एंजेल टैक्स: बाहरी कंपनियों को स्टार्टअप में निवेश से मिलती है TAX की छूट! आइये जानें इसके बारे में

एंजल टैक्स की शुरुआत 2012 में हुई थी। उस समय तत्कालीन यूपीए सरकार के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने आयकर कानून की धारा 56 (2) (7) के तहत बजट में इसका एलान किया था। इसका मकसद मनी लाउड्रिंग पर रोक लगाना था। लेकिन अब पूरे स्टार्टअप्स सेक्टर पर इसकी मार पड़ रही है।

Update: 2019-03-01 10:31 GMT

नई दिल्ली: वैसे तो आयकर कानून 1961 में कहीं भी एंजेल टैक्स शब्दावली का उल्लेख नहीं हैं। लेकिन जब कोई गैरसूचीबद्ध कंपनी अपने शेयर को फेयर मार्केट मूल्य से अधिक कीमत पर बेंचकर पूंजी जुटाती है तो आयकर विभाग उस राशि को उसकी आय मानकर टैक्स जमा करने की नोटिस भेजता है। आयकर विभाग के सामान्य बोलचाल में इसे एंजेल टैकस कहा जाता है।

क्यों लगाया गया यह टैक्स

इस टैक्स का प्रावधान पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 2012 के बजट में लागू किया था ताकि पैसे की हेरफेर पर लगाम कसी जा सके। दरअसल अनलिस्टेड और अनजान सी कंपनियों में निवेश के जरिए काले धन को सफेद करने के खेल की जानकारी मिलने पर यह कदम उठाया गया था।

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क्या इस टैक्स से छूट हासिल है?

सरकार ने इसी साल अप्रैल में एक नोटिफिकेशन जारी करते हुए इनकम टैक्स ऐक्ट की धारा 56 के तहत एंजेल इन्वेस्टर के कंट्रीब्यूशन सहित 10 करोड़ रुपये तक के कुल निवेश वाली स्टार्टअप्स को टैक्स में छूट की इजाजत दी थी। स्टार्टअप में स्टेक लेने के इच्छुक एंजेल इन्वेस्टर की न्यूनतम नेटवर्थ दो करोड़ रुपये या पिछले तीन वित्तीय वर्ष में 25 लाख रुपये से ज्यादा एवरेज रिटर्न्ड इनकम होनी चाहिए।

क्या है ताजा विवाद?

हाल ही में मुंबई और बेंगलुरु की कुछ स्टार्टअप्स को टैक्स विभाग से नोटिस मिले हैं। स्टार्टअप्स का विरोध सामने आने के बाद कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री मिनिस्टर सुरेश प्रभु ने ट्वीट किया था कि उनकी मिनिस्ट्री ने यह मुद्दा फाइनैंस मिनिस्ट्री के सामने उठाया है। प्रभु का मंत्रालय ही स्टार्टअप इंडिया प्रोग्राम का प्रभारी है। इसके बाद सरकार ने स्टार्टअप और एंजल निवेशकों के सामने रही टैक्स संबंधी दिक्कतों पर गौर करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने का निर्णय किया है।

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जानिए स्टार्टअप्स में क्या है एंजेल टैक्स की भूमिका

सबसे पहले आपको यह जानना होगा कि आखिर ये एंजेल टैक्स है क्या? तो बता दें कि अगर कोई बाहर से स्टार्टअप्स में निवेश करता है तो उस पर सरकार टैक्स लगाती है। साथ ही साथ एंजेल टैक्स करीब 25 करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश पर लगाया जाता है। जो इससे पहले 10 करोड़ रूपये थी।

इसका अभिप्राय यह भी है कि अगर कोई म्युचुअल फंड या फिर कोई संस्थागत निवेश स्टार्टअप्स में करीब 25 करोड़ रुपये का तक का निवेश करेगा तो उसे एंजेल टैक्स नहीं देना होगा।

एंजल टैक्स की शुरुआत 2012 में हुई थी। उस समय तत्कालीन यूपीए सरकार के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने आयकर कानून की धारा 56 (2) (7) के तहत बजट में इसका एलान किया था। इसका मकसद मनी लाउड्रिंग पर रोक लगाना था। लेकिन अब पूरे स्टार्टअप्स सेक्टर पर इसकी मार पड़ रही है।

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वर्तमान में एंजेल टैक्स की स्थिति

मोदी सरकार ने स्टार्टअप्स को राहत देने के लिए हाल ही के महीने में कुछ उपाय किए हैं। जिसमें उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग ने इस 19 फरवरी को एक अधिसूचना जारी कर स्टार्टअप्स की परिभाषा का दायरा बढ़ाया है। इसके साथ ही स्टार्टअप्स की एंजल इन्वेस्टर्स से जुटाई गई कुल शेयर प्रीमियम पूंजी की सीमा 25 करोड़ रूपये तक कर दी है। जो इससे पहले 10 करोड़ रूपये थी।

स्टार्टअप्स कंपनियों की अधिकतम उम्र सीमा भी सात साल से बढ़ाकर 10 साल तक कर दी है। इसका मतलब ये है कि जो कंपनियां वर्ष 2009 या उसके बाद बनीं थी उन्हें भी एंजेल टैक्स का लाभ मिल सकेगा। हालांकि इससे उन स्टार्टअप्स कंपनियों को अभी राहत नहीं मिलेगी जिन्हें पहले ही आयकर कानून की धारा 56 (2) (7) के तहत एंजेल टैक्स का भुगतान करने का आदेश आयकर विभाग जारी कर चुका है। ऐसी कंपनियों को अपील का सहारा लेना पड़ेगा। उन्हें तभी राहत मिल सकती है।

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