High School Result: हाई स्कूल का रिजल्ट तो हमारे जमाने में ही आता था

High School Result: दसवीं का बोर्ड बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहां पहुंचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे

Newstrack :  Network
Update:2024-05-01 15:44 IST

Result ( Social Media Photo)

High School Result:: रिजल्ट तो हमारे जमाने मे आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 फ़ीसदी होता था। उसमें भी आप ने वैतरणी पैर ली हो। डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था।दसवीं का बोर्ड...बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहां पहुंचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे। जो हिम्मत करके पहुंचते ,उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते,"अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं।

”रही-सही कसर हाईस्कूल में पंच वर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते..." भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो।और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं, रिजल्ट अखबारों में छपकर आता था।फिर आवाज सुनाई देती..."रिजल्ट-रिजल्ट।”पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले अखबार को कमर में खोंसकर उनमें से एक किसी ऊंची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से नंबर पूछा जाता और रिजल्ट सुनाया जाता। पांच हजार एक सौ तिरासी ...फेल, चौरासी..फेल, पिचासी..फेल, छियासी..सप्लीमेंट्री।


कोई मुरव्वत नही..पूरे मुहल्ले के सामने बेइज्जती।

रिजल्ट दिखाने की फीस भी डिवीजन से तय होती थी। लेकिन फेल होने वालों के लिए ये सेवा पूर्णतया निशुल्क होती।जो पास हो जाता, उसे ऊपर जाकर अपना नम्बर देखने की अनुमति होती। टॉर्च की लाइट में प्रवेश-पत्र से मिलाकर नम्बर पक्का किया जाता, और फिर 10, 20 या 50 रुपये का पेमेंट कर पिता-पुत्र एवरेस्ट शिखर आरोहण करने के से गर्व के साथ नीचे उतरते।जिनका नम्बर अखबार में नहीं होता उनके परिजन अपने बच्चे को कुछ ऐसे ढांढस बंधाते... अरे, कुंभ का मेला जो क्या है, जो बारह साल में आएगा, अगले साल फिर दे देना एग्जाम... नींव मजबूत हो जाएगी... पूरे मोहल्ले में रतजगा होता।

चाय के दौर के साथ चर्चाएं चलती, अरे ... फलाने के लड़के ने तो पहली बार में ही ...आजकल बच्चों के मार्क्स भी तो फॉरेनहाइट में आते हैं।99.2, 98.6, 98.8और हमारे जमाने में मार्क्स सेंटीग्रेड में आते थे....37.1, 38.5, 39,हां यदि किसी के मार्क्स 50 या उसके ऊपर आ जाते तो लोगों की खुसर -फुसर .....नकल की होगी,मेहनत से कहां इत्ते मार्क्स आते हैं।वैसे भी इत्ता पढ़ते तो कभी देखा नहीं। (भले ही बच्चे ने रात रात जगकर आंखें फोड़ी हों)सच में, रिजल्ट तो हमारे जमाने में ही आता था।

( सोशल मीडिया साभार ) 

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