हापुड़ की लड़कियों ने पर्दे पर दिखाया कमाल, फिल्म को मिला ऑस्कर

यह फिल्म पीरियड पर आधारित सैनिटरी पैड को लेकर बनाई गयी है।  ताकि इस वजह से लोगों की सोच बदले और उनके  अंदर इस बात को लेके जागरूकता आए, ऐसी मिसाल  हापुड़ की इन लड़कियों ने दिया है।  जिसकी वजह से इस फिल्म को ऑस्कर से सम्मानित किया गया।

Update: 2019-03-02 08:18 GMT
हापुड़ की लड़कियों ने पर्दे पर दिखाया कमाल, फिल्म को मिला ऑस्कर

गाजियाबाद: फिल्म "पीरियड : द एंड ऑफ सेंटेंस" ने 91वें एकेडमी अवार्ड “डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट” की श्रेणी में ऑस्कर जीत कर भारत का नाम रोशन किया है। यह फिल्म हापुड़ की स्नेहा-सुमन के जीवन पर बनी हैं। दोनों लड़कियों ने ही इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है।

यह फिल्म पीरियड पर आधारित सैनिटरी पैड को लेकर बनाई गयी है। ताकि इस वजह से लोगों की सोच बदले और उनके अंदर इस बात को लेके जागरूकता आए, ऐसी मिसाल हापुड़ की इन लड़कियों ने दिया है। जिसकी वजह से इस फिल्म को ऑस्कर से सम्मानित किया गया।

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सुमन ने बताया कि उनके लिए यह बहुत मुश्किल सफर रहा। वो बताती हैं कि लोग उनको अजीब-सी निगाहों से देखते थे। पहले उन्होंने गाँव की महिलाओं को प्रेरित किया कि वो इस संस्था से जुड़े और फिर उन्होंने महिलाओं के घरवालों को समझाया। पहले यह बताया कि बच्चों के डायपर बनाए जाते हैं। इसके बाद गाँव के एक छोटे से कमरे में पैड के निर्माण की बात बताई।इसके बाद उनकी टीम ने गाँव में सैनिटरी पैड निर्माण करने की यूनिट को शुरू किया। संस्था में प्रतिदिन 600 पैड बनाए जाने लगे। जिसमे काम करने वाली महिलाओं को लगभग 2500 रुपए दिये जाते थे।

सुमन के लिए यह एक जंग जीतने जैसा था और ऑस्कर की जीत उसी का परिणाम है। उन्हें यह विश्वास ही नहीं हो रहा था की उनकी फिल्म को ऑस्कर मिला हैं। ऑस्कर की खुशी में उनकी आंखों से आसूं छलकने लगे।

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उनके इस काम में उनके परिवार वालों ने उन्हें पूरी तरह सपोर्ट किया। ऑस्कर जीतने की खबर मिलते ही उन्होंने अपने पति को कॉल किया और यह खुशखबरी सबसे पहले उन्हें दी।

स्नेहा ने भी अपने बारे में कुछ बातें बताई। उनके पिता किसान हैं और उनका एक भाई गुडगाँव में प्राइवेट जॉब करता हैं तो दूसरा भाई अभी पढ़ाई कर रहा है। उन्होंने बताया उन्हें पढ़ने का शौक बहुत है। पहले पढ़ने में और फिर सैनिटरी पैड से जुड़ा काम करने में उनके परिवार ने उनका पूरा सहयोग किया।

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