भारतीय बजट : इतिहास एवं तथ्य

Update:2020-01-25 19:12 IST

अंग्रेजी भाषा के Budget - बजट शब्द की उत्पति सर्वप्रथम लैटिन भाषा के शब्द Bulga - बुल्गा से हुई है, जिसका अर्थ होता है चमड़े का थैला। कालांतर में इसे फ्रांसीसी भाषा में इसे Bougette कहा गया, शुरुआत में इसे अंग्रेजी में भी बोगेट कहा गया, जो बाद में बजट शब्द में तब्दील हो गया। बजट का सम्बन्ध धन, राजस्व, आय और उसके व्यय की सूची से सम्बंधित होता है। हिंदी भाषा में बजट को अर्थसंकल्प भी कहा जाता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र (Microeconomics) में अर्थसंकल्प एक महत्वपूर्ण अवधारणा (Concept) है।

अर्थसंकल्प किसी देश का, संस्था का, व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक भी हो सकता है। अपने वर्तमान स्वरूप के अनुसार भारत के बजट को लगभग 150 साल पुराना कहा जा सकता है। 7 अप्रैल 1860 को देश का पहला बजट ब्रिटिश सरकार के वित्त मंत्री जेम्स विल्सन ने पेश किया था।

प्राचीन भारत में बजट का स्वरूप

भारत के प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास में भी बजट का उल्लेख भिन्न भिन्न स्वरूप में मिलता है। हर साल वित्तीय वर्ष की शुरुआत में सरकार आम बजट के रूप में अपने पिछले खर्चों और आगामी योजनाओं का पूरा विवरण पेश करती है। यह व्यवस्था पिछले कुछ सालों से नहीं, बल्कि सैकड़ों साल पहले से भारत वर्ष में लागू है। भारत में सदियों से टैक्स की व्यवस्था है और उस टैक्स को जनता के हित में खर्च करने का प्रावधान भी है। यह व्यवस्था राजकीय आधार पर और धार्मिक आधार पर होती थी। इस्लाम में भी जकात के रूप में अपनी कमाई का 2 फीसदी हिस्सा देने के लिए कहा गया है।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी बजट व्यवस्था का जिक्र किया गया है। अर्थशास्त्र में मौर्य वंश के वक्त की राजकीय व्यवस्था के बारे में लिखा गया है। इसके अनुसार पहले भी रखरखाव, आगामी तैयारी, हिसाब-किताब का लेखा-जोखा बजट की तरह पेश किया जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार हर साल वित्त मंत्री खजाने के ओपनिंग बैलेंस, वर्तमान खर्चे आदि के बारे में एक नोट तैयार करता था। उस वक्त जिन कार्यों पर काम चल रहा है उसे 'कर्णिय' और जो काम हो चुके 'सिद्धम' कहा जाता था। उसके आधार पर ही बजट तैयार होता था। इसी के साथ ही साल के अंत में खजाने की जानकारी का क्लोजिंग बैलेंस का स्टेटमेंट तैयार किया जाता था। बजट में आगे के लिए विकास योजनाएं और खर्चे का भी ब्यौरा लिखा जाता था।

मौर्य राजवंश के बाद दिल्ली के सुल्तान और मुगल शासकों ने भी इस व्यवस्था को लागू रखा और उनका फाइनेंशियल सिस्टम काफी अलग नहीं था। इस दौरान कुछ शासकों ने अपने अनुसार कुछ नियमों में बदलाव किए। हालांकि मूल बजट व्यवस्था में बदलाव नहीं हुआ।

ब्रिटिश काल में बजट का स्वरूप

इसके बाद जब ब्रिटिश शासन ने भारत को अपने अधिकार में ले लिया तो वहां ईस्ट इंडिया कंपनी के कानून प्रभावी होने लगे। 1833 तक कोई व्यवस्थित केंद्रीय वित्तीय व्यवस्था नहीं थी। 1833 के चार्टर अभिकरण के साथ स्थिति बदल दी गई, जिसमें इंडिया इन काउंसिल के गवर्नर जनरल के पास राजस्व का नियंत्रण निहित कर दिया गया। आजादी के लिए हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1857 में वित्तीय व्यवस्था में इंग्लैंड के आधार पर सुधार किया गया। उसके बाद देश में केंद्रीय वित्तीय व्यवस्था और प्रशासनिक व्यवस्था लागू हुई। 18 फरवरी 1869 को गवर्नर जनरल इन काउंसिल के फाइनेंस मेंबर सर जेम्स विलंसन ने बजट पेश किया था, जिसे भारत का पहला बजट कहा जाता है, जो कि पूरी तरह से आधिकारिक तौर पर पेश किया गया था। उस वक्त संसद में कोई भी चुना हुआ प्रतिनिधि नहीं था। साथ ही यह बजट ब्रिटिश संसद को नहीं पेश किया गया था।

1858-1935 के बीच वित्तीय व्यवस्था एक जैसी थी और इसमें इसका मुखिया सेक्रेटरी-ऑफ-स्टेट इन काउंसिल होता था। साथ ही कई आधार पर कई अन्य समितियां भी इसके लिए काम करती थीं।

भारत में 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलने वाला वित्तीय वर्ष 1867 से शुरू हुआ। इससे पहले तक 1 मई से 30 अप्रैल तक का वित्तीय वर्ष होता था।

स्वतंत्र भारत 9 अक्टूबर 1946 से 14 अगस्त 1947 तक का बजट उस समय की अंतरिम सरकार के वित्तमंत्री लियाकत अली खां ने पेश किया था। फिर जब भारत आज़ाद हुआ तब आज़ाद भारत का पहला बजट आर के षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 में पेश किया था।

स्वतन्त्र भारत और बजट

स्वतन्त्र भारत में देश का पहला बजट पहले वित्त मंत्री आरके षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया इसमें 15 अगस्त 1947 से लेकर 31 मार्च 1948 के दौरान साढ़े सात महीनो को शामिल किया गया था। आरके षणमुखम चेट्टी ने 1948-49 के बजट में पहली बार अंतिरम शब्द का प्रयोग किया तब से लघु अवधि के बजट के लिए इस शब्द का इस्तेमाल शुरु हुआ। जबकि गणतंत्र भारत का पहला बजट 28 फरवरी 1950 को जॉन मथाई ने पेश किया था। इस बजट में पहली बार योजना आयोग और पंचवर्षीय योजना का जिक्र किया गया था।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-112 में भारत के केंद्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है, जो कि भारतीय गणराज्य का वार्षिक बजट होता है। अगर हम भारतीय संविधान में बजट शब्द को ढूंढ़ेंगे तो हमें ये शब्द कहीं नहीं मिलेगा क्योंकि भारतीय संविधान में बजट शब्द का उल्लेख कहीं भी नहीं किया गया है। बजट के बदले संविधान के अनुच्छेद 112 में सरकार हर साल आय-व्यय का एक लेखा-जोखा प्रस्तुत करेगी जिसमे यह उल्लेख रहेगा कि ‘सरकार आगामी वित्तीय वर्ष में किस मद में कितना व्यय करेगी साथ ही इस व्यय को पूरा करने के लिए सरकार आय कहां से प्राप्त करेगी’ का उल्लेख किया गया है। बजट को लागू करने से पहले इसे संसद द्वारा पास करना आवश्यक होता है। सीडी देशमुख रिजर्व बैंक के एकमात्र ऐसे गवर्नर हैं जिन्होंने 1951-52 में अंतरिम बजट प्रस्तुत किया था।

बजट प्रस्तुत करने का समय

1924 से लेकर 1999 तक बजट फरवरी के अंतिम कार्यकारी दिन शाम पांच बजे पेश किया जाता था। यह प्रथा सर बेसिल ब्लैकैट ने 1924 में शुरु की थी, इसके पीछे का कारण रात भर जागकर वित्तिय लेखा जोखा जोखा तैयार करने वाले अधिकारियोँ को अराम देना था। 2000 में पहली बार यशवंत सिन्हा ने बजट सुबह 11 बजे पेश किया। इतने बर्षो में बजट पेश किए जाने के समय से लेकर तौर तरीकों में बड़े स्तर पर बदलाव हुआ कई नई परंपराएं अस्तित्व में आई और कई कीर्तिमान भी स्थापित हुए।

वर्ष 2000 तक अंग्रेजी परंपरा से अनुसार, बजट शाम को 5 बजे प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन 2001 में अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने इस परंपरा को तोड़ा और शाम की बजाय सुबह 11 बजे संसद में बजट पेश करने की शुरुआत की गई। दरअसल, यह समय ब्रिटिश संसद के आधार पर तय किया गया था और उनके टाइम के अनुसार भारत ने इसे शाम को 5 बजे पेश करना शुरू किया। पहली बार 11 बजे बजट तत्कालीन वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने पेश किया। शाम 5 बजे बजट पेश करने की प्रथा सर बेसिल ब्लैकेट ने 1924 में शुरू की थी।

2017 से पहले बजट फरवरी माह के अंतिम कार्य दिवस में पेश किया जाता था, लेकिन 2017 से इसे 1 फरवरी या फरवरी के पहले कार्य दिवस में पेश किया जाने लगा। 2017 के बजट से ही केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने रेल बजट को आम बजट में समायोजित कर एक और प्रयोग किया।

बजट पेपर की छपाई

बजट पेपर पहले राष्ट्रपति भवन में ही छापे जाते थे, लेकिन 1950 में पेपर लीक हो जाने के बाद से इन्हें मिंटो रोड स्थित सिक्योरिटी प्रेस में छापा जाने लगा। 1980 से बजट पेपर नॉर्थ ब्लॉक से प्रिंट होने लगे। शुरुआत में बजट अंग्रेजी में बनाया जाता था, लेकिन 1955-56 से बजट दस्तावेज हिन्दी में भी तैयार किए जाने लगे। 1955-56 में ही बजट में पहली बार कालाधन उजागर करने की स्कीम शुरू की गई थी।

किसने कितनी बार पेश किया बजट

1958-59 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बजट पेश किया, उस समय वित्त मंत्रालय उनके पास था। ऐसा करने वाले वे देश के पहले प्रधानमंत्री बने। नेहरू के बाद इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी प्रधानमंत्री रहते हुए बजट पेश किया था। पहली महिला वित्तमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने 1970 में आम बजट पेश किया था। उस समय वे देश की प्रधानमंत्री थीं तथा वित्त मंत्रालय का प्रभार भी उनके पास ही था। और इस वर्ष 2019 में यह इतिहास दोहराया जा रहा है, जबकि देश पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी।

मोरारजी देसाई ने अब तक सर्वाधिक 10 बार बजट पेश किया है। 6 बार वित्तमंत्री और 4 बार उपप्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने ऐसा किया। इनमें 2 अंतरिम बजट शामिल हैं। अपने जन्मदिन पर 2 बार बजट पेश करने वाले वे एकमात्र वित्तमंत्री रहे हैं। देसाई का जन्मदिन 29 फरवरी को है, जो कि 4 साल में एक बार ही आता है।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी वित्तमंत्री के रूप में 7 बार बजट प्रस्तुत कर चुके हैं। वित्त पोर्टफोलियो को हासिल करने वाले राज्यसभा के पहले सदस्य प्रणब मुखर्जी ने 1982-83, 1983-84 और 1984-85 के वार्षिक बजट को प्रस्तुत किया।

1991-92 में अंतरिम तथा फाइनल बजट को अलग-अलग दलों के वित्तमंत्रियों ने संसद में रखा। अंतरिम बजट यशवंत सिन्हा जबकि फाइनल बजट को मनमोहन सिंह ने प्रस्तुत किया।

अपने जन्मदिन पर पेश किया बजट

यहाँ एक दिलचस्प बात यह भी है मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी, 1896 को हुआ था और वर्ष 1964 और 1968 में वित्तमंत्री मोरारजी देसाई ने आम बजट अपने जन्मदिन के अवसर पर प्रस्तुत किया। ऐसा करने वाले वे एकमात्र वित्तमंत्री हैं।

बजट की हलवा रस्म

बजट छपने के लिए भेजे जाने से पहले वित्त मंत्रालय में हलवा खाने की रस्म निभाई जाती है। इस रस्म के बाद बजट पेश होने तक वित्त मंत्रालय के संबधित अधिकारी किसी के संपर्क में नहीं रहते। इस दौरान वे परिवार से भी दूर रहते हैं और वित्त मंत्रालय में ही रुकते हैं। गोपनीयता बरतने के लिए इस दौरान नॉर्थ ब्लॉक में पॉवरफुल मोबाइल जैमर भी लगाया जाता है, ताकि जानकारियां लीक न हो सकें।

बजट के पार्ट

वित्त मंत्री के बजट भाषण में दो हिस्से होते हैं। पार्ट ए और पार्ट बी। पार्ट ए में हर सेक्टर के लिए आवंटन का मोटे तौर पर जिक्र होता है। इनके लिए सरकार की नई योजनाओं का ऐलान होता है। इस तरह से इससे सरकार की नीतिगत प्राथमिकताओं का पता चलता है। पार्ट बी में सरकार के खर्च के लिए पैसा जुटाने के लिए टैक्सेशन के प्रस्ताव होते हैं।

कौन करता है बजट को तैयार

बजट, भारत के वित्‍त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग (Department of Economic Affairs) के तहत आने वाले ‘बजट विभाग’ की देखरेख में तैयार होता है। यही विभाग हर साल भारत का बजट तैयार करता है|

हर मंत्रालय की कोशिश होती है कि बजट में अधिक से अधिक फंड पा जाये। इसके लिए अक्‍टूबर- नवंबर में वित्‍त मंत्रालय अन्‍य मंत्रालयों के साथ बैठक करके एक खाका (blue print) तैयार करता है कि किस मंत्रालय को कितनी राशि बजट में आवंटित की जाएगी। इसके लिए प्रत्येक मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी वित्त मंत्रालय के साथ मोलभाव (negotiate) करते हैं। सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों के बीच यह प्रक्रिया नवंबर तक चलती है।

दिसंबर आते ही बजट की पहली ड्राफ्ट कॉपी (first cut of budget) को वित्त मंत्री के सामने रखा जाता है। ड्राफ्ट कॉपी का पेपर नीले रंग का होता है। दरअसल ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्‍योंकि काली स्याही , लाइट नीले रंग के पेपर पर ज्यादा ठीक से दिखती है।

बजट बनाने की प्रक्रिया के तहत जनवरी माह में विभिन्न उद्योग समूह के प्रतिनिधियों, बैंक एसोसिएशन और जाने-माने अर्थशास्त्रियों से वित्तमंत्री की मीटिंग होती है। वित्तमंत्री सबकी सलाह सुनते हैं,हालांकि उनकी सलाह को मानने के लिए वित्‍तमंत्री बाध्य नही है।

 

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