थी। तब मानसून भी दस्तक देने वाला था। ऐसे में पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश करना मुसीबत मोल लेने जैसा था। लेकिन उस वक्त थल सेनाध्यक्ष मानेकशॉ ने सियासी दबाव में झुके बिना प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से स्पष्ट कह दिया कि वह पूरी तरह से युद्ध के मैदान में उतरना चाहते हैं।

3 दिसंबर 1971 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जनसभा 

पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे क्रूरता के बीच 3 दिसंबर , 1971 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) कोलकाता में एक जनसभा (jansabha) को संबोधित कर रहे थीं। इस दिन शाम के वक्त पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों ने भारतीय सीमा को पार करके पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा के सैनिक हवाई अड्डे पर बम गिराना शुरू कर दिया। इंदिरा गांधी ने उसी वक्त दिल्ली लौटकर मंत्रिमंडल की आपात बैठक की और युद्ध शुरू होने के बाद पूर्व में तेजी से आगे बढ़ते हुए भारतीय सेना (Indian Army) ने जेसोर और खुलना पर कब्ज़ा कर लिया। भारतीय सेना की रणनीति थी कि अहम ठिकानों को छोड़ते हुए पहले आगे बढ़ा जाए। युद्ध में मानेकशॉ खुलना और चटगांव पर ही कब्ज़ा करने पर ज़ोर देते रहे। ढाका पर कब्ज़ा करने का लक्ष्य भारतीय सेना के सामने रखा ही नहीं गया।

14 दिसंबर को मिला गुप्त संदेश

14 दिसंबर को भारतीय सेना ने एक गुप्त संदेश के जरिए सुबह 11 बजे ढाका के गवर्नर हाउस में एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है। जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन बड़े अधिकारी भाग ले रहे हैं। भारतीय सेना ने तय किया कि इसी समय उस भवन पर बम गिराए जाएं। बैठक के दौरान ही मिग-21 विमानों ने भवन पर बम गिराकर मुख्य हाल की छात उड़ा दी और मलिक ने कांपते हाथों अपना इस्तीफा लिखा। 16 दिसंबर को सुबह जनरल चेकअप को मनिक शॉ का संदेश मिला कि आत्म सरोवर की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचे जैकप की हालत बिगड़ रही थी। नियाजी के पास ढाका में 26400 सैनिक थे जबकि भारत के पास सिर्फ 3000 सैनिक और वह ढाका से 30 किलोमीटर दूर भारतीय सेना ने युद्ध पर पूरी तरह से अपनी पकड़ बना ली थी। अरोड़ा अपने दलबल समिति 2 घंटे में ढाका लैंड करने वाले थे और युद्ध विराम भी जल्द समाप्त होने वाला था। जैकब के हाथ में कुछ भी नहीं था। जैकब जब नियाजी के कमरे में घुसे तो सन्नाटा छाया था। आत्म-समर्पण का दस्तावेज़ मेज़ पर रखा हुआ था।

शाम के 4:30 बजे जनरल अरोड़ा हेलीकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर उतरे अरोडा़ और नियाज़ी एक मेज़ के सामने बैठे और दोनों ने आत्म-समर्पण के दस्तवेज़ पर हस्ताक्षर किए। नियाज़ी ने अपने बिल्ले उतारे और अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया। नियाज़ी की आंखों में एक बार फिर आंसू आ गए। अंधेरा घिरने के बाद स्थानीय लोग नियाज़ी की हत्या पर उतारू नजर आ रहे थे। भारतीय सेना के वरिष्ठ अफसरों ने नियाज़ी के चारों तरफ़ एक सुरक्षित घेरा बना दिया। बाद में नियाजी को बाहर निकाला गया। इंदिरा गांधी संसद भवन के अपने दफ्तर में एक टीवी इंटरव्यू दे रही थीं। तभी जनरल मानेक शॉ ने उन्हें बांग्लादेश में मिली शानदार जीत की ख़बर दी। इंदिरा गांधी ने लोकसभा में शोर-शराबे के बीच घोषणा की कि युद्ध में भारत को विजय मिली है। इंदिरा गांधी के बयान के बाद पूरा सदन जश्न में डूब गया। इस ऐतिहासिक जीत को खुशी आज भी हर देशवासी के मन को उमंग से भर देती है।

3,900 भारतीय जवान हुए थे शहीद

इस जंग के बाद बांग्लादेश के रूप में विश्व मानचित्र पर नये देश का उदय हुआ। तक़रीबन 3,900 भारतीय जवान इस जंग में शहीद हुए और 9,851 जवान घायल हुए। एक समय था जब पाकिस्तान पर मिली इस जीत के दिन यानी 16 दिसंबर को देश भर में प्रभातफेरियां निकाली जाती थीं और जश्न का माहौल रहता था, जबकि वर्तमान समय में ऐसा नहीं देखने को नहीं मिलता है।

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