World Day Against Trafficking In Persons: विश्व मानव तस्करी निरोधी दिवस आज, जानें कितनी महिलाएं हो रही यौन शोषण की शिकार
World Day Against Trafficking In Persons: संयुक्त राष्ट्र ने 2003 को विश्व मानव तस्करी निरोधी दिवस, 30 जुलाई को मनाने की घोषणा की थी। रिपोर्ट के अनुसार, मानव तस्करी (79%) का सबसे आम रूप यौन शोषण है।
World Day Against Trafficking In Persons: संयुक्त राष्ट्र ने 2003 को विश्व मानव तस्करी निरोधी दिवस (World Day Against Trafficking In Persons), 30 जुलाई को मनाने की घोषणा की थी। जिससे की लोगो के बीच मानव तस्करी (Human Trafficking) से पीड़ित लोगों के अधिकारों का संवर्धन और सरंक्षण को लेकर जागरूकता पैदा की जा सके।
मानव तस्करी (Manav Taskari) दुनिया भर में एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है। यह एक ऐसा अपराध है जिसमें लोगों को उनके शोषण के लिये खरीदा और बेचा जाता है।मानव तस्करी एक घृणित अपराध है जोकि असमानता, अस्थिरता और संघर्ष के कारण फलता-फूलता है। मानव तस्कर मनुष्य की आशाओं और आकांक्षाओं का लाभ उठाते हैं। वे कमजोर पर घात लगाते हैं और फिर उनके मूलभूत अधिकारों का हरण कर लेते हैं। बच्चे और युवा, प्रवासी और शरणार्थी खास तौर से इसके प्रभाव में आ जाते हैं। महिलाओं और लड़कियों को बार-बार शिकार बनाया जाता है। उनका यौन शोषण होता है, उनसे जबरन वेश्यावृत्ति, यौन दासता कराई जाती है, उनकी जबरन शादियां करा दी जाती हैं। मानव अंगों का भयावह व्यापार भी होता है।मानव तस्करी के कई प्रकार हैं और यह सीमाओं से परे है। तस्करों को अक्सर सजा का कोई डर नहीं होता क्योंकि इस अपराध की तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। यह रवैया बदलने की जरूरत है।
मानव तस्करी पर वैश्विक रिपोर्ट
मानव तस्करी पर वैश्विक रिपोर्ट (Global Report on Trafficking in Persons) अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है, जो मानव तस्करी को लेकर वैश्विक स्तर पर व्यापक मूल्यांकन प्रदान करती है। इसमें 155 देशों से प्राप्त आँकड़े शामिल हैं-
रिपोर्ट के अनुसार, मानव तस्करी (79%) का सबसे आम रूप यौन शोषण है। यौन शोषण की शिकार मुख्य रूप से महिलाएँ और लड़कियाँ हैं। हैरानी की बात यह है कि 30% देशों में, जो कि तस्करों के जेंडर बारे में जानकारी प्रदान करते हैं, महिला तस्करों का अनुपात सबसे अधिक हैं। कुछ क्षेत्रों में महिलाएँ ही महिलाओं एवं लड़कियों की तस्करी करती हैं।
मानव तस्करी का दूसरा सबसे आम रूप बलात् श्रम (18%) है। दुनिया भर में तस्करी के शिकार लोगों में से लगभग 20% बच्चे हैं। अफ्रीका और मेकांग क्षेत्र के कुछ हिस्सों में मुख्य तौर पर (पश्चिम अफ्रीका के कुछ हिस्सों में 100% तक) बच्चों की ही तस्करी की जाती है।
ऐसी आम राय है कि तस्करी द्वारा लोगों को एक देश से दूसरे देश ले जाया जाता है लेकिन ज़्यादातर शोषण के मामलें घर के करीब ही पाए जाते हैं। आँकड़ों के अनुसार, अंतर्देशीय या घरेलू तस्करी मानव तस्करी का प्रमुख रूप है।
आंकड़े
- विश्व में श्रम एवं यौन अपराध के लिये की जाने वाली मानव तस्करी से लगभग 25 मिलियन वयस्क तथा बच्चे पीड़ित हैं।
- वर्ष 2019 की रिपोर्ट में तस्करी की राष्ट्रीय प्रकृति पर प्रकाश डाला गया है जिसके अनुसार 60% मामलों में पीड़ितों को उनके देश की सीमाओं से बाहर ले जाने के बजाय देश के अंदर ही उनकी तस्करी की जाती है।
- पश्चिमी और मध्य यूरोप, मध्य-पूर्व तथा कुछ पूर्व एशियाई देशों को छोड़कर दुनिया के सभी क्षेत्रों में घरेलू स्तर पर तस्करी की समस्या ज़्यादा प्रबल है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आँकड़ों के अनुसार, यौन उत्पीड़न हेतु तस्करी देश की सीमाओं से बाहर किये जाने की संभावना होती है, जबकि बलात् श्रम के मामले में लोगों की तस्करी सामान्यत: अपने ही देश में की जाती है
- महिलाएँ और लड़कियाँ सबसे अधिक असुरक्षित हैं। 90% महिलाओं एवं लड़कियों की तस्करी यौन शोषण के लिये की जाती है।
- जानकारी के अनुसार दक्षिण एशिया में 85% मानव तस्करी बलात् श्रम के लिये की जाती है।
- भारत में सर्वाधिक प्रभावित राज्य पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड, असम हैं।
मानव तस्करी के कारण-गरीबी और अशिक्षा,बंधुआ मज़दूरी,देह व्यापार,सामाजिक असमानता,क्षेत्रीय लैंगिक असंतुलन,बेहतर जीवन की लालसा,सामाजिक सुरक्षा की चिंता,महानगरों में घरेलू कामों के लिये लड़कियों की तस्करी,चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिये बच्चों की तस्करी
भारत मे मानव तस्करी (India Mein Manav Taskari)
मावनता को शर्मसार कर देने वाली मानव तस्करी सभ्य समाज के माथे पर बदनुमा दाग है और भारत में मानव तस्करी को लेकर पिछले दिनों अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट 'ट्रैफिकिंग इन पर्संस रिपोर्ट-2020' में भारत को गत वर्ष की भांति टियर-2 श्रेणी में रखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने 2019 में मानव तस्करी जैसी बुराई को मिटाने के लिए प्रयास तो किए लेकिन इसे रोकने से जुड़े न्यूनतम मानक हासिल नहीं किए जा सके। रिपोर्ट के अनुसार भारत आज भी वर्ल्ड ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मानचित्र पर एक अहम ठिकाना बना हुआ है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि माओवादी समूहों ने हथियार और आईईडी को संभालने के लिए छत्तीसगढ़, झारखंड इत्यादि में 12 वर्ष तक के कम उम्र बच्चों को जबरन भर्ती किया और मानव ढ़ाल के तौर पर भी उनका इस्तेमाल किया गया। यही नहीं, माओवादी समूहों से जुड़ी रही महिलाओं और लड़कियों के साथ माओवादी शिविरों में यौन हिंसा भी की जाती थी। सरकार विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जम्मू-कश्मीर में भी सशस्त्र समूह 14 वर्ष तक के कम उम्र किशोरों की लगातार भर्ती और उनका इस्तेमाल करते रहे हैं।
कोरोना काल का प्रभाव
कोरोना संक्रमण काल में तो मानव तस्करी को लेकर स्थिति और बदतर हुई है। सीमा पार से भी मानव तस्करी की घटनाएं इन दिनों बढ़ी हैं, जिसे देखते हुए हाल ही में बीएसएफ़ द्वारा ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अलर्ट जारी किया गया है। बीएसएफ़ अधिकारियों का कहना है कि कोलकाता, गुवाहाटी, पूर्वोत्तर भारत के कुछ शहरों और दिल्ली तथा मुंबई जैसे शहरों में नौकरी दिलाने का लालच देकर गरीबों और ज़रूरतमंद लोगों को सीमा पार से लाने के लिए तस्करों ने कुछ नए तरीकों पर ध्यान केन्द्रित किया है।
दरअसल कोरोना संक्रमण काल में रोजगार छिन जाने के चलते लोगों को लालच देकर सीमा पार से तस्करी के माध्यम से लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। असम, बिहार इत्यादि बाढ़ प्रभावित इलाकों में भी मानव तस्कर सक्रिय हो रहे हैं।राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक, महिला और बाल विकास मंत्रालय को महामारी के दौरान 27 लाख शिकायतें फोन कॉल के द्वारा प्राप्त हुए, जिनमें से 1.92 लाख मामलों में कार्रवाई की गई.इन कार्रवाइयों में करीब 32,700 मानव तस्करी के थे. इसके अलावा बाल विवाह, यौन शोषण, भावनात्मक शोषण, जबरन भीख मंगवाना और साइबर अपराधों के मामले थे.।
एनएचआरसी ने अपने पहले के परामर्श में राज्यों को गांवों से बाहर जाने वाले प्रवासियों का विवरण दर्ज करने और तस्करी के मामलों को रोकने का निर्देश दिया था।
2019 NCRB रिपोर्ट के आंकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार विगत एक दशक में भारत में हुई मानव तस्करी में 76 फीसदी लड़कियां और महिलाएं हैं। मानव तस्करी का धंधा कम समय में भारी मुनाफा कमा लेने का जरिया है। इसी लालच के चलते यह समाज के लिए गंभीर समस्या बन रहा है।
ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के बाद मानव तस्करी को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध माना गया है। एशिया में तो भारत ऐसे अपराधों का गढ़ माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार किसी व्यक्ति को डराकर, बल प्रयोग कर या दोषपूर्ण तरीके से भर्ती, परिवहन अथवा शरण में रखने की गतिविधि तस्करी की श्रेणी में आती है।
देह व्यापार से लेकर बंधुआ मजदूरी, जबरन विवाह, घरेलू चाकरी, अंग व्यापार तक के लिए दुनिया भर में महिलाओं, बच्चों व पुरूषों को खरीदा व बेचा जाता है और आंकड़ों पर नजर डालें तो करीब 80 फीसदी मानव तस्करी जिस्मफरोशी के लिए होती है जबकि 20 फीसदी बंधुआ मजदूरी या अन्य प्रयोजनों के लिए।
एनसीआरबी के अनुसार तस्करी के मामलों में भारत में मानव तस्करी दूसरा सबसे बड़ा अपराध है। कुछ आंकड़ों के मुताबिक पिछले करीब एक दशक में ही यह कई गुना बढ़ा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। लगभग हर राज्य में मानव तस्करों का नेटवर्क फैला है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ तो मानव तस्करी के मुख्य स्रोत और गढ़ माने जाते हैं। मानव तस्करी के दर्ज होने वाले 70 फीसदी से अधिक मामले इन्हीं राज्यों के होते हैं, जहां लड़कियों को रेड लाइट एरिया के लिए भी खरीदा-बेचा जाता है।
मानव तस्करी के कुल 2260 मामले रजिस्टर्ड हुए जबकि 2018 में कुल मामलों की संख्या 2278 थी।इसका मतलब करीब 0.8 फीसदी की गिरावट देखने को मिली।कुल 6616 लोग मानव तस्करी का शिकार हुए जिसमे से 2914 बच्चे और 3702 युवा थे।इसके अलावा 6571 लोगों को मानव तस्करी की चंगुल से छुड़ाया गया।इस हिसाब से 2260 मामलों के 5128 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
मानव तस्करी के खिलाफ भारत के बढ़ते कदम
केंद्र सरकार ने मानव तस्करों पर नकेल कसने और पीड़ितों के लिए पुनर्वास जैसे कदम उठाने का फैसला किया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मानव की तस्करी (निवारण, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक, 2021 का मसौदा सार्वजनिक किया है.नया विधेयक मानव तस्करी विधेयक 2018 के बाद संशोधन की एक लंबी प्रक्रिया के बाद आया है।
मानव तस्करी विधेयक 2018 को लोकसभा में तीखी बहस के बाद मंजूरी मिली थी, लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो पाया था और 2019 में मोदी सरकार का पहला कार्यकाल खत्म हो गया, जिसके बिल भी समाप्त हो गया।
अब इस बहुप्रतीक्षित नए मसौदा विधेयक में प्रस्ताव है कि "व्यक्तियों की तस्करी" का अपराध करने वाले किसी भी व्यक्ति को कम से कम सात साल की कैद की सजा दी जाएगी, जिसे दस साल तक बढ़ाया जा सकता है और कम से कम एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी मानव तस्करी की रोकथाम और मुकाबला करने के लिए जिम्मेदार राष्ट्रीय जांच और समन्वय एजेंसी के रूप में कार्य करेगी. एक बार कानून बन जाने के बाद केंद्र इस कानून के सभी प्रावधानों को लागू करवाने के लिए एक राष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी समिति को अधिसूचित और स्थापित करेगा। इस समिति में तमाम मंत्रालयों के अधिकारियों को शामिल किया जाएगा, जिसमें गृह सचिव अध्यक्ष और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव सह-अध्यक्ष होंगे। कानून को धरातल पर उतारने के लिए राज्य और जिला स्तर पर मानव तस्करी रोधी समितियों का भी गठन किया जाएगा।
झारखंड में मानव तस्करी के खिलाफ तत्परता से कार्रवाई की जा रही है। कुछ दिन पहले राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सभी जिलों के उपायुक्त को मानव तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
उत्तर प्रदेश के कानपुर, उन्नाव व अन्य राज्यों की करीब 20 महिलाओं को मानव तस्करों ने नौकरी और बेहतर सैलरी का झांसा देकर ओमान, सऊदी अरब, कुवैत आदि खाड़ी देशों में भेजा था। महिलाएं ओमान में जिस सर्वेंट एजेंसी के दफ्तर पहुंचीं, वहां की संचालिका द्वारा उन पर जुल्म किया जाने लगा।इसके अलावा यूपी एटीएस द्वारा रोहिंग्या कनेक्शन वाले मानव तस्करी के एक बड़े रैकेट का खुलासा करके बुधवार को तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया. घटना के बाद से एक बार फिर से मानव तस्करी का घिनौना खेल चर्चा में आ गया है।
भारत में संवैधानिक प्रावधान
भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 (1) के अंतर्गत मानव या व्यक्तियों का अवैध व्यापार प्रतिबंधित है)· अनैतिक यातायात (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (आईटीपीए) वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए अवैध व्यापार की रोकथाम का प्रमुख विधान है।· आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 लागू हो गया है जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 370 को धारा 370 और 370 क आईपीसी से प्रतिस्थापित किया गया है जिसमें मानव तस्करी के खतरे का प्रतिकार करने के लिए व्यापक प्रावधान किए गए हैं जिनमे अवैध व्यापार सहित शारीरिक शोषण या किसी भी रूप में बच्चों के यौन शोषण, गुलामी, दासता, या अंगों को जबरन हटाने सहित किसी भी रूप में शोषण संबंधी प्रावधान शामिल हैं।
तस्करी से निपटने के प्रयास
वर्ष 2000 में पालेर्मो प्रोटोकॉल लाया गया जो तस्करी से निपटने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास है। हालाँकि घरेलू स्तर पर की जाने वाली तस्करी से निपटने के लिये तस्करों पर मुकदमा चलाने और इनके चंगुल से बचाए गए लोगों की देखभाल करने हेतु कानूनी ढाँचा तैयार करने के संदर्भ में देशों द्वारा विशेष रूप से अधिक प्रयास किये जाने की ज़रूरत है।
घरेलू स्तर पर तस्करी से निपटने के लिये राजनीतिक प्रयासों के साथ-साथ स्थानीय निवासियों तथा अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों का भी सहयोग अपेक्षित है। देश में कानून बनाने और उन्हें सख्ती से लागू कराने के मामले में बड़ा अंतर देखा जाता रहा है। इसीलिए बहुत से मामलों में कड़े कानूनों के बावजूद असामाजिक तत्व बेखौफ अपना खेल खेलते हैं। अतः मानव तस्करी के मामले में कड़े कानूनी प्रावधानों की सतत निगरानी व्यवस्था के साथ-साथ ऐसा निगरानी तंत्र विकसित करने की भी दरकार है ताकि अपने रसूख के बल पर आरोपी छूट न सकें।