गायिका राजकुमारी दुबे, बनारस से खास रिश्ता, पहली Background Singer हैं ये

हिंदी सिनेमा में बोलती फिल्मों की शुरुआत होते ही गायक सितारों का चलन भी बढ़ने लगा। लेकिन जल्द पार्श्व गायक का जन्म हुआ। इन कलाकारों में राजकुमारी दुबे का नाम सबसे ऊपर लिखा गया।

Update: 2021-03-18 07:14 GMT
फेमस पार्श्व गायिका राजकुमारी दुबे, जिनका बनारस से खास रिश्ता

लखनऊ: हिंदी सिनेमा में बोलती फिल्मों की शुरुआत होते ही गायक सितारों का चलन भी बढ़ने लगा। लेकिन जल्द पार्श्व गायक का जन्म हुआ। इन कलाकारों में राजकुमारी दुबे का नाम सबसे ऊपर लिखा गया। उनके सर्वश्रेष्ठ गीतों के लिस्ट में फिल्म बावरे नैन (1950)से सुन बैरी बलम सच बोल रे ,फिल्म महल (1949) से घबरा के जो हम सर को टकराए और पाकीज़ा (1972) में नज़रिया की मारी ।

बनारस में हुआ जन्म

आपको बता दें, कि राजकुमारी दुबे का जन्म 1924, बनारस में हुआ था। महज 11 साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने हिंदी सिनेमा में कदम रखा। राधे श्याम और ज़ुल्मी हंस (1932) में एक बाल कलाकार के रूप में काम किया। जिसके बाद राजकुमारी ने कुछ वर्षों तक थिएटर में काम किया।

10 साल की उम्र में रिकॉर्ड किया गाना

एक्टिंग के साथ ही उनका रुझान गायन में भी रहा। वह 10 साल की थी जब उसने 1934 में एचएमवी के लिए अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया और उसने एक स्टेज कलाकार के रूप में अपना करियर शुरू किया। प्रकाश पिक्चर्स के विजय भट्ट और शंकर भट्ट ने अपने एक शो के दौरान उन्हें देखा। उन्होंने उसकी आवाज़ को पसंद किया। उन्होंने राजकुमारी को मंच पर अभिनय करने के लिए मना लिया क्योंकि इससे उसकी आवाज़ खराब हो जाती।

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पहली महिला पार्श्व गायिका

राजकुमारी ने कई फिल्मों में अपनी मधुर आवाज़ दी जिनमे नई दूनिया, लाल चिट्टी (1935), बॉम्बे मेल (1935), बंबई की सेठानी (1935) और शमशीर-ए-अरब (1935) । जिसके साथ ही वो हिंदी सिनेमा की पहली महिला पार्श्व गायिका बन गईं ।

कोरस में गाना पड़ा

राजकुमारी ने कई गुजराती और पंजाबी गाने गाए। भले ही वह उन भाषणों से वंचित थी। औपचारिक रूप से गाने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया था। आज भी पुराने संगीत सुनने वाले राजकुमारी दुबे का नाम बड़े सम्मान के साथ लेते हैं। ये बात तो सच है हर दिन एक सा नहीं होता ऐसा ही कुछ राजकुमारी के साथ भी हुआ। संगीत की दुनिया में राज कर रही गायिका के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक बार उनके साथ यह नौबत आई की पाकीज़ा फिल्म के एक गाने में उन्हें कोरस में गाना पड़ा। जिसे देखकर नौशाद साहब का दिल भर आया और उन्होंने उन्हें एक ठुमरी फिल्म में गाने का मौका दिया।

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