Health Problem: बहुत खतरनाक बीमारी एनीमिया, खून की कमी से जूझ रहा देश, खाने में ऐसे बढ़ाया जाएगा ब्लड

Anemia: भारत में एनीमिया का हाल नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 के डेटा से पता चलता है। 2019 - 21 के बीच आयोजित ये सर्वे बताता है कि पहले से कहीं अधिक भारतीय एनीमिया से पीड़ित थे। कम से कम 67 फीसदी बच्चों में एनीमिया था, जबकि पिछले सर्वेक्षण में यह 58.6 फीसदी था।

Update:2023-06-26 16:35 IST
Anemia(Photo: Social Media)

Anemia: हो सकता आप अपने को और अपने परिवार वालों को सेहतमंद समझते हों। लेकिन असलियत कुछ और हो सकती है। ऐसी असलियत जो भारत में बहुत व्यापक रूप से फैली हुई है। ये है - खून या हीमोग्लोबिन की कमी यानी एनीमिया। भारत में एनीमिया का हाल नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 के डेटा से पता चलता है। 2019 - 21 के बीच आयोजित ये सर्वे बताता है कि पहले से कहीं अधिक भारतीय एनीमिया से पीड़ित थे। कम से कम 67 फीसदी बच्चों में एनीमिया था, जबकि पिछले सर्वेक्षण में यह 58.6 फीसदी था। 2015-16. विश्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि दो में से एक भारतीय महिला एनीमिया से पीड़ित है, जो विश्व औसत से 20 फीसदी अधिक है।

मानक पर छिड़ी बहस

डब्लूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार, भारत में 40 से 65 प्रतिशत बच्चे, महिलाएं और पुरुष एनीमिया से पीड़ित हैं। लेकिन यहां लएक नई बहस छिड़ी हुई है कि किसे एनिमिया माना जाए और किसे नहीं। दरअसल, भारत में डब्लूएचओ के मानक पर हीमोग्लोबिन डायग्नोस्टिक कट-ऑफ देखा जाता है। जो पुरुषों के लिए 14 ग्राम/डेसीलीटर, महिलाओं के लिए 12 ग्राम/डेसीलीटर और लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग उम्र में 11 से 12 ग्राम/डेसीलीटर के बीच निर्धारित किया गया है।
इधर कुछ एक्सपर्ट्स द्वारा मांग की जा रही है कि भारत अपने खुद के मानक बनाये। यही नहीं, सरकार ने भी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से भी एनीमिया बीमारी को हटा दिया है।

लेकिन कई एक्सपर्ट्स ने कहा है ऐसा करना खतरनाक होगा और मानक नहीं बदलने चाहिए। 250 से अधिक चिकित्सकों, शोधकर्ताओं, पोषण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने एनीमिया के निदान के लिए न्यूनतम हीमोग्लोबिन के स्तर को कम करने के खिलाफ तर्क देने वाले एक पत्र का समर्थन किया है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे करने वाले संस्थान, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) में बायोस्टैटिस्टिक्स और महामारी विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर सूर्यकांत यादव कहते हैं कि सरकार एनीमिया की गणना करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पद्धति को बदलने की इच्छुक है। इसका तर्क ये है कि भारत विभिन्न तापमान स्थितियों और आहार पैटर्न वाला एक बहुत ही विविध देश है।

एनीमिया मुक्त भारत

बहरहाल, भारत ने एनीमिया को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में माना और 2018 में एनीमिया मुक्त भारत रणनीति शुरू की है, जिसका लक्ष्य हरेक को सप्लीमेंट्स प्रदान करना, जागरूकता स्तर बढ़ाना और निदान में सुधार करना है। इसके तहत सभी उम्र के लोगों में आयरन और फोलिक एसिड सप्लीमेंट्स का वितरण, लोगों को इन्हें लेने के लिए प्रेरित करना, लोगों में जागरूकता बढ़ाना, आयरन वाले खाद्य पदार्थों का ज्यादा सेवन करने के लिए प्रेरित करना, आयरन और फोलिक एसिड युक्त खाद्य पदार्थों का वितरण, पेट के कीड़े मारने की दवा का वितरण, टेस्टिंग आदि शामिल है।

जानिए एनीमिया के बारे में सब कुछ

- एनीमिया शरीर में ऑक्सीजन ले जाने वाली स्वस्थ लाल कोशिकाओं (हीमोग्लोबिन) की अपर्याप्तता से जुड़ा हुआ मसला है।

- एनीमिया के कारणों में आयरन की कमी, फोलेट, विटामिन बी12, विटामिन ए की कमी, मधुमेह जैसी पुरानी स्थितियां या विरासत में मिले आनुवंशिक विकार शामिल हैं।

- एनीमिया के कई प्रकार हैं : अप्लास्टिक एनीमिया; आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया; रक्त की लाल कोशिकाओं की कमी; थैलेसीमिया; विटामिन की कमी से होने वाला एनीमिया।

- एनीमिया एक महत्वपूर्ण शारीरिक और भावनात्मक प्रभाव डालता है, जिससे थकान, हृदय की समस्याएं, गर्भावस्था संबंधी जटिलताएँ और क्रोनिक एनीमिया के कारण जीवन को खतरे में डालने वाले परिणाम होते हैं।

- एनिमिया के आर्थिक प्रभाव भी हैं। लोगों में थकान के कारण उत्पादकता घट जाती है, बच्चों में स्कूली शिक्षा प्रभावित होती है, महिलाओं में कई बीमारियां घेर लेती हैं, बच्चों के पालन पोषण पर असर पड़ता है। एक अनुमान से पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद का 4 फीसदी संयुक्त रूप से एनीमिया से संबंधित बीमारियों के कारण नष्ट हो जाता है।

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