CCSU News Meerut: फिल्म वर्कशॉप में शामिल हुए विशेषज्ञ, फिल्म के बारीकियों पर की चर्चा
CCSU News Meerut: फिल्मों का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि ये तीनों फिल्में कम बजट की है और यह सिद्ध करती हैं कि कम बजट में अच्छी फिल्में तैयार हो सकती हैं। तकनीकी पक्ष पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि ध्वनि, लाईट, संगीत, छायांकन, भाव और अभिनय का सामजंस्य होना फिल्म की सफलता एवं असफलता तय करता है।
CCSU News Meerut: समाज के मुद्दों एवं संवेदनाओं को पर्दे पर उकेरना फिल्मों का मुख्य उद्देश्य होता है। भारतीय सिनेमा के पिछले सौ साल के इतिहास पर एक नजर डालें तो ऐसी अनेक फिल्में बनी हैं, जिनमें समाज को दिखाया गया है। लेकिन ऐसी फिल्में भी बनीं जो भारत और भारतीयता से परे थीं। यह बात तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल और मेरठ चलचित्र सोसाइटी के संयुक्त प्रयास से आयोजित फिल्म एप्रीसियेशन कार्य शाला में बतौर मुख्य अतिथि राष्ट्रदेव पत्रिका के प्रबंघ संपादक सुरेन्द्र सिंह ने कही। उन्होनें कहा कि आज परिदृश्य बदल रहा है, आज ऐसी फिल्में बन रही हैं और दर्शकों को पसंद भी आ रहीं हैं जो भारतीयता पर बनी हैं और देश के ऐंतिहासिक परिदृश्य का वर्णन कर रही हैं।
इस कार्यशाला में तीन फिल्में दिखाई गयीं। पहली फिल्म का शीर्षक "छोटी सी बात थी" इस फिल्म में बड़े शहरों में पनप रही असमाजिकता को दर्शाया गया है। लोग बात करने के लिए कैसे किसी दूसरे को ढूंढते रहते हैं, इस बात को बड़े भावनात्मक दृष्टिकोण से पर्दे पर दिखाया गया। दूसरी फिल्म 'अननोन कॉल' थी, इस फिल्म में कोविड के दौरान किसी व्यक्ति की माँ का कोरोना से देहांत हो जाता है, उस व्यक्ति को क्वारन्टाइन करने के लिए सीएमओ ऑफिस से किसी महिला का फोन आता है। और उस महिला एवं व्यक्ति के बीच एक कॉल के माध्यम से ऐसा भावनात्मक संबंध बनता है, जो बाद में माँ-बेटे के रिश्ते के रूप में स्थापित हुआ, ऐसा दर्शाया गया है। वहीं तीसरी फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों को समेटे हुए डाक्यूमेंट्री के रूप में दिखाई गयी। जिसका शार्षक था 'विभाजन की विभीषिका'। इस फिल्म में देश की आजादी के समय देश के बंटवारे में हुई गंभीर घटनाओं को दर्शाया गया है और विभाजन के कारणों को भी रेखांकित किया गया है।
फिल्म की स्क्रिप्ट और अभिनय होते है सबसे महत्वपूर्ण - नितिन यदुवंशी
कार्यशाला में विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित फिल्म निर्माता नितिन यदुवंशी ने कहा कि वैसे तो फिल्म के लिए प्रत्येक आयाम महत्वपूर्ण होता है लेकिन फिल्म की स्क्रिप्ट एवं अभिनय सबसे महत्वपूर्ण है। दिखाई गई तीनों फिल्मों का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि ये तीनों फिल्में कम बजट की है और यह सिद्ध करती हैं कि कम बजट में अच्छी फिल्में तैयार हो सकती हैं। तकनीकी पक्ष पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि ध्वनि, लाईट, संगीत, छायांकन, भाव और अभिनय का सामजंस्य होना फिल्म की सफलता एवं असफलता तय करता है।
कार्यक्रम का संचालन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं मेरठ चलचित्र सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. मनोज श्रीवास्तव ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रोफ़ेसर प्रशांत कुमार ने किया। इस अवसर पर डॉ. यशवेन्द्र वर्मा, सुनील सिंह, लव कुमार सिंह, बीनम यादव, राकेश कुमार, केशव जिन्दल, प्रियांशी तथा विभाग के विद्यार्थियों के साथ-साथ विद्या कॉलजे, महालक्ष्मी कॉलेज सहित कई कॉलेजों के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।