RK Srivastava: 1 रूपये में इंजिनियर बनाने वाले बिहार के फेमस शिक्षक, कभी घरों में पर्दों की जगह लगे थे बोरे, आज संवार रहे सैंकड़ों छात्रों का भविष्य
Bihar RK Srivastava: लाखों की फीस वसूल करने वाले शिक्षण संस्थानों के बीच कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं, जो धन पर विद्या को सबसे अधिक प्राथमिकता देते हैं।
Bihar RK Srivastava: विद्या और धन के बीच एक बड़ा अंतर ये है कि धन कोई भी आपसे छीन या लूट सकता है लेकिन विद्या सदैव आपके साथ बनी रहती है। उसे आपसे कोई अलग नहीं कर सकता। विद्या इसी महत्व को देखते हुए समाज में कुछ लोग निम्न और पिछड़े तबके के बीच शिक्षा की लौ जलाने में लगे हुए हैं। हमारे देश में गरीबी बहुत है। एक बड़ी आबादी के पास दो वक्त की रोटी पाने के लिए हम सबकुछ दांव पर लगाना पड़ता है। ऐसे में उनके जीवन में शिक्षा कभी भी प्राथमिकताओं में नहीं आ पाती। पिछले कुछ सालों में जिसतरह शिक्षा का बाजारीकरण हुआ है, उसने निम्न आय वर्ग को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा हासिल करने से काफी पीछे धकेल दिया है।
लाखों की फीस वसूल करने वाले शिक्षण संस्थानों के बीच कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं, जो धन पर विद्या को सबसे अधिक प्राथमिकता देते हैं। ऐसे ही लोगों में गिने जाते हैं, मैथ्स गुरू के नाम से विख्यात रजनीकांत श्रीवास्तव उर्फ आरके श्रीवास्तव।
बिहार के रहने वाले हैं आरके श्रीवास्तव
बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज के रहने वाले आरके श्रीवास्तव मात्र 1 रूपये की फीस लेकर सैंकड़ों छात्रों का भविष्य संवार चुके हैं। गरीबी में अपना बचपन खपाने वाले श्रीवास्तव ने अब 540 निर्धन परिवार के छात्रों को इंजीनियर समेत अन्य सरकारी पदों पर बैठा चुके हैं।
बताया जाता है कि आरके श्रीवास्तव कोर्स खत्म होने से पहले कोई फीस वसूल नहीं करते हैं। लेकिन पढ़ाई पूरी होने के बाद बिना गुरूदक्षिणा लिए किसी को छोड़ते भी नहीं। गुरूदक्षिणा के रूप में केवल एक रूपया वसूलते हैं।
छात्रों के बीच क्यों लोकप्रिय हैं आरके श्रीवास्तव
आरके श्रीवास्तव छात्रों के बीच गजब लोकप्रिय हैं। गणित जैसे मुश्किल विषय को आसान भाषा में समझाने के उनके तरीके के बच्चे कायल हैं। खेल-खेल में जादुई तरीके से गणित पढ़ाने का तरीका ही उन्हें अलग पहचान देता है। कबाड़ की जुगाड़ से प्रैक्टिकल कर गणित सीखाते हैं। इनका द्वारा चलाया जा रहा नाइट क्लासेज छात्र खूब पसंद करते हैं।
कमजोर छात्रों पर देते हैं फोकस
अमूमन शिक्षक या कोई शिक्षण संस्थान मेधावी छात्रों पर विशेष ध्यान देता है। ऐसे छात्रों का सक्सेस रेट अधिक होने के कारण बाजार में उनका काफी नाम होता है। लेकिन मैथ्स गुरू रजनीकांत श्रीवास्तव की सोच इसके विपरीत है।
उनका कहना है कि मेधावी छात्रों को परीक्षा की तैयारी कराकर कोई भी इंजीनियर या डॉक्टर बना सकता है। लेकिन किसी शिक्षक की अग्निपरीक्षा तब होती है जब अति साधारण या कमजोर छात्रों में शिक्षा की भूख जगा, उसे कामयाबियों की बुलंदी तक पहुंचाया जाए। आज उनके मार्गदर्शन के बदौलत बड़ी संख्या में छात्र आईआईटी और एनआईटी में शिक्षा हासिल कर रहे हैं।
क्यों लेते हैं 1 रूपये की गुरू दक्षिणा
आज के दौर में जब महंगाई चरम पर है तब कोई शिक्षक मात्र 1 रूपये की फीस कैसे ले सकता है। वो भी तब जब उसे अपने परिवार को भी इसे पेशे से हुई कमाई के जरिए चलाना होता है। इसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है।
रजनीकांत श्रीवास्तव ऐसे लोगों में शुमार हैं, जो आज आसमान इतनी ऊंचाईयों को छून के बावजूद अपने पैर जमीन पर टिका रखे हैं। उन्होंने अपने उस कष्टदायक अतीत को कभी नहीं भूला, जिसमें उनका बचपन और युवा अवस्था का शुरूआती दौर बीता। गरीबी का आलम ये था कि घर में पर्दे की जगह बोरे टंगे होते थे।
उन्होंने उस पीड़ा और कष्ट को आज भी सहेज कर रखा है, जिसके कारण सैंकड़ों निर्धनों की दुनिया बदल चुकी है और आने वाले दिनों में बदलने वाली है। आरके श्रीवास्तव छात्रों को मुफ्त शिक्षा की बजाय बेहद मामूली फीस पर वह ज्ञान उपलब्ध करवाते हैं, जो बड़े - बड़े कोचिंग संस्थानों के एयर कंडीशन युक्त कमरे में लाखों की फीस भरने वाले छात्र हासिल करते हैं।
अब सवाल उठता है कि वह अपने अन्य खर्चों को कैसे मैनेज करते हैं। आरके श्रीवास्तव देश के चुनिंदा महंगे शिक्षण संस्थानों में अतिथि शिक्षक के रूप में अपना योगदान देकर धन हासिल करते हैं।
बीमारी ने सपने को कर दिया था चकनाचूर
रजनीकांत श्रीवास्तव ने जब ठीक से होश संभाला भी नहीं था कि उनके पिता पारसनाथ लाल इस दुनिया से विदा हो गए। बड़े भाई ने एक पिता की भूमिका निभाते हुए पूरा परिवार का भार अपने ऊपर ले लिया और उनसे मन लगाकर पढ़ाई करने को कहा।
बड़े भाई शिवकुमार श्रीवास्तव की इच्छा थी कि वे आईआईटी इंजीनियर बनें लेकिन टीबी नामक बीमारी से ग्रस्ति हो जाने के कारण वह आईआईटी का एंट्रेस एग्जाम नहीं दे सके और सपना चकनाचूर हो गया। बाद में बड़े भाई भी अचानक दुनिया से चल बसे। परिवार पर अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
आरके श्रीवास्तव को इंजीनियर न बन पाने का मलाल अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। घरवालों का संबल मिलने के बाद उन्होंने अपने जिंदगी का लक्ष्य बदलते हुए गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराने का बीड़ा उठाया।
परिवार में आर्थिक तंगी के कारण किस तरह सपने बिखर जाते हैं, वो शायद उनसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता। रजनीकांत कहते हैं कि पिछड़े और कमजोर पृष्ठभूमि के बच्चों को पढ़ाकर उन्हें काफी संतुष्टि मिलती है। वह खुद को गुरू नहीं बल्कि रास्ता बताने वाला कहते हैं। उनका कहना है कि मैथमेटिक्स गुरू की उपमा विद्यार्थियों का उनके प्रति प्रेम है।
कई अवार्ड से हो चुके हैं सम्मानित
कभी इंजीनियर न बन पाने का मलाल रखने वाले रजनीकांत श्रीवास्तव आज की तारीख में कई छात्रों को इसे पेशे में भेज चुके हैं। उनकी ख्याति देश – विदेश में पहुंच चुकी है। गुगल ब्याए कौटिल्य के भी वह गुरू रह चुके हैं।
आरके श्रीवास्तव ने 52 तरीके से गणित में पाइथागोरस थियोरम सिद्ध कर अपना नाम वर्ल़्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लंदन में दर्ज कराया है। लगभग 12 घंटे 450 से अधिक बार नाइट क्लास पढ़ाने के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी आ चुका है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, योग गुरू बाबा रामदेव, उत्तराखंड सरकार, पूर्व सांसद आरके श्रीवास्तव समेत कई दिग्गज हस्तियों के हाथों सम्मानित होने का सौभाग्य हासिल कर चुके हैं।