नए साल में होगी मोबाइल वॉर
भारत की दो बड़ी मोबाइल कंपनियां भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया अगले महीने अपनी मोबाइल कॉल दरें बढ़ाने जा रही हैं। पिछले एक दशक से अधिक समय में पहली बार मोबाइल कॉल महंगी होने जा रही है।
नई दिल्ली: भारत की दो बड़ी मोबाइल कंपनियां भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया अगले महीने अपनी मोबाइल कॉल दरें बढ़ाने जा रही हैं। पिछले एक दशक से अधिक समय में पहली बार मोबाइल कॉल महंगी होने जा रही है। यह बढ़ोतरी भारत में एक लंबे समय तक चलने वाले हाइपरकंपटीशन के बाद आ रही है। भारत में टेलीकॉम दरें दुनिया में सबसे कम बताई जाती हैं। एयरटेल और वोडाफोन ने अभी यह नहीं बताया है कि दाम कितना बढ़ाए जाने वाले हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि एयरटेल और वोडाफोन चाहे जो कहें लेकिन दामों में वृद्धि जियो टेलीकॉम के अगले फैसलों पर निर्भर करेगी। अभी तो इंटरकनेक्ट यूजर चार्ज (आईयूसी) के कारण जियो ने अपनी टैरिफ बढ़ा रखी है और अगर नए साल में जियो ने कोई ‘हैप्पी न्यू ईयर’ ऑलर लांच कर दिया तो अन्य कंपनियों को टैरिफ बढ़ाने की बजाए घटाने के बारे में ही सोचना पड़ेगा। इस तरह 2020 में मोबाइल कंपनियों के बीच नई लड़ाई छिड़ सकती है।
SC के फैसले का असर
दरअसल, दाम बढ़ाने का यह कदम सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का असर है। इस फैसले में भारतीय एयरटेल और वोडाफोन आइडिया सहित अन्य दूरसंचार ऑपरेटरों को 92,000 करोड़ रुपए का झटका दिया गया है। टेलीकॉम कंपनियों का दावा है कि वे बढ़ते कर्ज, राजस्व में गिरावट और भारी घाटे से जूझ रहे हैं।
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एयरटेल और वोडाफोन का ये कदम ऐसी खबरों के बीच आया है कि सरकार दूरसंचार क्षेत्र में टैरिफ के लिए एक फ्लोर प्राइस लागू करने जा रही है। यानी एक न्यूनतम दर तय की जायेगी। टेलीकॉम दरें भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अधिकार क्षेत्र में आती हैं। फिलहाल ट्राई को न्यूनतम दरों के बारे में दूरसंचार विभाग से कोई सुझाव नहीं मिला है। ट्राई ने अब तक दूरसंचार टैरिफ को मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होने दिया है।
व्यवहार्यता के संतुलन के लिए जरुरी है मूल्य वृद्धि
एयरटेल ने कहा है कि ‘ग्राहकों को सस्ता टैरिफ प्रदान करते हुए, यह मूल्य वृद्धि कंपनी की व्यवहार्यता के संतुलन को बनाए रखने के लिए जरूरी है। इससे डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना जारी रहेगा और गुणवत्ता मानकों को बनाए रखना होगा।
14 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर के अपने फैसले में दूरसंचार ऑपरेटरों को तीन महीने के भीतर सरकार को पिछले बकाया में कम से कम 92,000 करोड़ रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
वोडाफोन आइडिया ने कहा है कि ‘ वोडाफोन आइडिया नई टेक्रालजी अपनाने और अपने 300 मिलियन से अधिक ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने, नए उत्पादों व सेवाओं को लॉन्च करने तथा अपने नेटवर्क को भविष्य में फिट बनाने के लिए सक्रिय रूप से निवेश करना जारी रखेगा।
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दरअसल टेलीकॉम ऑपरेटरों को २०१६ में रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड की एंट्री से जबर्दस्त झटका लगा है। जियो ने अपने डेटा व कॉल की मुफ्त व सस्ती दरों से तहलका मचा दिया। इससे पुरानी कंपनियों को बाजार में बने रहने के लिए जियो जैसी टैरिफ देनी पड़ी थी। फिर जो प्राइस वॉर छिड़ी थी, उसमें रिलायंस कम्युनिकेशंस और टाटा टेलीसर्विसेज जैसे कई ऑपरेटरों की कमर टूट गई।
सरकार कर रही विचार
कैबिनेट सचिव के अधीन सचिवों की एक समिति राहत के लिए दूरसंचार कंपनियों की मांगों पर विचार कर रही है। ये कमेटी कंपनियों के वित्तीय तनाव को कम करने और एक अनुकूल निवेश माहौल बनाने के उपाय सुझाएगी। सरकारी पैनल ने 2011 और 2012 के लिए स्पेक्ट्रम नीलामी भुगतान बकाया को टालने की दूरसंचार कंपनियों की मांग पर भी गौर किया है। २०१९ के अगस्त के अंत तक भारत में मोबाइल फोन के 1.17 बिलियन यूजर्स थे। ग्राहकों की संख्या के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है।
किसलिए बकाया है रकम
टेलीकॉम कंपनियों पर स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल, टेलीकॉम लाइसेंस फीस, जुर्माना और ब्याज मिलाकर करीब 1.40 लाख करोड़ रुपए की देनदारी है। दरअसल कंपनियों को टेलीकॉम सेवाओं के अलावा गैर टेलीकॉम सेवा से होने वाली आय को एजीआर में जोड़े जाने को सुप्रीमकोर्ट ने सही माना है। कंपनियां चाहती हैं कि सरकार उन्हें जुर्माने और ब्याज पर राहत दे।
टेलीकॉम क्षेत्र में व्यापक बदलाव
भारत का टेलीकॉम क्षेत्र व्यापक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। कुछ ही सालों में इस क्षेत्र में सेवाएं देने वाली कंपनियों की संख्या 15 से तीन पर आ गई है। इन तीन में भी एक की आर्थिक हालत कमजोर है और बाकी दो के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही है।
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2003 से विवाद
जिस विशेष शुल्क को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है, उसका विवाद 2003 से चला आ रहा है। उस वक्त इन कंपनियों ने सरकार द्वारा प्रस्तावित एक नई प्रणाली को अपना लिया था। इसके तहत कंपनियां अपनी कुल कमाई का एक हिस्सा सरकार को देने के लिए राजी हो गई थीं। विवाद तब पैदा हुआ, जब भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने कंपनियों की कमाई की परिभाषा बदल दी।
सरकार ने कहा कि इस कमाई का मतलब होगा कंपनियों की कमाई गई हर तरह की धनराशि, जिसमें दूरसंचार से अलावा उनके दूसरे भी कमाई के साधन शामिल होंगे। इसे एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) कहा गया और इसमें हैंडसेट की बिक्री, किराया, लाभांश, ब्याज से आय और रद्दी की बिक्री से हुई आय जैसे कई आय के स्रोतों को शामिल किया गया।
एजीआर के आधार पर सरकार को मिलने वाला लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम इस्तेमाल करने का शुल्क निर्धारित होना था। एजीआर कम होगी तो कंपनियों को सरकार को कम पैसे देने होंगे। इसीलिए कंपनियों ने एजीआर की इस परिभाषा के खिलाफ ट्राइब्यूनलों का दरवाजा खटखटाया। उनकी मांग थी कि उसकी परिभाषा मूलभूत दूरसंचार सेवाओं तक ही सीमित रखी जाए।
2015 में एक दूरसंचार ट्राइब्यूनल ने फैसला दिया कि एजीआर की परिभाषा में मूल दूरसंचार सेवाओं के अलावा सिर्फ कुछ और आय के साधनों को शामिल किया। कंपनियों और दूरसंचार विभाग, दोनों ने ही इस फैसले का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दूरसंचार विभाग ने एजीआर की जो परिभाषा दी थी, अब सुप्रीम कोर्ट ने उसे सही ठहराया है।
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एक हजार अरब रुपया बकाया
एजीआर की नई परिभाषा के तहत सभी दूरसंचार कंपनियों को कुल मिला कर 1,000 अरब रुपए से भी ज्यादा देने होंगे, जिनमें शामिल है 92,641 करोड़ रुपए का लाइसेंस शुल्क और 40,970 करोड़ रुपए का स्पेक्ट्रम इस्तेमाल करने का शुल्क।
जिन कंपनियों पर ये राशि बकाया है उनमे से आज सिर्फ तीन बाजार में हैं एयरटेल, आइडिया-वोडाफोन और रिलायंस जियो। बाकी या तो दूरसंचार क्षेत्र से निकल चुकी हैं या दिवालिया घोषित होने की प्रक्रिया में हैं। सबसे ज्यादा रकम आइडिया-वोडाफोन पर बकाया है जिसकी आर्थिक हालत तीनों में से सबसे खराब है और सबसे काम राशि जियो पर बकाया है जिसकी आर्थिक हालत सबसे अच्छी है।
आइडिया-वोडाफोन को अगर इतना पैसा देना पड़ा तो कंपनी दिवालिए की तरफ बढ़ जाएगी। शायद इसलिए कंपनी ने कहा है कि वो इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने के बारे में विचार कर रही है।
सरकार की दुविधा
सरकार की दुविधा ये है कि आखिर इस रकम को वसूला कैसे जाए क्योंकि 12 कंपनियां तो अब इस क्षेत्र में हैं ही नहीं और जो हैं उनमें से अधिकांश की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है। अगर इस फैसले की वजह से दूरसंचार क्षेत्र पर संकट आया तो असर बैंकों पर भी पड़ेगा। दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों पर कुल मिला कर बैंकों का 90,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का कर्ज है।
अगर इन कंपनियों को बकाया राशि का भुगतान करना पड़े तो बैंको से लिए गए ऋण को चुकाने की इनकी क्षमता पर असर पड़ेगा। अगर कंपनियों पर नई देनदारी आ जाती है तो 5जी की पूरी प्रक्रिया ही खतरे में पड़ सकती है, जिसका नुकसान सरकारी खजाने और उपभोक्ताओं को भी होगा।
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