Sonbhadra Crime News: टमाटर भरे पिकअप में छिपा रखा था कुछ ऐसा, बीच सड़क पलटा तो मच गया हंगामा

Sonbhadra Crime News: सोनभद्र जिले में टमाटर की आड़ में इमारती लकड़ियों की तस्करी की जा रही है।

Published By :  Divyanshu Rao
Update:2021-08-07 14:11 IST
इमारती लकड़ी की तस्वीर 

Sonbhadra Crime News: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सोनभद्र (Sonbhadra) जिले में टमाटर की आड़ में इमारती लकड़ियों की तस्करी की जा रही है। शनिवार की भोर में म्योरपुर थाना क्षेत्र के खैराही के पास पिकअप पलटने के बाद यह खेल सामने आया तो हर कोई भौंचक रह गया। पकड़ में न आने पाए, इसके लिए तस्कर ट्रैक्टर के जरिए पिकअप को सीधा कर, टमाटर ले फरार हो गए और लकड़ी के बोटों को वहीं पड़े रहने दिया।

सूचना मिलने पर पहुंची वन कर्मियों की टीम ने इमारती लकड़ियों के बोटे को कब्जे में ले लिया और यह लकड़ी कहां से आई?इसकी छानबीन शुरू कर दी है। बरामद लकड़ी की कीमत लाखों में बताई जा रही है।

ग्रामीणों के मुताबिक छत्तीसगढ़ की तरफ से टमाटर लादकर आ रहा एक पिकअप शनिवार की भोर में चार बजे के करीब खैराही गांव के पास (मुर्धवा-म्योरपुर के बीच) अचानक अनियंत्रित होकर सड़क किनारे गड्ढेनुमा जगह पर पलट गया। रास्ते से गुजर रहे लोगों ने समझा कि पिकअप सामान्य तरीके से पलटी हुई है।

पिकअप सवार लोग लकड़ियां छोड़ भागे

कोई घायल हुआ हो तो उसे बचाने की नियत से जब लोग रूके तो देखा कि टमाटर के नीचे साखू के बड़े-बड़े छह बोटे रखे हुए हैं। लोगों ने पिकअप पर सवार लोगों से जब इसके बारे में जानकारी चाही तो वह टालमटोल करते हुए पास की बस्ती से जाकर ट्रैक्टर ले आए और टोचन करते हुए पिकअप को सीधा कर सड़क पर ले आए।

पिकअप चालक टमाटर लादकर फरार हो गए

इसके बाद उस पर टमाटर लादकर वहां से फरार हो गए। बोटा लादने के चक्कर में कहीं पकड़ न जाएं, इस डर से लकड़ियां वहीं छोड़कर भाग गए। ग्रामीणों ने जब उन्हें लकड़ी छोड़कर भागता देखा तो तत्काल मामले की जानकारी वन विभाग के लोगों को दी। वन दरोगा विजेंद्र सिंह की अगुवाई में पहुंची टीम ने मौके का जायजा लेने और लोगों से पूछताछ कर जानकारी जुटाने के बाद अधिकारियों को प्रकरण से अवगत कराया।

इसके बाद लकड़ियों को लाकर म्योरपुर रेंज कार्यालय परिसर में रख दिया गया। वन दरोगा विजेंद्र सिंह ने बताया कि इस समय टमाटर लदी पिकअप छत्तीसगढ़ से आ रही हैं। हो सकता है, लकड़ियां छत्तीसगढ़ से लाई जा रही हों। फिलहाल लकड़ियां कहां से लाई गईं और इसे लाने वाले कौन थे? इसका पता लगाया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ सीमावर्ती इलाके लकड़ी तस्करों के गढ़ बने हुए हैं

बता दें कि छत्तीसगढ़ सीमा क्षेत्र से सटे म्योरपुर और बभनी ब्लॉक क्षेत्र के जंगल तथा जनपद से सटे छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाके वर्षों से लकड़ी तस्करों का गढ़ बने हुए हैं। पूर्व वन संरक्षक मिर्जापुर प्रभाकर दूबे की सख्ती के बाद इसमें तेजी से कमी आई थी लेकिन उनके मिर्जापुर से हटने के बाद से एक बार फिर से लकड़ी तस्करों की गतिविधियां बढ़ने लगी हैं।

गौर करने लायक बात यह है कि तस्करी और ओवरलोडिंग रोकने के लिए म्योरपुर और बभनी दोनों थाना क्षेत्रों में बैरियर लगाए गए हैं इस पर प्रशासनिक और पुलिस कर्मियों की ड्यूटी भी लगी हुई है, बावजूद तस्करी यह बताती है कि अंदर खाने कुछ कुछ नहीं बहुत कुछ गड़बड़ है।

सत्ता और निगरानी तंत्र दोनों का मिला हुआ है संरक्षण

लकड़ी तस्करों की जड़ें छत्तीसगढ़ से उत्तर प्रदेश होते हुए मध्य प्रदेश तक जमी हुई हैं। कई बार छत्तीसगढ़ के रास्ते जहां लकड़ियों की तस्करी का मामला सामने आ चुका है। वहीं म्योरपुर, बभनी रेंज के जंगलों के साथ ही जुगैल रेंज के जंगलों से भी बड़े स्तर पर लकड़ी तस्करी की बात सामने आ चुकी है। इसको लेकर कई बार जांच ही बैठी लेकिन उसका निष्कर्ष क्या निकला? यह बात कभी सार्वजनिक नहीं हो पाई।

लखनऊ तक इमारती लकड़ियों आने की बात प्रकाश में आ चुकी है

इसी तरह बिहार और झारखंड की सीमा से सटे जंगलों से प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक इमारती लकड़ियां ले जाने की बात प्रकाश में आ चुकी है। इसको लेकर पूर्व में पुलिसकर्मियों को भी निलंबित किया जा चुका है लेकिन बन कर्मियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई इसकी भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई।

इमारती लकड़ियों की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

कई बड़े अफसर देते हैं इस रैकेट को संरक्षण

कई बड़े अफसरों के नाम भी इस रैकेट को संरक्षण देने के मामले में चर्चा में आ चुके हैं। म्योरपुर क्षेत्र की एक आरा मशीन और एक चर्चित फर्नीचर कारीगर की भूमिका पर भी कई बार सवाल उठाए जा चुके हैं। इनका रैकेट कितना मजबूत है,इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस किसी ने भी इनका विरोध करने का साहस दिखाया, उन्हें किसी न किसी मुकदमे में फंसाकर परेशान कर दिया गया।

अधिकांश मामलों में पुलिस भी मुकदमाकर्ताओं का ही पक्ष लेती आई है। ऐसे में लकड़ी तस्करों का सिंडीकेट कभी टूटेगा भी या इसी तरह इमारती लकड़ियां जंगलों से गायब होती रहेंगी, यह बड़ा सवाल बना हुआ है।

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