जन्मदिन विशेष: अभिनय का गोलमाल यानी अमोल पालेकर, जानें इनकी दिलचस्प बातें

राम प्रसाद व लक्ष्‍मण प्रसाद कहने के लिए तो दो नाम हैं लेकिन फिल्म देख चुके दर्शकों को बखूबी याद है कि दोनों ही पात्रों के लिए असल अभिनय बॉलीवुड एवं मराठी के दिग्‍गज अभिनेता अमोल पालेकर ने किया और पीढियों के अंतर को इस कदर बखूबी से निभाया है।

Update:2020-11-24 09:53 IST
अभिनय का गोलमाल यानी अमोल पालेकर, कम उम्र में ही जुड़ा इनका फिल्मों से रिश्ता

अखिलेश तिवारी

लखनऊ: दो पीढियों की सोच, अभिरुचियों का अंतर और बदलते भारतीय समाज का प्रतिबिंबन करने वाले गोलमाल फिल्म के हीरो राम प्रसाद व लक्ष्‍मण प्रसाद को शायद ही बॉलीवुड फिल्मों का कोई दर्शक भुला पाया हो। राम प्रसाद व लक्ष्‍मण प्रसाद कहने के लिए तो दो नाम हैं लेकिन फिल्म देख चुके दर्शकों को बखूबी याद है कि दोनों ही पात्रों के लिए असल अभिनय बॉलीवुड एवं मराठी के दिग्‍गज अभिनेता अमोल पालेकर ने किया और पीढियों के अंतर को इस कदर बखूबी से निभाया है।

दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ने में सफल हुए अमोल पालेकर

फिल्म देखते वक्‍त अगर दर्शक अपने दिमाग पर जोर न डाले तो उसे यह याद भी नहीं रहता है कि वह राम प्रसाद शर्मा को देख रहा है या लक्ष्‍मण प्रसाद शर्मा को। मेरा अपना अनुभव भी ऐसा ही है बल्कि मुझे तो फिल्म देखने के दौरान कभी यह महसूस तक नहीं हुआ कि अगर परदे पर राम प्रसाद दिख रहा है तो लक्ष्‍मण प्रसाद क्‍यों नहीं है।

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इसी तरह लक्ष्‍मण प्रसाद को देखते हुए राम प्रसाद की याद भी नहीं आती है। दिल यही चाहता है कि अमोल पालेकर का जो सीन चल रहा है वह और लंबा चलता रहे। गोलमाल फिल्म में अमोल पालेकर ने अभिनय के जो रंग दिखाए उनका विस्‍तार आगे चलकर कमल हासन की चाची चार सौ बीस, गोविंदा की आंटी नंबर वन और कई अन्‍य अभिनेताओं की डबल रोल वाली फिल्मों में देखने को मिला लेकिन दर्शकों के मन पर जो गहरी छाप अमोल पालेकर की पडी वह आज तक नहीं मिट सकी है।

कम उम्र में ही जुड़ा फिल्मों से रिश्ता

अमोल पालेकर आज अपना जन्‍म दिन मना रहे हैं। 24 नवंबर 1944 में जन्‍म लेने वाले अमोल का अभिनय जगत से रिश्‍ता बेहद कम उम्र में जुड गया। कहा जाता है कि उनकी छोटी बहन की सहपाठी चित्रा को मराठी थियेटर का शौक था। चित्रा के साथ दोस्‍ती के बाद अमोल भी थियेटर करने लगे और कुछ ही समय में मराठी थियेटर का जाना –पहचाना नाम बन गए। 27 साल की उम्र में पहली ि‍फल्‍म करने से पहले वह थिएटर जगत में निर्देशक के रूप में स्थाई पहचान बना चुके थे।

मराठी थियेटर में उन्‍हें अपने अभिनव प्रयोगों के लिए जाना गया। नामचीन निर्देशक सत्यदेव दुबे के साथ उन्होंने मराठी थिएटर में कई नए प्रयोग किए। बताया जाता है कि मराठी के सफल निर्देश के तौर पर उनकी ऐसी ख्‍याति हो चली थी कि बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी और बासु भट्टाचार्य जैसे बॉलीवुड के दिग्‍गज निर्देशक उनके नाटक देखने आया करते थे। 1971 में सत्यदेव दुबे की मराठी फ़िल्म शांतता कोर्ट चालू आहे से अमोल ने रुपहले परदे पर अभिनय की शुरुआत की। यह मराठी सिनेमा की उल्लेखनीय फ़िल्म कही जाती है। हिंदी फ़िल्मों में उन्होंने सन 1974 में बासु चटर्जी की फ़िल्म रजनीगंधा से कदम रखा।

एक से बढकर एक हिट फ़िल्में दीं

फ़िल्म ऐसी कामयाब हुई कि अमोल पालेकर ने फिर पीछे मुडकर नहीं देखा। इसके बाद उन्‍होंने एक से बढकर एक हिट फ़िल्में दीं जिसमें चितचोर, घरौंदा, मेरी बीवी की शादी, बातों-बातों में, गोलमाल, नरम-गरम, श्रीमान-श्रीमती जैसी कई यादगार फ़िल्में शामिल हैं। इन फिल्‍मों से उन्‍हें एक और अलग पहचान मिली उन्‍हें भारत के मध्यवर्गीय समाज का प्रतिनिधित्व करने वाला नायक मान लिया गया। 1981 में मराठी फ़िल्म आक्रित से अमोल ने फ़िल्म निर्देशन में कदम रखा। अब तक वे कुल दस हिंदी-मराठी फ़िल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। उनकी पिछली हिंदी फ़िल्म पहेली को ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था जिस पर खुशी व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि निर्देशक के रूप में मनमाफिक फ़िल्में बनाकर वह खुश हैं।

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अभिनय की विविधता के बावजूद अमोल पालेकर की सबसे बडी विशेषता सहज अभिनय है। उनकी ि‍फ‍ल्‍मों को देखने के बाद दर्शक को यह याद रखना मुश्किल हो जाता है कि उसने पिछली बार अमोल को किस रूप में देखा था। झूठी ि‍फल्‍म में रेखा के साथ उन्‍होंने इंस्‍पेकटर कमलनाथ की भूमिका में भी ऐसी ही छाप छोडी है। इसमें उन्‍हें देखते हुए प्रतीत ही नही होता कि अमोल को इससे पहले किसी अन्‍य रूप में देखा है। बॉलीवुड का बडा से बडा अभिनेता भी अपनी टाइप्‍ड इमेज से बाहर निकलने का जोखिम लेने को तैयार नहीं होता है। अमिताभ बच्‍चन भी अपनी एंग्री यंग मैन की इमेज को ही दशकों तक भुनाते रहे हैं लेकिन अमोल इससे हटकर रहे हैं। यह उनकी ऐसी खूबी है जो बॉलीवुड के अन्‍य अभिनेताओं पर भारी पडती है।

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