Prashant Kishor और Congress की बात बनते-बनते क्यों बिगड़ी, आखिर कहां फंसा पेंच
Prashant Kishor: प्रशांत किशोर ने कांग्रेस का ऑफर ठुकराते हुए वही बात कह डाली जो बात पार्टी का असंतुष्ट खेमा लंबे समय से कहता आ रहा है।
Prashant Kishor: भाजपा (BJP) से दो-दो हाथ करने में लगातार विफल हो रही कांग्रेस को अब चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की बूस्टर डोज मिलने की संभावनाएं पूरी तरह खत्म हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Congress President Sonia Gandhi) के आवास 10 जनपथ पर कई दिनों तक चली एक्सरसाइज और तीन राउंड की बैठक के बाद आखिरकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने कांग्रेस (Congress) का ऑफर ठुकराते हुए वही बात कह डाली जो बात पार्टी का असंतुष्ट खेमा लंबे समय से कहता आ रहा है। प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने भी कांग्रेस को नसीहत देते हुए कहा कि उसे अच्छी लीडरशिप और बड़े पैमाने पर बदलाव की जरूरत है।
कांग्रेस (congress) के जानकार सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व पीके की ओर से दिए गए सुझावों पर सहमत था और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने की भी तैयारी थी मगर बात बनते-बनते बिगड़ गई। वैसे मैं अब सवाल उठाया जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व और कई बड़े नेताओं की सहमति के बावजूद आखिर पीके और कांग्रेस की बातचीत में पेंच कहां फंस गया। दोनों पक्षों के बीच बात बिगड़ने के लिए कई कारणों को जिम्मेदार माना जा रहा है।
नहीं तो हो पा रही थी पीके की भूमिका
भाजपा (BJP) के मुकाबले कांग्रेस (Congress) को खड़ा करने के लिए पीके पूरी तरह फ्री हैंड चाहते थे। वे पार्टी के महासचिव के पद के साथ ही पार्टी में अहमद पटेल जैसा दर्जा चाहते थे। ऐसी स्थिति में उनकी भूमिका सोनिया के सलाहकार जैसी होती और उन्हें सिर्फ सोनिया गांधी को ही रिपोर्ट करना पड़ता। उनके और सोनिया (Congress President Sonia Gandhi) के बीच में कांग्रेस का कोई दूसरा नेता नहीं रहता।
दूसरी और कांग्रेस (congress) में उन्हें यह भूमिका सौंपने के लिए सहमति नहीं बन पा रही थी। कांग्रेस उन्हें एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप में शामिल करने को तैयार थी। प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) इस भूमिका के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि वे पार्टी में बड़ा बदलाव लाने और इसके लिए सुझाव देने की भूमिका के इच्छुक थे।
कांग्रेस प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को एम्पावर्ड ग्रुप का अध्यक्ष बनाने को भी तैयार नहीं थी। एम्पावर्ड ग्रुप 2024 की बड़ी सियासी जंग के लिए बनाया गया नेताओं का समूह है मगर प्रशांत इस ग्रुप का सदस्य बनकर अपनी भूमिका सीमित नहीं करना चाहते थे।
संगठनात्मक बदलाव पर सहमति नहीं
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और कांग्रेस के बीच संगठनात्मक बदलाव को लेकर भी पेंच फंसा हुआ था। पीके पार्टी संगठन में बड़ा बदलाव लाने की वकालत कर रहे थे और उनका यह भी मानना था कि पार्टी का अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को बनाया जाना चाहिए। 2019 के लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और उसी के बाद से सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पार्टी चला रहे हैं।
पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव कई बार टाला जा चुका है। अब एक बार फिर अगले अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की ताजपोशी तय मानी जा रही है। ऐसे में पीके के इस सुझाव पर भी कांग्रेस नेतृत्व के साथ उनकी सहमति नहीं बन पा रही थी। पीके पार्टी पदाधिकारियों के लिए फिक्स्ड टर्म की भी मांग कर रहे थे। ऐसी स्थिति में कांग्रेस (Congress) के कई ऐसे पदाधिकारियों को पद छोड़ना पड़ता जिन्होंने गांधी परिवार की कृपा से कई वर्षों से महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा कर रखा है।
वैसे कांग्रेस (Congress) के असंतुष्ट खेमे जी 23 से जुड़े कई नेता भी गांधी परिवार से इतर किसी व्यक्ति को पार्टी का नेतृत्व सौंपने की मांग कर चुके हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने पिछले दिनों यह मांग खुल कर रखी थी। तब भी गांधी परिवार के वफादारों को कपिल सिब्बल की यह मांग काफी नागवार गुजरी थी।
पार्टी की चुनावी रणनीति पर भी फंसा पेंच
कांग्रेस के चुनावी गठजोड़ और रणनीति को लेकर भी पेंच फंसा हुआ था। सोनिया के आवास पर अपने प्रेजेंटेशन के दौरान पीके ने सुझाव दिया था कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस (Congress) को गठबंधन करना चाहिए जबकि यूपी और बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस को अकेले अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरना चाहिए। कांग्रेस के चुनावी गठजोड़ और रणनीति के मामले को पीके पूरी तरह अपने हाथ में रखना चाहते थे।
कांग्रेस की चुनावी रणनीति से जुड़े सारे फैसले अभी तक पार्टी हाईकमान खुद लेता रहा है और अभी भी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व किसी दूसरे को यह जिम्मेदारी सौंपने के लिए तैयार नहीं था। पीके को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई कि इस मुद्दे पर कांग्रेस (Congress) नेतृत्व को तैयार करना आसान नहीं है और आखिरकार उन्होंने अपनी राह कांग्रेस से अलग करने का बड़ा फैसला ले लिया।
कई मुद्दों पर बड़े नेता सहमत नहीं
कांग्रेस नेताओं (Congress Leaders) का एक गुट ने पीके को लेकर कई तरह के सवाल भी खड़े किए थे। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पीके के कई सुझावों पर प्रियंका गांधी और अंबिका सोनी जैसे नेताओं की सहमति थी मगर कई मुद्दों पर रणदीप सुरजेवाला, केसी वेणुगोपाल, एके एंटनी, मुकुल वासनिक और दिग्विजय सिंह जैसे नेता सहमत नहीं थे।
कुछ नेताओं ने पीके की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े किए और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उस बयान की याद दिलाई थी जिसमें उन्होंने कहा था कि अमित शाह के कहने पर उन्होंने पीके को जदयू का उपाध्यक्ष बनाया था। पार्टी नेतृत्व की ओर से कई मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की जा रही थी मगर कई मुद्दों पर पैदा हुआ सैद्धांतिक मतभेद नहीं दूर हो सका।
पीके की कंपनी पर भी उठे सवाल
कांग्रेस (Congress) की ओर से एक बार इस बात पर भी जोर दिया जा रहा था कि प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को सिर्फ कांग्रेस के साथ ही काम करना चाहिए। पीके की कंपनी आईपैक ने हाल में तेलंगाना में केसीआर की पार्टी के लिए काम करने पर हामी भरी है। उनकी कंपनी ममता बनर्जी (Mamata Banerjee), नीतीश कुमार (Nitish Kumar), एम के स्टालिन (MK Stalin), जगन मोहन रेड्डी (Jagan Mohan Reddy) और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के साथ पूर्व में काम कर चुकी है।
पिछले साल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Elections) के बाद पीके ने कंपनी के साथ रिश्ता तोड़ने की बात कही थी मगर कांग्रेस नेताओं की ओर से लगातार इसे लेकर सवाल उठाए जा रहे थे। पीके की ओर से लगातार सफाई दिए जाने के बावजूद इस मुद्दे पर भी सहमति नहीं बन सकी। कांग्रेस नेताओं की ओर से शर्त रखी गई थी कि कांग्रेस में शामिल होने के बाद पीके को सभी दलों के साथ अपनी दोस्ती पूरी तरह खत्म करनी होगी। पीके ने कांग्रेस मैं एंट्री की संभावनाएं खत्म होने के बाद पार्टी को अच्छी लीडरशिप विकसित करने और पार्टी में बड़े बदलाव की नसीहत तक दे डाली है।
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