ठंड में पापा की झप्पी से बच रही बच्चे की जान, मां के साथ पिता भी दे रहे कंगारू केयर

Update:2018-12-10 22:22 IST

स्वाति प्रकाश

लखनऊ: "अगर मेरी बीवी कंगारू केयर दे सकती है तो मैं क्यों नहीं दे सकता, वह बच्चे को कंगारू केयर देते देते थक जाती है" यह कहना है रोशनी के पति संजय का जो अपने बच्चे को सीने से चिपकाकर उसे कंगारू केयर देते हैं।जन्म के समय संजय के बेटे का वज़न बहुत कम था। ठंड के समय उनके बच्चे को हायपोथर्मिया का खतरा था, डॉक्टरों ने बच्चे को कंगारू केयर देने का सुझाव दिया।

उनकी पत्नी का सीज़ेरियन हुआ है जिससे वह ज़्यादा देर तक बैठ नहीं पाती। ऐसे में संजय ने खुद बच्चे को बच्चे को सीने से लगाकर उसे कंगारू केयर देने का फैसला किया। डफरिन और झलकारीबाई अस्पताल में ऐसे कई पिता हैं जिन्हें इस काम से कोई परहेज नहीं है। अभी तक जिस कंगारू केयर को मदर कंगारू केयर के नाम से जाना जाता था, अब पिता भी उस तकनीक का हिस्सा बन रहे हैं।

ये भी पढ़ें— राहुल ने अमेठी में ऐसे खेला हिन्दुत्व कार्ड, जानें BJP ने क्या कहा…

डफरिन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सलमान खान द्वारा चलाई गई इस मुहिम में पिताओं के साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी कंगारू केयर का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे वह भी नवजात की देखभाल में बराबर के हिस्सेदार बनें। डॉ सलमान ने अपने वार्ड में आने वाली प्रसूताओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए यह अभियान चलाया। केवल डफरिन ही नहीं झलकारीबाई अस्पताल में भी कंगारू केयर यूनिट में अब पिता भी अपने नवजात को सीने से लगाकर उसे कंगारू केयर दे रहे हैं।

ठंड में बढ़ जाता है हाइपोथर्मिया का खतरा

ठंड के मौसम में अधिकतर बच्चों को हाइपोथर्मिया होने का डर होता है. ऐसी स्थिति में उन्हें कंगारू केयर दी जाती है। ऑपरेशन के बाद अक्सर कुछ महिलाओं को बैठने या लेटने में दिक्कतें होती है जिससे वह बच्चों को ज़्यादा समय तक कंगारू केयर नहीं दे पातीं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए डॉ सलमान ने परिवार के अन्य सदस्यों को कंगारु केयर के लिए प्रोत्साहित किया जिससे वह भी बच्चे के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझें। उन्होंने नवजात बच्चों के पिताओं की काउंसलिंग करके उन्हें इस तकनीक के फायदे बताए। थोड़े प्रयास से ही वह उन्हें समझाने में सफल हो गए।

ताकि बोरियत महसूस न हो

अब अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाने के साथ ही कंगारू केयर बेल्ट का इंतज़ाम भी किया गया है, साथ ही पिताओं को इसका इस्तेमाल करना भी सिखाया जा रहा है। पिताओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बेड पर ही लूडो, चेस और कैरम जैसे खेलों का भी इंतजाम कर दिया गया है ताकि पुरुषों को यह काम बोझिल न लगे।

ये भी पढ़ें— पूर्वांचल के विकास बिना यूपी के समग्र विकास की कल्पना बेमानीः राष्ट्रपति

परिवार के अन्य सदस्य भी बन सकते हैं हिस्सा

पिता के साथ ही दादी, नानी, मौसी बुआ व परिवार के अन्य सदस्य भी इस तकनीक का हिस्सा बन रहे हैं। कंगारू केयर का प्रशिक्षण अभी तक डफरिन में जारी है।28 दिसम्बर 2017 में शुरू हुए इस अभियान में अभी तक 1040 बच्चों को कंगारू केयर दी गयी है। इसमें 642 बच्चों का जन्म डफरिन में ही हुआ है, बाकी के 398 बच्चे दूसरे अस्पतालों से रेफेर होकर आए थे।

डॉ सलमान ने यह भी बताया कि वह गरीब तबके की माओं को निःशुल्क कंगारू बेल्ट भी उपलब्ध करवाते हैं। साथ ही उन्हें रूपट्टे या चादर से बच्चे को बांधना भी सिखाते हैं जिससे वह काम के वक्त भी बच्चे की देखभाल कर पाएं। झलकारीबाई अस्पताल में भी अब बदलाव की हवा बह रही है। यहां भी अब माँ के साथ पिता भी कंगारू केयर देकर अपने बच्चों की जान बचा रहे हैं। सीएमएस डर सुधा वर्मा ने बताया कि यहां करीब 8 साल से कंगारू केयर यूनिट है। पहले सिर्फ मां ही नवजात को कंगारू केयर देती थीं, लेकिन अब उनके पति भी इस मुहिम का हिस्सा बन रहे हैं।

ये भी पढ़ें— विपक्ष की बैठक में बोले राहुल बोले- हमारा लक्ष्य बीजेपी को हराना

इन अस्पतालों में है कंगारू केयर यूनिट

सीएमएस डॉ लिली बताती है कि कंगारू केयर तकनीक के फायदे देखते हुए अब कई अस्पतालों में कंगारू केयर यूनिट शुरू किए जा चुके हैं। इनमें क्वीन मैरी, पीजीआई , लोहिया , झलकारीबाई, डफरिन अस्पताल शामिल हैं।

इस तकनीक से बढ़ता है बच्चे के साथ भावनात्मक जुड़ाव

कंगारू केयर के फायदे बताते हुए झलकारीबाई की सीएमएस डॉ सुधा वर्मा ने कहा कि इस तकनीक से नवजात को बहुत फायदा मिलता है। इससे बच्चे का तापमान सामान्य रहने के साथ उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। माता या पिता की ह्रदय गति से बच्चे के शरीर को गर्मी मिलने के साथ ही उसका सम्पूर्ण विकास होता है। इस तकनीक से इनक्यूबेटर का खर्च भी घटता है।

इन्क्यूबेटर में एक समान तापमान होने के कारण बच्चे के दिमाग में पाए जाने वाले न्यूरॉन पर गलत असर पड़ता है, जिससे आगे चलकर उसका दिमाग कमज़ोर हो सकता है। लेकिन मां या पिता के शरीर से मिलने वाली गर्माहट बच्चे के शारीरिक तापमान के मुताबिक घटती बढ़ती रहती है ताकि बच्चे के शारीरिक तापमान में संतुलन बना रहे।स्वास्थ्य के लिहाज़ से फायदेमंद होने के साथ यह तकनीक बच्चे व माता पिता के बीच भावनात्मक जुड़ाव भी मज़बूत करती है। देश में नवजात मृत्यु दर कम करने का यह एक सराहनीय प्रयास है।

ये भी पढ़ें— 68500 शिक्षक भर्ती: कोर्ट ने CBI को छह हफ्ते में जांच रिपोर्ट पेश करने का दिया आदेश

क्या है कंगारू केयर

कंगारू केयर एक ऐसी तकनीक है जिसमें समय से पूर्व या कम वजन के नवजात को मां अपने सीने से चिपकाकर उसे अपने शरीर की गर्माहट देती है। इससे बच्चे की ठंड से मौत होने का खतरा काफी हद तक खत्म हो जाता है। 1970 के दशक में अमेरिका के कुछ अस्पतालों में इसकी शुरुआत हुई। 1979 में पहली बार कोलंबिया के डॉ एडगर रे सनाब्रिया ने इस तकनीक को विकसित किया। कंगारू से सीख लेते हुए उन्होंने यह समझाया कि किस तरह कंगारू अपनी पेट की थैली में नवजात को चिपकाए रखता है। उसके शरीर की गर्माहट से कंगारू का बच्चा सुरक्षित रहता है। आमतौर पर इनक्यूबेटर में रखकर इलाज करने के बजाय मां या पिता के सीने से लगाने से बच्चे को प्राकृतिक गर्माहट मिलती है। इससे बच्चे का शारीरिक तापमान सामान्य रहने के साथ ही उसका मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है।

Tags:    

Similar News