एसी का खतरनाक खेल: जितनी ठंडी हवा उतनी बढ़ती जा रही गर्मी

जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे किसी भी व्यक्ति का सबसे आसान और पसंदीदा निजी रेस्पौंस होता है एक एयर कंडीशनर खरीद लेना।

Update: 2020-07-04 10:02 GMT

''गर्मी जितना ज्यादा बढ़ती जाती है, हम एयरकंडिशनिंग का उतना ज्यादा इस्तेमाल करने लगते हैं। और हम जितना ज्यादा एसी का इस्तेमाल करते हैं गर्मी उतनी ही बढ़ती जाती है। ये एक ऐसा कुचक्र है जिससे निकल पाना अब बहुत मुश्किल हो गया है। लेकिन उम्मीद अभी बाकी है।''

लखनऊ: जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे किसी भी व्यक्ति का सबसे आसान और पसंदीदा निजी रेस्पौंस होता है एक एयर कंडीशनर खरीद लेना। बढ़ती गर्मी से निपटने के लिए इनसान के पास इससे बढ़िया कोई औज़ार नहीं है। लेकिन ये दोधार वाला औज़ार है। एसी चला कर गर्मी से निपट तो लिया जाता है लेकिन वही एसी जलवायु में गर्मी बढ़ाता भी जाता है। ये खतरनाक कुचक्र है जिससे निकालने का कोई रास्ता किसी को नहीं सूझ रहा।

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एयर कंडीशनर सबसे ज्यादा बिजली खाने वाला इकलौता अनोखा उपकरण है। एक कमरे को ठंडा करने वाला चार-चार रेफ्रिजरेटर से ज्यादा बिजली खाता है जबकि किसी छोटे दफ्तर में लगी सेंट्रल एसी यूनिट 15 फ्रिज से ज्यादा बिजली खाती है। एसी और बिजली का संबंध इसी से समझ लीजिये कि 2018 में बीजिंग में हीटवेव यानी लू के मौसम दौरान कुल बिजली सप्लाई का 50 फीसदी हिस्सा एसी में जा रहा था।

मुंबई, दिल्ली, बंगलुरु, लखनऊ, बीजिंग, टोक्यो या न्यूयॉर्क, कोई भी शहर हो, बिजली सप्लाई कंपनियों के लोग गर्मी का मौसम आते होते ही बिजली की मांग में आने वाली जबर्दस्त तेजी से निपटने के लिए तैयारी में जुट जाते हैं। मांग में अचानक तेजी से ग्रिड बचा रहे, सबको सप्लाई मिलती रहे इसकी पल पल निगरानी की जाती है। जैसे जैसे गर्मी बढ़ती जाती है, बिजली में कटौतियाँ भी चालू हो जाती हैं। इन सबके पीछे का एक ही कारण है – एयर कंडिशनिंग। जैसे जैसे दुनिया गर्म होती जा रही है, सभी जगह बिजली सप्लाई और डिमांड का हाल एक जैसा होता जा रहा है।

एक अरब एसी, हर सात आदमी पर एक

दुनिया में फिलवक्त एक अरब से ज्यादा एयर कंडिशनिंग यूनिट्स हैं। यानी इस पृथ्वी के प्रत्येक सातवें इनसान पर एक एसी है। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि सन 2050 तक दुनिया में साढ़े चार अरब से ज्यादा एसी हो जाएँगे। आज जो मोबाइल फोन की पैठ है वही एसी की हो जाएगी। एसी पर आज अमेरिका में जितनी बिजली खर्च होती है वो यूनाइटेड किंगडम की कुल बिजली खपत के बराबर है। इंटेरनेशनल इनर्जी एजेंसी के मुताबिक आने वाले समय में एयर कंडिशनिंग पर पूरी दुनिया की कुल बिजली खपत का 13 फीसदी खर्च होगा। इसके कारण प्रतिवर्ष 2 अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होने लगेगा। ये एक भयावह स्थिति है।

गर्मी और एसी का रिश्ता

ये एक विडम्बना ही है कि बढ़ते तापमानों के कारण एयर कंडिशनिंग की जरूरत बढ़ती जाती है और जितने एसी बढ़ते हैं उतनी ही गर्मी बढ़ती जाती है। एयर कंडिशनिंग से उत्पन्न समस्या ठीक वही है जो पूरी दुनिया को जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने में पेश आ रही है। यानी जिन समाधानों को हम आसानी से अपनाते जाते हैं उससे हम मूल समस्या के उतने ही करीब पहुँचते जाते हैं।

1990 में थे सिर्फ 40 करोड़ एसी

एयर कंडीशनर की दबदबा अन्य कारणों से बढ़ा है। 1990 तक दुनिया में कोई 40 करोड़ एसी थे। और इनमें भी अधिकतर अमेरिका में ही थे जिनका अमूमन औद्योगिक इस्तेमाल ही किया जाता था। लेकिन समय के साथ साथ एसी एक आवश्यकता के अलावा आधुनिकता की निशानी और आराम की वस्तु बन गया। ऑटोमोबाइल की तरह एसी भी एक ऐसी टेक्नोलोजी है जिसने दुनिया को बदला दिया है। स्वतंत्र सिंगापुर के प्रथम प्रधानमंत्री ली कुआन यू ने एसी के बारे में कहा था कि ये इतिहास के महान आविष्कारों में से एक है जिसने सिंगापुर के तीव्र आधुनिकरण में मदद की है।

1998 में एक प्रख्यात अमेरिकी साथियकार रिचर्ड नाथन ने कहा था कि अमेरिका की जनभौगोलिक स्थिति और राजनीति में बदलाव लाने के सबसे बड़े कारक सिविल राइट्स क्रांति और एयर कंडिशनिंग हैं। जिसके चलते अमेरिका के बेहद गर्म और बेहद रूढ़िवादी दक्षिणी हिस्सों में व्यापाक रूप से रियल स्टेट डेवलपमेंट हुआ है।

सौ साल पहले किसी ने सोचा न होगा

एसी का मूल आविष्कार एक अमेरिकी इंजीनियर विलिस करियर के खाते में जाता है। करियर जिस कंपनी में काम करते थे उसको न्यूयॉर्क स्थित एक प्रिंटिंग कारखाने में हयूमीडिटी कम करने का काम दिया गया था। ये बात 1902 की है। आज भले ही हमको लगता है कि एयर कंडिशनिंग का उद्देश्य गर्मी घटाना है लेकिन उस समय इंजीनियरों को तापमान घटाने की ही चिंता नहीं थी बल्कि वे इन मशीनों से औद्योगिक प्रॉडक्शन में जितना संभव हो सके उतनी अनुकूल परिस्थितियाँ बनाना चाहते थे। इसी क्रम में एक प्रिंटिंग कारखाने में हयूमीडिटी के कारण कागजों का आकारा बिगड़ जाता था और स्याही फैल जाती थी। इस स्थिति को सही करने का काम विलिस करियर की कंपनी को करना था। करियर इस नतीजे पर पहुंचे थे कि कारखाने से गर्मी हटा देने से हयूमीडिटी घट जाएगी सो उन्होने नई नई आई रेफ्रीजेरेशन इंडस्ट्री की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने की सोची।

करियर ने ऐसा उपकरण बनाया जो मूलतः फ्रिज की तकनीक पर ही काम करता है। चाहे वो समय हो या आज का, एयर कंडिशनिंग यूनिट्स का काम करने का तरीका वही है। ये यूनिट्स गरम हवा भीतर खींचती हैं, इस हवा को एक ठंडी सतह से गुजारा जाता है और बाहर ठंडी व सूखी हवा फेंकी जाती है। करियर का आविष्कार तत्काल ही उद्योग के साथ हिट हो गया। टेक्सटाइल, फार्मा और गोला बारूद के कारखानों ने सबसे पहले करियर के आविष्कार को अपनाया। इसके बाद इसका विस्तार होता चला गया। अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में 1928 में एयर कंडिशनिंग लगाई गई, और एक साल बाद व्हाइट हाउस और सीनेट ने इसे अपना लिया। लेकिन इस काल खंड में ज़्यादातर अमेरीकियों का एसी से सामना थियेटर, डिपार्टमेंटल स्टोर जैसी जगहों पर ही होता था और लोगों के लिए एसी एक अनोखी चीज हुआ करती थी।

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घरों में एसी की घुसपैठ

1940 के दशक तक एसी इंडस्ट्री लोगों के घरों तक घुसपैठ नहीं कर सकी थी। हालांकि इंडस्ट्री ने लोगों को विश्वास दिलाने की काफी कोशिशें कीं थीं कि एसी विलासिता नहीं बल्कि जरूरत की चीज है। इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि शुरुआती दिनों में मैगजीनों में यही लिखा जाता था कि आम उपभोक्ता के मामले में एसी फ्लॉप हो गया है। फॉर्च्यून पत्रिका ने लिखा था कि 1930 के दशक में जनता के लिए एसी बहुत बड़ी निराशा है। 1938 तक 400 में से सिर्फ एक अमेरिकी घर में एसी हुआ करता था जो आज की तारीख में 10 में से 9 घरों तक पहुँच गया है।

रियल स्टेट बूम से बढ़ी मांग

एसी की मांग बढ़ने के पीछे उपभोक्ताओं की रुचि नहीं, बल्कि विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में रियल स्टेट का जबर्दस्त बूम एकमात्र कारण है। 1946 से 1965 के बीच अमेरिका में 3 करोड़ 10 लाख मकान बनाए गए और इन मकानों को बनाने वालों के लिए एयर कन्डीशनिंग भगवान द्वारा दिये गए तोहफे के समान थी। आर्किटेक्टों और कन्स्ट्रकशन को अब अलग अलग मौसमों की फिर्क करने की जरूरत नहीं थी। वे देश भर में कहीं भी एक जैसे मकान बना सकते थे। बिल्डर्स की मानसिकता ये थी कि गर्म जलवायु, सस्ते बिल्डिंग मैटेरियल, घटिया डिजाइन या शहरों की बेकार प्लानिंग – इन सबसे निपटने का एक बढ़िया उपाय हाथ लग गया था और वो था ज्यादा से ज्यादा एयर कंडिशनिंग का इस्तेमाल। ऐसे में उपभोक्ताओं के सामने कोई एसी को भाग्य की भांति स्वीकार कर लेने के अलावा कोई चारा नहीं था।

बिजली कंपनियों ने दिया बढ़ावा

एयर कंडिशनिंग के उत्थान के साथ बिजली कंपनियों का उत्थान भी जुड़ा हुआ था। बीसवीं सदी की शुरुआत में बिजली कंपनियाँ चाहती थीं कि ज्यादा से ज्यादा लोग अधिकाधिक बिजली खर्च करें। बिजली बनाने के लागत कम थी और ज्यादा डिमांड फायदे का सौदा था। ऐसे में एयर कंडिशनिंग को जम कर प्रमोट किया गया। 1950 के दशक में बिजली कंपनियाँ प्रिंट, रेडियो और सिनेमा में एयर कंडिशनिंग को प्रोमोट करने लिए खूब विज्ञापन दिये। एसी लगाने के लिए कन्स्ट्रकशन कंपनियों को फाइनेंसिंग और डिस्काउंट के ऑफर दिये गए। नतीजा ये हुआ कि 1957 में पहली बार देखा गया गया कि जाड़े के मौसम में बिजली की खपत पीक पर नहीं पहुंची। जबकि सर्द मौसम में घरों को गर्म करने के लिये बिजली का इस्तेमाल काफी बढ़ जाया करता था। इसके विपरीत बिजली की खपत गर्मी के मौसम में पीक पर पहुंची क्योंकि अब एसी का खूब इस्तेमाल हो रहा था।

1970 तक अमेरिका के 35 फीसदी घरों में एयर कंडिशनिंग थी। जबकि मात्र तीन दशक पहले ये संख्या 200 गुना कम थी।

कमर्शियल बिल्डिंगों का दौर

सत्तर के दशक में एसी की बदौलत चलने वाली कमर्शियल इमारतों का जाल बीच चुका था। शीशे वाली अट्टालिकाएँ, अमेरिका के हर शहर में खड़ी हो चुकी थी, इन बिल्डिंगों में शीशे की अधिकता के कारण तापमान बहुत ज्यादा हो जाता था और ऊपर से इनमें वेंटिलेशन तक नहीं होता था। सिर्फ बाहरी खूबसूरत डिजाइन और बाकी समस्याओं के लिए एसी पर निर्भरता। इन बिल्डिंगों में खर्च होने वाली बिजली का 50 फीसदी सिर्फ एसी पर ही जाता था। 1974 में न्यूयॉर्क में बन कर तैयार हुये वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में उस समय दुनिया की सबसे बड़ी एसी यूनिट हुआ करती थी। इस एसी यूनिट को चलाने के लिए 9 विशालकाय इंजन थे और बिल्डिंग में कूलिंग व हीटिंग के लिए 270 किमी से ज्यादा पाइपों का जाल बिछा हुआ था। उस समय कहा गया था कि पास के 80 हजार की आबादी वाली एक शहर में जितनी बिजली खर्च होती है उतने ये अकेला वर्ल्ड ट्रेड सेंटर खर्च करता था।

मुनाफे का सौदा

एयर कंडिशनिंग अमेरिका की देन थी और एयर कंडिशनिंग इंडस्ट्री, कन्स्ट्रकशन कंपनियाँ और बिजली कंपनियाँ विश्वयुद्ध के बाद के काल में पैसा बटोर रहे थे। मुनाफे की चाहत में इन सबने ये सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि एयर कन्डीशनिंग अमेरिकी जीवन का एक अपरिहार्य हिस्सा बन जाये। लोगों को भी अब लगने लगा कि एसी उनकी जीवन की जरूरी चीज है और 2009 तक एसी 87 फीसदी अमेरिकी परिवारों तक पहुँच चुका था।

हाल बाकी दुनिया का

जिस दौर में एसी अमेरिकी शहरों को बदल रहा था तब बाकी दुनिया में इसका कोई अधिक प्रभाव नहीं था। सिर्फ जापान, आस्ट्रेलिया और सिंगापुर अपवाद थे। लेकिन जब अमेरिका में एसी गहरी जड़ें जमा चुका तब अन्य देशों में इसका विस्तार शुरू हुआ। अगर अमेरिका में एसी की ग्रोथ विश्व युद्ध के बाद रियल स्टेट तथा उपभोग के बूम से जुड़ी हुई थी तो बाकी दुनिया में इसकी पहुँच वैश्वीकरण के कारण हुयी। जब बाकी दुनिया अमेरिकी निर्माण और जीवन के रंग ढंग को और आगे बढ़ कर अपनाने लगी तो उसमें एयर कन्डीशनिंग का भी शुमार था।

1990 के दशक में एशिया के कई देशों ने विदेशी निवेश के लिए बाहें फैला दीं और अभूतपूर्व शहरी निर्माण के रास्ते पर बहुत तेजी से चलने लगे। अगले तीन दशकों में भारत में 20 करोड़ लोग गाँव-कस्बों से शहरों की ओर चले गए थे। चीन में ये संख्या 50 करोड़ की थी। दिल्ली से शंघाई तक जबर्दस्त एयर कन्डीशनिंग वाले होटल, शॉपिंग मॉल और ऑफिस बिल्डिंगें खड़ी होने लगी थीं। इन बिल्डिंगों की डिजाइन न्यूयॉर्क या लंदन की इमारतों से अलग नहीं थी। बहुत से मामलों में एक ही बिल्डर, डिजाइनर या आर्किटेक्ट इन बिल्डिंगों को दुनिया के अलग अलग देशों में बना रहे थे। जब अमेरिकी या यूरोपियन डिजाइनर या कंसल्टेंसी से मामला जुड़ा हुआ होता है तो उस पैकेज में एसी का समावेश अनिवार्य होता है।

मात खा गई पारंपरिक शैली

जैसे जैसे आधुनिक इमारतों का जाल फैलता गया, पारंपरिक वास्तुकला पीछे चलती चली गई। पारंपरिक वास्तुकला में मौसम के अनुकूल इमारत बनाने के तरीकों पर जोर रहता था लेकिन अब उन तरीकों की जगह एसी ने ले ली थी। 1990 के दशक के पूर्वार्ध तक दिल्ली तक में छज्जे या धूप को रोकने के अन्य तरीकों का इस्तेमाल इमारत बनाने के दौरान किया जाता था लेकिन धीरे धीरे इनकी जगह अमेरिकी या यूरोपियन स्टाइल ने ले ली। जो बीसवीं सदी में अमेरिका में हुआ वो अब बाकी जगह हो रहा है। घर और कमर्शियल बिल्डिंग इस तरह की बन रही हैं जिनमें एसी अपरिहार्य है। अहमदाबाद के आर्किटेक्ट व सिटी प्लानिंग के प्रोफेसर राजन रावल कहते हैं कि डेवलपर्स बिना दिमाग लगाई निर्माण करते जा रहे हैं। जलवायु के अनुकूल बिल्डिंग बनाने में डेवलपर्स को रत्ती भर रुचि नहीं है।

सुधार की गुंजाइश

एयर कन्डीशनिंग से बनी समस्या के समाधान की दिशा में एक कदम ये हो सकता है कि एक बेहतर एसी का निर्माण किया जाये। एसी का जबसे आविष्कार हुआ है तबसे उनमें मामूली बदलाव ही आया है। टेक्नोलोजी वही की वही है। फ्रिज जिस सिद्धान्त पर चलता है उसी पर एसी चल रहे हैं और ये वही प्रोसेस है जो सौ साल पहले था।

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भारत की पहल

एक ज्यादा कार्यकुशल एयरकंडीशनर डेवलप करने के लिए 2018 में अमेरिका स्थित इनर्जी पॉलिसी थिंक टैंक रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट (आरएमआई) ने संयुक्त राष्ट्र संघ और भारत सरकार के सहयोग से एक स्कीम लॉंच की जिसके तहत वर्तमान एसी से पाँच गुना ज्यादा इफिशिएंट एसी डिजाइन करने वाले को 30 लाख डालर का पुरस्कार दिया जाएगा। इस प्रोजेक्ट के लिए दुनिया भर से कंपनियों, रिसर्च संस्थानों, विश्वविद्यालयों से ले कर निजी लोगों तक के आवेदन कर रखा है।

आरएमआई ने सतर्क भी किया है कि अगर वाकई में ग्लोबल कार्बन उत्सर्जन को कम करना है तो उसके लिए अत्यधिक इफिशिएंट एसी को 2022 तक लॉंच हो जाना चाहिए और 2030 तक बाजार के 80 फीसदी हिस्से को इस एसी द्वारा रिप्लेस कर किया जाना होगा। यानी जब तक पुराने एसी पूरी तरह हट नहीं जाएंगे और नए सुपर इफिशिएंट एसी उनकी जगह ले नहीं लेंगे तब तक बात नहीं बनेगी। ऐसा होना नामुमकिन तो नहीं लेकिन बहुत ही मुश्किल है।

भारत के आंकड़े

भारत में रूम एसी के बारे में 2019 के पहले का अनुमान था कि 2020 में इनकी संख्या 77 लाख से अधिक हो जाएगी। 2019 से 2025 के बीच इसके 13.7 फीसदी की रफ्तार से बढ़ने का अनुमान है।

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