भगवान दादा ने ललिता पवार को मारा था ज़ोरदार थप्पड़, शूट के दौरान हुआ ऐसा
हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता भगवान दादा जिन्होंने इस बात को गलत साबित किया कि फिल्मों में काम करने के लिए किसी भी कलाकार को खूबसूरत और आकर्षक दिखना होता है। भले भगवान दादा ना ही हैंडसम और ना ही जवान थे लेकिन वह कॉमेडी के बेताज बादशाह थे।
मुंबई: हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता भगवान दादा जिन्होंने इस बात को गलत साबित किया कि फिल्मों में काम करने के लिए किसी भी कलाकार को खूबसूरत और आकर्षक दिखना होता है। भले भगवान दादा ना ही हैंडसम और ना ही जवान लेकिन वह कॉमेडी के बेताज बादशाह थे। वह आलास ज़िन्दगी में भी मस्त मौला इंसान थे। पर्दे पर लोगों को हंसाने वाले भगवान दादा ने आज ही के दिन यानी 4 फ़रवरी 2002 में सभी को रुला कर दुनिया को अलविदा कहा था।
एक श्रमिक के रूप में किया काम
भगवान दादा का जन्म 1 अगस्त 1913 अमरावती, महाराष्ट्र में हुआ था। उन्हें अपनी सामाजिक फिल्म अलबेला (1951) और गीत "शोला जो भड़के" के लिए जाना जाता है। अपने शुरूआती दौर में भगवान दादा ने एक श्रमिक रूप में काम किया लेकिन फिल्मों का सपना देखा करते थे। उन्हें मूक फिल्मों में अपनी भूमिकाओं के साथ ब्रेक मिला जिसके बाद वह स्टूडियो से पूरी तरह जुड़ गए। भगवान दादा ने अपनी फिल्मों करियर की शुरुआत ‘क्रिमिनल’ की थी। जो की एक मूक फिल्म थी। उन्होंने 1938 में ललिता पवार के साथ अपनी पहली फिल्म ‘बहादुर किसान’ का सह-निर्देशन किया। 1938 से 1949 तक उन्होंने कम बजट की स्टंट और एक्शन फिल्मों का निर्देशन किया जो श्रमिक वर्गों में लोकप्रिय थीं।
जब एक्ट्रेस को मारा था थप्पड़
इस शूट के दौरान उन्हें अपनी को-एक्ट्रेस ललिता पवार को थप्पड़ मारना पड़ा। उन्होंने गलती से अभिनेत्री को बहुत तेज़ थप्पड़ मार दिया, जिससे ललिता की एक बायीं आंख की नस फट गई। जिसके बाद उनका तीन साल तक उपचार चलता रहा लेकिन उनकी आंख ठीक ना हो सकी।
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ये फिल्म रही सुपरहिट
एक्टिंग के साथ ही भगवान दादा ने फिल्में प्रोड्यूस करना भी शुरू कर दिया। भगवान दादा ने थोड़े पैसे जोड़कर और थोड़े दोस्तों से लेकर साल 1951 में फिल्म 'अलबेला' का निर्माण किया। ये फिल्म सुपरहिट हुई और इसके बाद उनके ऊपर मानो पैसे की बारिश होने लगी। जिसके बाद भगवान दादा ने जुहू पर कई बंगले लिए। बड़ी बड़ी गाडियां ले ली।
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बुरी लत ने चीन लिया सब कुछ
ज्यादा पैसा आने के बाद उन्हें बुरी लत भी लग गई। और यही से उनका बुरा दौर शुरू हो गया। दारू और जुए की बुरी आदत की वजह से उन्होंने सारा पैसा गवां दिया। इसी दौर में उन्होंने एक फिल्म और बना दी 'झमेला'। लेकिन अफसोस कि ये फिल्म फ्लॉप हो गई। इसके बाद उनकी गाड़ियां बंगले सब बिक गए। अंत में उनकी मौत उसी चॉल में हुई जहां से उन्होंने शुरुआत की थी।
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